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मणिपुर की मारिंग जनजाति ने कहा – 6 गांवों में म्यांमार के नागरिकों की संख्या स्थानीय लोगों से अधिक

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का कहना है कि पूरे पूर्वोत्तर भारत में अशांति बाहर से आने वाले अवैध प्रवासियों और नशीली दवाओं के खतरे के कारण फैली हुई है. एक बार रूट की पहचान हो जाने पर स्थिति हल हो जाएगी.

मणिपुर (Manipur) के टेंग्नौपाल जिले (Tengnoupal district) में मारिंग जनजाति (Maring tribe) के एक प्रभावशाली छात्र संगठन ने आरोप लगाया है कि छह मारिंग नगा गांवों में रहने वाले म्यांमार के नागरिकों की संख्या स्थानीय लोगों से अधिक है.

मारिंग छात्र संघ (MSU) ने एक बयान में कहा कि 1,428 म्यांमार के नागरिक जिनके बायोमेट्रिक्स लिए गए हैं. वे छह मारिंग नगा गांवों में रह रहे हैं और यह म्यांमार के नागरिकों की दुर्दशा को स्वीकार करता है और “उनके प्रति हार्दिक सहानुभूति” व्यक्त करता है.

हालांकि, MSU ने कहा कि इन गांवों में म्यांमार के नागरिकों की संख्या स्थानीय लोगों से अधिक है. म्यांमार के नागरिक वास्तव में शरणार्थी हैं जो जुंटा बलों और लोकतंत्र समर्थक विद्रोहियों के बीच लड़ाई से भाग गए हैं.

एमएसयू ने कहा, “छह मरिंग नगा गांवों (सैबोल, मोइरेंगथेल, चैनरिंगफाई, लामलोंग खुनौ, चोकटोंग और सतांग) में शरण लिए हुए म्यांमार के नागरिक, जिनकी संख्या करीब 1,428 है (सिर्फ वे जिनके बायोमेट्रिक्स लिए गए हैं), स्थानीय निवासियों से अधिक संख्या में हैं, जो बहुत चिंता का विषय है.”

एमएसयू का यह बयान नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के विधायक लीशियो कीशिंग (Leishiyo Keishing) द्वारा 9 मई को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह (N Biren Singh) को लिखे पत्र के एक महीने बाद आया है.

पत्र में लीशियों ने आरोप लगाया था कि आठ गांवों में आश्रय गृहों में रह रहे म्यांमार के नागरिकों की संख्या “स्थानीय लोगों से अधिक है” जिससे मणिपुर में जातीय तनाव के बीच स्थानीय लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ गई है.

एनपीएफ विधायक के दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा विधायक पाओलियनलाल हाओकिप (Paolienlal Haokip) ने एनडीटीवी से कहा था कि अगर लीशियो कीशिंग द्वारा कोट किया i/e डेटा सही है तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि युद्धग्रस्त म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों की संख्या उखरुल और कामजोंग जिलों में सबसे अधिक है.

हाओकिप ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार सिर्फ कुकी गांवों पर ध्यान केंद्रित कर रही है न कि उन गांवों पर जहां कुकी के अलावा अन्य जनजातियां रहती हैं.

एमएसयू ने आरोप लगाया कि रिलराम एरिया मारिंग ऑर्गनाइजेशन (RAMO) को निशाना बनाया गया है क्योंकि सीमावर्ती जिले में इसके स्वयंसेवकों द्वारा किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि म्यांमार से आए शरणार्थी कथित तौर पर राज्य के अधिकारियों को सूचित किए बिना घर बना रहे हैं.

एमएसयू ने कहा, “संघ गांव के नेताओं को डराने-धमकाने और भ्रामक रिपोर्ट प्रसारित करने की मांग करता है खासकर वे जो रामो को गलत तरीके से निशाना बना रहे हैं.”

इस क्षेत्र में सीमा की रक्षा करने वाली असम राइफल्स ने स्थानीय मीडिया को दिए गए एक बयान में रामो द्वारा लगाए गए ऐसे “अवैध बस्तियों” के अस्तित्व से इनकार किया था.

असम राइफल्स ने बयान में कहा कि म्यांमार में युद्ध जैसी स्थिति के कारण कुछ शरणार्थियों ने वास्तव में उस क्षेत्र में शरण ली है. हालांकि, भारत-म्यांमार सीमा पर सुरक्षा स्थिति में सुधार होने पर उन्हें तुरंत वापस भेज दिया जाता है.

असम राइफल्स ने कहा कि शरणार्थियों के लिए आवास व्यवस्था में स्वयं सहायता, पॉलीथीन कवर वाली साधारण झोपड़ियाँ शामिल हैं. उन्होंने कहा कि राज्य प्रशासन क्षेत्र में शरणार्थियों की उपस्थिति से पूरी तरह अवगत है और उन्होंने उनका बायोमेट्रिक डेटा भी इकट्ठा किया है.

