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संसदीय पैनल ने आदिवासी न्याय प्रणाली के लिए अलग कानून का सुझाव दिया

समिति ने यह भी कहा कि वह परंपरागत न्याय वितरण तंत्र को नियमित प्रणाली से बदलने की सिफारिश नहीं करती है. समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन उनका विचार है कि इन दो प्रणालियों को विभाजित करने के बजाय, उन मूल निवासियों तक न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए एकजुट होना चाहिए.

एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि आदिवासी न्याय प्रणाली को संसद में एक अलग कानून लाने की जरूरत है. जिसमें राज्यों को अपनी विशेष आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन, जोड़ने या संशोधित करने की स्वतंत्रता हो.

समिति ने जनजातीय संगठनों और जिला परिषदों में आदिवासी महिलाओं के व्यापक प्रतिनिधित्व की भी वकालत की.

‘देश की जनजातीय न्याय प्रणाली और नियमित न्याय प्रणाली के बीच तालमेल’ पर राज्यसभा की 80वीं विभाग-संबंधित संसद की स्थायी समिति ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में आदिवासी आबादी 1,04,281,034 (10 करोड़ 42 लाख 81 हज़ार 34) थी, जो कुल आबादी का 8.61 प्रतिशत है.

न्याय विभाग के हवाले से समिति ने कहा कि आदिवासी न्याय प्रणाली के तहत प्रथाएं असंहिताबद्ध, प्रथागत हैं और एक जनजाति से दूसरी जनजाति से भिन्न होती हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासी न्याय प्रणाली को मूल स्तर पर नियमित न्याय प्रणाली के साथ समन्वयित करने की जरूरत है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “विस्तार से चर्चा करने के बाद समिति इस निष्कर्ष पर पहुंच सकती है कि आदिवासी न्याय प्रणाली को संसद में अलग कानून द्वारा लाने की जरूरत है. जिसमें राज्यों को विशेष राज्य की जरूरत के मुताबिक संशोधन, जोड़ने या संशोधित करने की स्वतंत्रता हो.”

समिति ने यह भी कहा कि वह परंपरागत न्याय वितरण तंत्र को नियमित प्रणाली से बदलने की सिफारिश नहीं करती है. समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन उनका विचार है कि इन दो प्रणालियों को विभाजित करने के बजाय, उन मूल निवासियों तक न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए एकजुट होना चाहिए.

इसमें आगे देखा गया कि कई आदिवासी समाजों में महिलाओं को सार्वजनिक कार्यालयों में भाग लेने की अनुमति नहीं है और उनके संपत्ति अधिकार भी प्रतिबंधित हैं.

समिति का मानना है कि आदिवासी निकायों और जिला परिषदों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को परामर्श और विधायी प्रक्रिया द्वारा प्रोत्साहित किया जा सकता है ताकि स्थानीय प्रशासन में लैंगिक समानता लाई जा सके. जैसा कि पंचायती राज संस्थानों में संविधान के भाग नौ के तहत प्रदान किया गया है.

पैनल ने कहा कि विचार-विमर्श के दौरान न्याय विभाग या जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने जनजातीय न्याय प्रणाली के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया.

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