लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई (Gaurav Gogoi) ने बुधवार को कहा कि मणिपुर में जब तक लूटे गए 6,000 आधुनिक हथियार और 6 लाख कारतूस बरामद नहीं कर लिए जाते हैं तब तक कोई शांति नहीं होगी.
गोगोई ने गुवाहाटी में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि राज्य में तीन मई से हिंसा जारी है. यहां सुरक्षा बलों से हथियार और गोला-बारूद लूटे गए. अब इन हथियारों का इस्तेमाल राज्य के आम नागरिकों पर होगा.
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘ तो जब तक दोनों पक्षों के बीच सुलह के लिए बात नहीं हो तब तक वहां शांति कैसे हो सकती है और हालात कैसे सामान्य हो सकते हैं.”
उन्होंने दावा किया कि मैतेई और कुकी दोनों ही समुदाय के लोग मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के रवैये से नाखुश हैं.
गोगोई ने कहा, ‘‘गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में पूरी तरह से मुख्यमंत्री को समर्थन दिया जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.’’
उन्होंने कहा कि शांति समितियों में मुख्यमंत्री की मौजूदगी के कारण ही शांति वार्ताएं विफल हुई हैं.
उन्होंने आगे कहा, “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले से लोगों को गुमराह किया क्योंकि राहत शिविरों में रह रहे 60 हज़ार लोगों के पुनर्वास के बिना और 6 हज़ार हथियारों की बरामदगी तक वहां शांति नहीं हो सकती.”
शरद पवार का पीएम मोदी पर हमला
वहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मणिपुर मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी को लेकर उन पर तीखा हमला बोला. शरद पवार ने कहा कि जब पूर्वोत्तर राज्य जल रहा था तो पीएम मूक दर्शक बने हुए थे. उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री को चुनावी रैली में जाना ज्यादा जरूरी लगता है लेकिन वह सभी को मनाने के लिए मणिपुर नहीं जाते.
शरद पवार ने कहा कि मणिपुर में स्थिति चिंताजनक है. हम चाहते थे कि पीएम एक बार पूर्वोत्तर का दौरा करें और वहां के लोगों के बीच विश्वास पैदा करें लेकिन यह प्रधानमंत्री के लिए महत्वपूर्ण नहीं लगा.
अब नगा जनजाति के लोग सड़कों पर उतरे
उधर राज्य में पिछले तीन महीने से चल रही जातीय हिंसा के बीच अब नगा जनजाति के लोग भी सड़क पर उतर गए हैं.
राज्य के तामेंगलोंग, चंदेल, उखरुल और सेनापति ज़िले में नगा जनजाति का दबदबा है. नगा लोगों की थोड़ी आबादी राजधानी इंफाल से लेकर बाकी के पहाड़ी ज़िलों में भी बसी है.
बीते बुधवार को नगा जनजाति के हज़ारों लोगों ने अपनी दो प्रमुख मांगों को लेकर प्रदर्शन आयोजित किया.
दरअसल, हिंसा के बाद कुकी इलाकों में अलग प्रशासन की मांग तेज़ हो गई है. ऐसे में मणिपुर के नगाओं का साफ कहना है कि भारत सरकार को किसी भी जनजाति के लिए अलग से कोई व्यवस्था करते वक्त उनके हितों और जमीन का ध्यान रखना होगा.
कुकी जनजाति द्वारा अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग ने नगा जनजाति को भी अपनी मांग रखने के लिए मौका दे दिया है.
नगा लोगों को इस बात का डर सताने लगा है कि अगर केंद्र सरकार ने कुकी इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था के नाम पर किसी तरह का कोई कदम उठाया तो अंतिम चरण में चल रही नगा शांति वार्ता को नुकसान हो सकता है.
इसलिए नगा बहुल क्षेत्रों में पिछले बुधवार को रैलियां निकाली गईं थी जो एक तरह से भारत सरकार को संदेश देने की कोशिश बताई जा रही है.