सुरक्षा सूत्रों ने एमएसयू के इस आरोप का खंडन किया है कि सुरक्षा बल मारिंग जनजाति के इलाकों में आने-जाने वालों की आवाजाही में बाधा डाल रहे हैं.

वहीं रामो ने पिछले मंगलवार को कहा था कि उसने सीमा स्तंभ संख्या 82 से 89 के पास के गांवों की जांच के लिए स्वयंसेवकों को भेजा है. क्योंकि रिपोर्ट में बताया गया था कि म्यांमार के शरणार्थी टेंग्नौपल जिले में मारिंग जनजाति के इलाकों में बड़ी संख्या में आ रहे हैं.

रामो ने कहा कि उन्होंने अधिकारियों को बताया कि उन्हें म्यांमार के शरणार्थियों की काफी संख्या में मौजूदगी मिली है जो घर और अन्य संरचनाएं बना रहे हैं. रामो स्वयंसेवकों ने जिन इलाकों का दौरा किया, वे लैमलोंग खुनौ सर्कल के अंतर्गत आने वाले चैनरिंगफाई, चोकटोंग, एन सतांग और सांगटोंग गांव थे.

रामो स्वयंसेवकों ने कहा कि इलाके के गांव के मुखियाओं ने शिकायत की है कि वे अब म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों की आमद को संभालने में सक्षम नहीं हैं.

पिछले हफ़्ते मणिपुर में कई नगा नागरिक निकायों और संगठनों ने गृह मंत्री अमित शाह से “अवैध म्यांमार अप्रवासियों” को वापस भेजने का अनुरोध किया था.

फैक्ट फाइनडिंग मिशन पर सीमावर्ती क्षेत्रों का दौरा करने के बाद, यूनाइटेड नगा काउंसिल (UNC), नगा महिला संघ (NWU), ऑल नगा स्टूडेंट्स एसोसिएशन मणिपुर (ANSAM) और नगा पीपुल्स मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्स (NPM-HR) ने अमित शाह को एक ज्ञापन दिया.

अगस्त 2023 में अमित शाह ने लोकसभा को बताया था कि मणिपुर में समस्या पड़ोसी म्यांमार से चिन-कुकी शरणार्थियों के आने से शुरू हुई थी, जब वहां के सैन्य शासकों ने 2021 में विद्रोहियों के खिलाफ़ कार्रवाई शुरू की थी.

शाह ने कहा था कि मणिपुर में आने वाले शरणार्थियों ने क्षेत्र में जनसांख्यिकीय परिवर्तन की आशंकाएँ पैदा की हैं. उन्होंने कहा कि शरणार्थियों की बस्तियों को गाँव घोषित किए जाने की अफ़वाहें अंतिम तिनका थीं.

मणिपुर के हालात

पिछले साल 3 मई को मणिपुर में शुरू हुई जातीय हिंसा में अब तक 20 महिलाओं और 8 बच्चों सहित 220 से अधिक लोगों की मौत और 1500 से अधिक लोग घायल हुए हैं. जबकि करीब 60 हज़ार लोग राहत शिविरों में जीवन बिताने को मजबूर हैं.

मणिपुर में जारी जातीय संघर्ष में बीच में कमी आई थी परंतु इस साल 13 अप्रैल के बाद से फिर हिंसा भड़क उठी है.

मणिपुर मैतेई समुदाय और कुकी जनजातियों के बीच जातीय संघर्ष भूमि, संसाधनों, सकारात्मक कार्रवाई नीतियों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को साझा करने पर विनाशकारी असहमति के कारण शुरू हुआ.

यह संघर्ष तब और बढ़ गया जब मैतेई समुदाय ने अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल होने की मांग की और इस मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च निकाला गया.

वहीं मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने शुक्रवार को कहा कि राज्य में जातीय अशांति को दूर करने के लिए मोदी सरकार 3.0 जल्द ही एक कार्य योजना बनाएगी. उन्होंने कहा कि राज्य में चर रहे संकट का समाधान 2 से 3 महीने में हो सकता है.

बीरेन सिंह ने कहा, “हिंसा हर जगह है. मणिपुर में भी है लेकिन इसमें कमी आई है. हालांकि, सीमांत इलाकों में कुछ छिटपुट गोलीबारी हुई लेकिन अन्य जगहों पर स्कूल, सरकारी प्रतिष्ठान, बाजार और व्यवसाय पूर राज्य में खुल रहे हैं, जो सामान्य स्थिति की ओर लौटने का संकेत है.”

उन्होंने कहा कि मणिपुर में वास्तविक संकट सिर्फ 6-7 महीनों तक रहा लेकिन मणिपुर में 14 महीनों से अशांति है.

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