30 साल की दिव्या (divya) ने वो कर दिखाया, जिसकी मिसाल पनियान समुदाय (Paniya tribe) नहीं बल्कि पूरा आदिवासी समाज दे रहा है. दिव्या पनिया जनजाति की पहली ऐसी आदिवासी महिला हैं जिसे डॉक्टरेट (doctorate) की उपलब्धि हासिल हुई है.
इन्होंने अपनी पीएचडी की डिग्री हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय से पूरी की है. पीचडी के दौरान दिव्या ने अपनी ही जनजाति यानी पनिया आदिवासियों पर अध्यनन किया था.
इस अध्यनन के दौरान उन्हें पनिया आदिवासियों के बारे में कई बातें जानने को मिली.
अगर पनिया समुदाय की भाषा के बारे में बात करें तो ये दक्षिण भारत के अलग अलग भाषाओं का मेलजोल है. लेकिन इस भाषा की कोई भी लिखित लिपि मौजूद नहीं है.
दिव्या ने अपनी इस रिसर्च को ‘पनियान जनजाति: एक सामाजिक अध्ययन’ नाम दिया है. इस पूरे रिसर्च में विश्वविद्यालाय की प्रोफेसर केएम मेट्री ने दिव्या की काफी सहायता की थी.
कौन है पनिया आदिवासी
पनिया आदिवासी केरल का सबसे बड़ा आदिवासी समूह है. यह मुख्य रूप से वायनाड और पड़ोसी राज्य कर्नाटक में रहते हैं. इन्हें पनियार और पनियान भी कहा जाता है. 2011 की जनगणना के अनुसार पनिया आदिवासियों की आबादी 94 हज़ार है. इसके अलावा कर्नाटक में इस जनजाति के 495 सदस्य रह रहे हैं.
थर्स्टन की थ्योरी के मुताबिक पनिया को वायनाड तक जैन गौडंर्स लेकर आए थे. इन्होंने पनिया आदिवासियों को खेती किसानी सिखाई.
वहीं ऐसा भी कहा जाता है की राजा मालबार द्वारा इन्हें वायनाड तक लेकर आया गया. जिसके बाद वे यहां दास के रूप में भूमि पर खेती करते थे. बाद में सरकार द्वारा इन्हें विभिन्न जगहों पर स्थान दे दिया गया.
दिव्या के माता-पिता अशिक्षित हैं. उस बाधा के बावजूद उन्होंने स्कूल और कॉलेज परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन किया.
दिव्या की ये सफलता की कहानी सिर्फ पानिया समुदाय को नहीं बल्कि देश के हर एक आदिवासी को प्रेरित करती है.