नगा जनजाति की मांग
मणिपुर में बसे नगा जनजातियों की शीर्ष संस्था यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) के बैनर तले निकाली गई रैलियों में दो प्रमुख मांगों को उठाया गया.
यूएनसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन भेजा है जिसमें 3 अगस्त 2015 को भारत सरकार और अलगाववादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-आईएम) के इसाक-मुइवा गुट के साथ हुए फ्रेमवर्क समझौते का मुद्दा उठाया गया है.
ज्ञापन में कहा गया है कि फ्रेमवर्क समझौते के बाद चली लंबी शांति वार्ता का शीघ्र निष्कर्ष निकाला जाए. और यह सुनिश्चित किया जाए कि “किसी अन्य समुदाय” की मांगों को संबोधित करने के प्रयास में कोई नगा हित या भूमि प्रभावित नहीं होगी.
यूएनसी के अध्यक्ष एनजी. लोरहो ने एक बयान में कहा कि मणिपुर में हमारी 20 नगा जनजातियां हैं. लिहाजा किसी अन्य समुदाय की मांगों को संबोधित करने का प्रयास करते समय नगा भूमि के विघटन या किसी भी ऐसे कार्य को नगा लोग स्वीकार नहीं करेंगे जो नगा जनजाति के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा.
इस साल जून में गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के बाद मणिपुर के नगा विधायकों ने पहली बार कुकी लोगों के अलग प्रशासन की मांग के मुद्दे पर अपना पक्ष रखा था.
नगा विधायकों का कहना है कि मणिपुर के पहाड़ी ज़िलों के लिए कोई भी अलग प्रशासनिक व्यवस्था नगा शांति प्रक्रिया पर आधारित होनी चाहिए.
वैसे मैतेई और कुकी जनजाति के बीच जारी हिंसा में नगा अब तक तटस्थ रहे हैं. लेकिन बात जब जनजाति और गैर-जनजाति के बीच लड़ाई की आती है तो नगा लोग कुकी के साथ खड़े दिखते हैं.
इस समय नगा शांति प्रक्रिया कठिन दौर से गुज़र रही है. अलगाववादी समूह एनएससीएन (आई-एम) और केंद्र के बीच ‘ग्रेटर नगालिम’ की मांग के साथ ही एक अलग ध्वज और नगाओं के लिए एक संविधान जैसी मांगों को लेकर मतभेद है.
ग्रेटर नगालिम का अर्थ है पूर्वोत्तर के जिन इलाकों में नगा आबादी बसी है उन सभी क्षेत्रों का एकीकरण.
यही वजह है कि मणिपुर में बसे नगा जनजाति के लोग शांति वार्ता का जल्द से जल्द निष्कर्ष निकालने की मांग कर रहे हैं.
लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र ने इस विचार को खारिज कर दिया है क्योंकि इससे नगालैंड के पड़ोसी राज्यों – मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश की क्षेत्रीय अखंडता भंग हो जाएगी.
नगा-कुकी संघर्ष
मणिपुर में नगा जनजातियों और कुकी के खूनी संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है जिसकी कड़वाहट अब भी सामने आ जाती है.
13 सितंबर, 1993 को कथित तौर पर एनएससीएन (आई-एम) से जुड़े नगा चरमपंथियों ने मणिपुर के तमेंगलोंग और तत्कालीन सेनापति जिले के विभिन्न स्थानों में एक ही दिन में लगभग 115 कुकी नागरिकों की हत्या कर दी थी. कुकी लोग इन हत्याओं को जाउपी नरसंहार के रूप में संदर्भित करते हैं.
नगाओं और कुकियों के बीच शत्रुता औपनिवेशिक काल से चली आ रही है लेकिन 1990 के दशक का संघर्ष मुख्य रूप से भूमि को लेकर था.
मणिपुर की पहाड़ियों में कुकी अपनी “मातृभूमि” होने का जो दावा करते हैं, एनएससीएन (आई-एम) उसके बड़े हिस्से को ग्रेटर नगालिम का हिस्सा बताता है.
