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गुजरात में 16 हज़ार हेक्टेयर से अधिक आदिवासी भूमि को ‘विकास’ के लिए दिया गया

7 अगस्त, 2023 को बीजेपी के सांसद वरुण गांधी ने लोकसभा में उन परियोजनाओं के बारे में कई प्रश्न पूछे, जिनके लिए वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत राजस्व और वन विभाग से वन भूमि प्राप्त की गई थी. जवाब में पर्यावरण मंत्री, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने पूरे देश के लिए डेटा दिया.

गुजरात (Gujarat) में वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act) के तहत भूमि पट्टों/अधिकारों के लिए 1 लाख 82 हज़ार 869 आदिवासी दावों में से 57 हज़ार 54 दावों को विभिन्न प्रशासनों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है.

जिन वन क्षेत्रों पर आदिवासियों ने अपना पहला अधिकार जताया है उनमें से कुल 16,070.58 हेक्टेयर भूमि को वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत विभिन्न विकास उद्देश्यों के लिए स्थानांतरित कर दिया गया है.

प्रतिपूरक वनरोपण (Compensatory Afforestation) के तहत 10,832.3 हेक्टेयर भूमि जंगल के लिए दी गई है. यह गुजरात में वन के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि में 5,238.28 हेक्टेयर की कमी दर्शाता है.

दरअसल, 8 अगस्त को कांग्रेस सांसद अमी याग्निक ने वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत भूमि पट्टों के लिए आदिवासियों के दावों के बारे में राज्यसभा में एक सवाल उठाया था.

सरकार ने अपने जवाब में कहा कि 30 नवंबर, 2022 तक राज्य से कुल 1 लाख 82 हज़ार 869 व्यक्तिगत दावे प्राप्त हुए, जबकि उस अवधि तक 57 हज़ार 54 व्यक्तिगत दावे खारिज कर दिए गए.

वहीं प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पार्थिव राज कठवाडिया ने सरकार पर राज्य के 91 हज़ार 183 आदिवासियों को वन भूमि अधिकार से वंचित करने का आरोप लगाया.

कठवाडिया ने कहा कि इसका मतलब यह होगा कि जंगल भूमि अधिनियम के तहत लाभ के लिए आवेदन करने वाले 49.8 प्रतिशत आदिवासियों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया. 34,129 आवेदन मंजूरी की प्रतीक्षा में हैं.

कठवाडिया ने आरोप लगाया, ”भाजपा आदिवासियों के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है लेकिन जब वास्तव में उन्हें उनके अधिकार देने की बात आती है तो भारतीय जनता पार्टी सरकार पीछे हट जाती है.”

वहीं अस्वीकृति के कारण बताते हुए सरकार ने राज्यसभा में कहा कि “राज्य सरकारों द्वारा बताए गए दावों को अस्वीकार करने के सामान्य कारणों में 13 दिसंबर, 2005 से पहले वन भूमि पर कब्जा न करना, कई दावे और पर्याप्त दस्तावेजी सबूतों की कमी शामिल है.”

7 अगस्त, 2023 को बीजेपी के सांसद वरुण गांधी ने लोकसभा में उन परियोजनाओं के बारे में कई प्रश्न पूछे, जिनके लिए वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत राजस्व और वन विभाग से वन भूमि प्राप्त की गई थी. जवाब में पर्यावरण मंत्री, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने पूरे देश के लिए डेटा दिया.

इसके मुताबिक, पिछले 15 वर्षों में कुल 16,070.58 हेक्टेयर भूमि को प्रतिपूरक वनरोपण (सीए) के तहत विभिन्न श्रेणियों के लिए डायवर्ट किया गया है.

सरकार ने कहा है कि उपयोग की गई वन भूमि की मात्रा की तुलना में 2008 से 2022-23 तक प्रतिपूरक वनरोपण के तहत 10,832.3 हेक्टेयर भूमि दी गई है. जो दर्शाता है कि सरकार ने पिछले 15 वर्षों में वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत गुजरात में विभिन्न विकास कार्यों के लिए 16,070.58 हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया है.

वन अधिकार अधिनियम 2006 और आदिवासी

भारत सरकार के वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधान, आदिवासी समुदायों को अपनी पुश्तैनी जमीन पर मालिकाना हक का अधिकार देते हैं. इस अधिनियम के तहत भारत सरकार ने वन क्षेत्रों में रहने वाले उन आदिवासी समुदाय के किसानों को जंगल की जमीन पर खेती करने का अधिकार दिया जिनकी संस्कृति और आजीविका जंगल पर निर्भर करती है.

इस अधिनियम के पारित होने के बाद गुजरात सरकार को इसके कार्यान्वयन के लिए नीतियां और नियम बनाने के अधिकार दिए गए थे. गुजरात सरकार ने ये नीतियां साल 2007 में बनाईं.

इस कानून के मुताबिक, देशभर में 13 दिसंबर, 2005 से पहले जमीन को जोतने वाला आदिवासी समुदाय राजस्व पावती जैसे किसी भी प्रमाण के आधार पर उस जमीन के मालिकाना हक के लिए अर्ज़ी दे सकता है और सरकार को उस ज़मीन का अधिकार आदिवासी समुदाय को हस्तांतरित करना होगा.

हालांकि जमीन हस्तांतरण के इस प्रावधान में अक्सर कई गड़बड़ियां पाई जाती हैं जिसके चलते गुजरात का आदिवासी समुदाय और सरकार सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

गुजरात के आदिवासी क्षेत्र के कई जिलों में आदिवासी समुदाय के हज़ारों आवेदन गुजरात सरकार के पास लंबित हैं.

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