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मणिपुर : चुराचांदपुर में ‘कुकी ज़ो’ समुदाय के 87 हिंसा पीड़ितों के शव सामूहिक रूप से दफनाए गए

चुराचांदपुर में सामूहिक रूप से दफनाए गए पीड़ितों में सबसे बुजुर्ग 70 वर्षीय महिला डोमखोहोई हाओकिप थी, जबकि सबसे छोटी एक महीने की बच्ची थी.

मणिपुर में जातीय हिंसा के शिकार हुए ‘कुकी ज़ो’ समुदाय के 87 पीड़ितों के शव बुधवार को चुराचांदपुर में दफनाए गए. 87 शवों को जिले के सेहकेन स्थित खुगा बांध के पास सामूहिक रूप से दफनाया गया.  

अधिकारियों ने बताया कि 14 दिसंबर को इम्फाल के विभिन्न मुर्दाघरों से 41 शव हवाई मार्ग से लाए गए थे, जबकि 46 शव चुराचांदपुर जिला अस्पताल से लाए गए.

शवों को दफनाने को लेकर सोमवार की रात हुई हिंसक झड़प में करीब 30 लोगों के घायल होने के बाद चुराचांदपुर जिले में अपराध प्रकिया संहिता की धारा 144 के तहत प्रतिबंध लगाए गए हैं.

लेकिन निषेधाज्ञा के बावजूद हजारों लोग अंतिम श्रद्धांजलि देने पहुंचे. पीड़ितों के परिवार के सदस्यों ने भावनात्मक दृश्यों के बीच अंतिम विदाई दी. फिर पारंपरिक शॉल और पुष्पमालाओं से ढके ताबूतों को कब्रों में रखा गया.

वहीं कड़ी सुरक्षा के बीच इन पीड़ितों-मृतकों के लिए वॉल ऑफ रिमेंबरेंस, पीस ग्राउंड, तुईबोंग में शोक समारोह आयोजित किया गया.

ये शव बीते आठ महीने से मुर्दाघरों में थे. आठ महीने बाद कुकी-ज़ो समुदाय के 87 शवों को खुगा बांध के पास दफनाया गया है.

इस गंभीर मौके पर संयोजक ज़ो यूनाइटेड अल्बर्ट रेंथलेई ने अपने शब्दों में शोक जताया तो वहीं गुडविल काउंसिल के अध्यक्ष रेव डॉ. एस वुंगमिनथांग ने भी शोक व्यक्त किया. इस दौरान Joint Artist Associations ने कोरल और शोकगीत प्रस्तुत किए. इस दफन स्थल का नाम ‘कुकी-हमार-मिज़ो-ज़ोमी शहीद Cemetary’ रखा गया है.

एक बयान में कहा गया है कि शवों को सौंपने से आठ महीने की लंबी उथल-पुथल, हृदयविदारक और निराशा के बाद हमारे मृत भाइयों और बहनों की बहुप्रतीक्षित घर वापसी हुई है.

फैजंग गांव में शहीद कब्रिस्तान में “आप हमारे कल के लिए अपना आज बलिदान करें” थीम के तहत सामूहिक शवों को दफनाने की प्रक्रिया की गई थी. इस दौरान गांव के स्वयंसेवकों द्वारा बंदूक की सलामी के साथ शोक संवेदना व्यक्त की गई.

मानवाधिकार के लिए कुकी महिला संगठन की अध्यक्ष नगैनेइकिम ने कहा कि हमें गहरी राहत महसूस हुई क्योंकि हमारे कई भाइयों और बहनों के शवों को हमारे रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाया गया. यह उन परिवारों के लिए एक लंबा इंतजार था जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया. अब मारे गए लोगों के न्याय के लिए संघर्ष और कुकी-ज़ो लोगों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग जारी रहेगी.

इस महीने कुकी-ज़ो पीड़ितों का यह दूसरा सामूहिक दफ़न समारोह था. इससे पहले 15 दिसंबर को कांगपोकपी जिले में 19 हिंसा पीड़ितों को दफनाया गया था.

शवों को एयरलिफ्ट करने की कवायद और संबंधित अन्य कार्रवाई राज्य सरकार, जिला प्रशासन और अन्य अधिकारियों द्वारा तभी की गई जब सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने राज्य सरकार को शवों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार करने का एक निर्देश जारी किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में जांच, राहत, उपचारात्मक उपायों, मुआवजे और पुनर्वास की जांच के लिए अगस्त में हाई कोर्ट के तीन पूर्व न्यायाधीशों – गीता मित्तल, शालिनी जोशी और आशा मेनन की एक समिति बनाई थी.

समिति की रिपोर्ट पर विचार करते हुए शीर्ष अदालत ने मणिपुर में जातीय हिंसा में मारे गए लोगों को दफनाने या अंतिम संस्कार करने के निर्देश जारी किए.

मणिपुर में करीब आठ महीने पहले अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में “आदिवासी एकजुटता मार्च” आयोजित किए जाने के बाद जातीय हिंसा भड़क उठी थी.

गैर-आदिवासी मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा में अब तक 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. कई सौ लोग घायल हुए हैं और दोनों समुदायों के 70 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

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