अब कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी हिंसा के मध्य में नगा जनजाति के लोगों का सड़कों पर उतरना राज्य में तनाव का नया मोड़ न ले.
क्योंकि नगा अलगाववादी नेता का कहना है कि हम भारत सरकार को यह साफ कह देना चाहते हैं कि मणिपुर में कुकी और मैतेई के बीच जारी जातीय हिंसा को नियंत्रण करने के नाम पर किसी भी परिस्थिति में सरकार को नगा क्षेत्रों को छूने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
अमित शाह ने कहा- हिंसा कम हो रही है
वहीं अमित शाह ने लोकसभा में पिछले बुधवार को कहा था कि मणिपुर में अब तक 152 लोगों की मौत हो चुकी है. हम इस आंकड़े को छिपना नहीं चाहते. मैं कहना चाहता हूं कि वहां हिंसा कम हो रही है. आग में घी न डालें.
गृहमंत्री ने कहा कि मणिपुर हिंसा के मामले में 14 हज़ार 898 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 11 हज़ार 6 FIR हुई हैं.
वहीं 4 मई के वायरल वीडियो को लेकर अमित शाह ने कहा कि यह समाज पर एक धब्बा है. शाह ने कहा कि अगर वीडियो डीजीपी के साथ साझा किया गया होता तो हम 5 मई को गिरफ्तारियां कर चुके होते. वीडियो सामने आने के बाद 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चल रहा है.
अमित शाह ने कहा कि मेरे राज्य मंत्री नित्यानंद ने वहां 23 दिन बिताए हैं. मुझसे पहले मणिपुर में कोई नहीं गया था, मैंने वहां तीन दिन बिताए. मैं हर सप्ताह यूनिफाइड कमांड के साथ सुरक्षा स्थिति का आकलन करता हूं.
उन्होंने कहा कि हम स्थिति पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं. बॉर्डर सुरक्षित करने के लिए हम फेंसिंग लगा रहे हैं. हमने बायोमेट्रिक्स का काम तेज कर दिया है. इस सदन के माध्यम से मैं दोनों समुदायों से अपील करना चाहता हूं. हिंसा जवाब नहीं है. हम मैतेई और कुकी दोनों समुदाय से बात कर रहे हैं.
पीएम मोदी ने कहा- नॉर्थ ईस्ट हमारा जिगर का टुकड़ा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को मणिपुर के लोगों को आश्वासन दिया कि केंद्र और राज्य सरकार हिंसा प्रभावित राज्य में शांति बहाल करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं और कहा कि महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों के दोषियों को कड़ी सजा दी जाएगी. इस दौरान उन्होंने कहा कि नॉर्थ ईस्ट हमारे लिए हमारा जिगर का टुकड़ा है.
इसी बीच मणिपुर ट्राइबल्स फोरम दिल्ली ने हाल ही में दावा किया कि हिंसा के 100 दिन बीत जाने के बावजूद मणिपुर में कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है. फोरम ने कहा कि मणिपुर में जारी हिंसा में अकेले आदिवासी (कुकी) समाज के 130 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि 55 हज़ार लोग बेघर हुए हैं.
राज्य में 3 मई से हिंसा जारी
तीन मई से कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय के बीच शुरू हुई जातीय हिंसा ने मणिपुर को दो हिस्सों में बांट दिया है. दोनों समुदाय के बीच टकराव इस कदर है कि पहाड़ों पर कुकी और इंफाल घाटी में मैतेई एक दूसरे इलाके में आ जा नहीं सकते.
राज्य में फैली हिंसा के मध्य में मैतेई और कुकी समाज है. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा मांग रहा है. मणिपुर हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने 20 अप्रैल को इस मामले में एक आदेश दिया था. इस आदेश में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था.
कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई.
इसके बाद से राज्य में लगातार हिंसा की घटनाएं हो रही हैं. अब तक 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि हजारों घरों को जला दिया गया. हिंसा में अब तक 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं. ये लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं.
(Image Credit: PTI)