विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) जिसे विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया भर में स्वदेशी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए हर साल 9 अगस्त को मनाया जाता है.
यह दिन उनकी विशिष्ट संस्कृतियों, भाषाओं, रीति-रिवाजों और सामाजिक योगदान का सम्मान करने का प्रयास करता है. यह मौका उन कठिनाइयों और समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलाने का अवसर प्रदान करता है जिनका सामना स्वदेशी आबादी करती है. जैसे कि भूमि अधिकार, सांस्कृतिक संरक्षण, पूर्वाग्रह, हाशिए पर रहना और सामाजिक और आर्थिक असमानताएं.
9 अगस्त का दिन आदिवासी समाज के लिए खुशी और उत्साह से भरा हुआ होता है. इस दिन समूचा आदिवासी समाज विश्व आदिवासी दिवस मनाता है, एक दूसरे को बधाई देता है, पारंपरिक वेषभूषा में नाचता, गाता और क्षेत्रीय पकवानों का आनंद लेता है.
इतना ही नहीं सामाजिक ताने-बाने पर विचार-विमर्श करता है. यह दिन इनके लिए होली और दीपावली से कम नहीं होता
आदिवासी दिवस 2023 थीम
संयुक्त राष्ट्र ने विश्व आदिवासी दिवस 2023 के थीम को आदिवासी युवाओं पर फोकस किया है. विश्व आदिवासी दिवस 2023 के लिए चुनी गई थीम “आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रूप में स्वदेशी युवा” (Indigenous Youth as Agents of Change for Self-determination) है.
2023 में विश्व के स्वदेशी लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस का महत्व कई स्वदेशी समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयों, परेशानियों को उजागर करने की क्षमता में निहित है.
इन चुनौतियों में गरीबी, पूर्वाग्रह, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित उपलब्धता जैसे मुद्दे शामिल हैं.
आदिवासी दिवस का इतिहास
इस दिन को मनाने की उत्पत्ति एक विश्वव्यापी आंदोलन से हुई है जिसका उद्देश्य स्वदेशी लोगों के अधिकारों और मूल्यवान योगदान को स्वीकार करना है. वैश्विक आबादी का लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद स्वदेशी समुदायों को अक्सर हाशिए पर रखा जाता है, भले ही उनके पास समृद्ध सांस्कृतिक विविधता हो.
आदिवासी लोगों के सम्मान के लिए एक दिन नामित करने की अवधारणा संयुक्त राष्ट्र के भीतर शुरू हुई. इसे शुरू करने का लक्ष्य इस आबादी के अधिकारों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना था कि उनकी आवाज़ को वैश्विक मान्यता मिले.
जिसके बाद दिसंबर 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व के स्वदेशी लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने और मनाने के लिए एक प्रस्ताव अपनाया.
इस दिन को 1984 में संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता मिली थी और 1994 से इसे अनवरत मनाया जा रहा है.
इस दिन दुनियाभर में संयुक्त राष्ट्र और कई देशों की सरकारी संस्थानों के साथ-साथ आदिवासी समुदाय के लोग, आदिवासी संगठन सामूहिक समारोह का आयोजन करते हैं. इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा स्थिति और भविष्य की चुनौतियों को लेकर चर्चा होती है. कई जगहों पर जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं.
भारत में आदिवासी
आदिवासी समूह भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 8.6 प्रतिशत हैं, जो 2011 की जनगणना के मुताबिक 10 करोड़ 45 लाख से अधिक है. सबसे अधिक जनजातीय समुदाय मध्य भारत में केंद्रित हैं. मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान समेत तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं.
मध्य प्रदेश में किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक आदिवासी रहते है. मध्य प्रदेश में 46 आदिवासी जनजातियां निवास करती हैं. यहां की कुल जनसंख्या के 21 फीसदी लोग आदिवासी समुदाय के हैं. वहीं झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी आदिवासी समाज के लोग हैं. इसके अलावा भी तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं.
मध्य प्रदेश में गोंड, भील और ओरोन, कोरकू, सहरिया और बैगा जनजाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. गोंड एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी समूह है जिनकी संख्या 30 लाख से अधिक है. मध्य प्रदेश के अलावा गोंड जनजाति के लोग महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी निवास करते हैं.
आदिवासी समाज
भारत में आदिवासी आबादी अनुसूचित जनजाति के तहत आती है. आज भी आदिवासी समाज का संघर्ष जारी है. संवैधानिक अधिकार और जनमुद्दों की लड़ाई यह समाज आज भी लड़ रहा है. आज भी इस समाज में गरीबी, पूर्वाग्रह, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित उपलब्धता जैसे मुद्दे व्याप्त हैं.
वहीं देश में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की क्या स्थिति है इसका अंदाजा दो दिन पहले लोकसभा में दिए गए सरकार के जवाब से लगाया जा सकता है.
लोकसभा में बीजेपी सांसद कनकमल कटारा की ओर से पूछा गया कि शैक्षिक रूप से पिछड़ी जनजातियों की साक्षरता और रोजगार दरों का ब्यौरा क्या है? एक और सवाल में पूछा गया कि सामाजिक और शैक्षिक रूप पिछड़ी जनजातियों के सशक्तिकरण के लिए चल रही परियोजनाओं का ब्यौरा क्या है?
बीजेपी सांसद के सवालों का जवाब जनजातीय कार्य राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरूता ने दिया. जवाब के मुताबिक, अनुसूचित जनजातियों के संबंध में पुरुष आबादी की साक्षरता दर 59 प्रतिशत और महिला आबादी की साक्षरता दर 68.5 प्रतिशत थी. ये आंकड़े 2011 की जनगणना के अनुसार है.
वहीं सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2020-21 के मुताबिक अनसूचित जनजातियों के बीच पुरुष साक्षरता दर 71.6 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 79.8 प्रतिशत है.
जवाब में अनुसूचित जनजातियों के लिए बेरोजगारी दर ग्रामीण, शहरी और ग्रमीण+शहरी स्तर पर विभाजित करके बताई गई. इसमें कहा गया कि पीएलएफएस 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जनजातियों के लिए बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों के मामले में 3.2 फीसदी, महिलाओं की 1.0 फीसदी और व्यक्ति के मामले में 2.3 फीसदी है.
शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा पुरुषों को लेकर 7.7 फीसदी, महिलाओं को लेकर 6.3 फीसदी और व्यक्ति के मामले में 7.3 फीसदी है. वहीं ग्रामीण+शहरी स्तर पर 3.7 फीसदी पुरुष 1.3 फीसदी महिलाएं बेरोजगार हैं. वहीं व्यक्तियों के मामले में यह संख्या 2.7 फीसदी है.