HomeAdivasi Dailyअस्तित्व की लड़ाई के लिए आदिवासी एकता जरूरी - हेमंत सोरेन

अस्तित्व की लड़ाई के लिए आदिवासी एकता जरूरी – हेमंत सोरेन

हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासियों के लिए अपनी जमीन, सभ्यता मायने रखती है. हमने जंगल और पहाड़ बचाया है. हमें जंगल में रहने वाले गरीब के तौर पर ना देखा जाए. जब लड़ाई अस्तित्व और वजूद की हो, तो सामने आना ही पड़ता है.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बुधवार को देशभर के आदिवासियों से अपने अस्तित्व की लड़ाई में एकजुट होने का आह्वान किया. उन्होंने दावा किया कि विनाशकारी शक्तियां और धार्मिक चरमपंथी उनका दमन कर उनके संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं.

सीएम सोरेन ने कहा कि आदिवासी समुदाय असंगठित और विभाजित है और यही वजह है कि उनके मुद्दे, चाहे मणिपुर में हो या झारखंड में, सुना नहीं जाता.

हेमंत सोरेन ने झारखंड आदिवासी महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा कि उनके (आदिवासियों के) बीच उन ताकतों से लड़ने को लेकर चर्चा होनी चाहिए जो उनके सभी संसाधनों, पहचान और संस्कृति पर कब्जा करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्र में आदिवासी भाई प्रताड़ना झेल रहे हैं और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. मणिपुर में जो घटना घटी वो सबके सामने हैं, तो कहीं आदिवासी भाई पर पेशाब किया जा रहा है. देश भर के 13 करोड़ आदिवासी समाज के लोगों को एक होकर लड़ने की जरूरत है, जबकि हम आपस में बंटे हुए हैं. हमारी लड़ाई एक होनी चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि मणिपुर, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात राजस्थान और तमिलनाडु सहित देश के विभिन्न हिस्सों में आदिवासी अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं जबकि विनाशकारी ताकतें उनका दमन करने को उतारू हैं.

हेमंत सोरेन ने कहा कि जब आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गई उपेक्षा के खिलाफ बोलने की कोशिश कर रहा है तो उसे चुप कराने का प्रयास किया जा रहा है. साथ ही यह सच है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित और शोषित आदिवासी वर्ग है, लेकिन यह भी सच है कि हम एक महान सभ्यता के वारिस हैं, हमारे पार मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, जरूरत है कि नीति निर्माताओं के पास दृष्टि हो.

सीएम सोरेन ने कहा कि लाखों लोगों को अपनी भाषा से, अपनी संस्कृति से, अपनी जड़ों से काट दिया गया है.

बीजेपी पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए सोरेन ने कहा कि जिन लोगों ने जाति नहीं देखी, उन्हें विनाशकारी ताकतों ने ‘जनजाति’ और ‘वनवासी’ करार दिया है.

उन्होंने कहा कि उद्योगों, परियोजनाओं, बांध और खदानों की वजह से विस्थापित होने वालों में करीब 80 प्रतिशत आदिवासी हैं लेकिन ‘क्रूर तंत्र’ ने उनके लिए ठिकाना खोजने की कोशिश नहीं की.

उन्होंने कहा यहां के किसान दूसरे के घरों में बर्तन मांजने, ईंट भट्टों में काम करने को मजबूर है. विकास की चपेट में किसको नुकसान हुआ, इसका कभी जायजा लिया गया. मुख्य धारा के इतिहासकारों ने भी आदिवासी समुदाय के साथ बेईमानी की और इनके इतिहास को चिन्हित नहीं किया. हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी गई, हमारी कई भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं.

सोरेन ने आरोप लगाया कि बड़ी कोयला कंपनियों को आदिवासियों की लाखों एकड़ जमीन बिना पुनर्वास योजना के ही सौंपी जा रही है. इसलिए हेमंत सोरेन ने देश भर के आदिवासियों से एकजुट रहने की अपील की.

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