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‘मन की बात’ में पीएम मोदी ने की झारखंड के इस आदिवासी स्कूल की सराहना

पीएम मोदी ने मन की बात में कहा, "बच्चों को उसी भाषा में पढ़ाया जाए, जिसमें वे सहज महसूस करते है. इसी का उदाहरण देते हुए उन्होंने गुमला ज़िले के मलेगा गाँव में स्थित एक आदिवासी स्कूल के बारे में अपने इस कार्यक्रम में बताया था. "


रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के 108 वें एपीसोड में झारखंड के एक स्कूल की चर्चा की है. जिसके बाद से हीं गुमला जिला में स्थित इस स्कूल में खुशी का माहौल है.

मन की बात में पीएम ने गुमला ज़िला के मंगलो गांव में स्थित आदिवासी कुड़ुख स्कूल का जिक्र किया था.

इस दौरान उन्होंने कहा, “मैं आपको झारखंड के एक आदिवासी गांव के बारे में बताना चाहता हूं. इस गांव ने अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए एक अनूठी पहल की है. बच्चे को उसी भाषा में पढ़ाया जाए, जिसमें वे सहज महसूस करते है.

इस स्कूल की शुरूआत गाँव के एक आदिवासी अरविंद उरांव द्वारा की गई थी. अरविंद ने बताया की आदिवासी बच्चों को अंग्रजी भाषा में पढ़ने में काफी दिक्कत होती थी.

इसलिए उन्होंने गाँव के आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाना शुरू किया था. अब इनके स्कूल में कुल 300 आदिवासी बच्चे पढ़ रहे हैं.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक आदिवासी युवक अरविंद उरांव ने गाँववासियों के सहयोग से इस स्कूल की स्थापना 2008 में की थी.

स्थापना के समय गाँववासियों ने अरविदं की आर्थिक सहायता भी की थी. वहीं तत्कालीन शिक्षा मंत्री गीत श्री उरांव ने भी 85 हाजार रूपये स्कूल को बनाने में दिए थे.

इस गाँव के एक निवासी ने आदिवासी बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की थी. जिसका नाम अरविंद उरांव है.

अरविंद ने बताया कि आदिवासी बच्चों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ने में काफी दिक्कत होती थी. इसलिए उन्होंने गाँव के आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाना शुरू किया. अब इनके स्कूल में कुल 300 आदिवासी बच्चे पढ़ रहे हैं.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक अरविंद उरांव ने ग्रामीणों के सहयोग से इस स्कूल की स्थापना 2008 में की थी.
स्थापना के समय ग्रामीणों ने अरविदं की आर्थिक सहायता भी की थी. वहीं तत्कालीन शिक्षा मंत्री गीत श्री उरांव ने भी 85 हाजार रूपये स्कूल को बनाने में दिए थे.

इस स्कूल में पहले नर्सरी से 10वीं कक्षा तक पढ़ाया जाता था. लेकिन स्थापना की अनुमति ना मिलने से अभी यहां सिर्फ नर्सरी से आठवीं तक पढ़ाया जाता है.

अरविंद बताते हैं कि स्कूल में जनजातीय भाषा में पढ़ाने की प्रेरणा उन्हें गाँव के बच्चों से ही मिली है. उन्होने कहा, “गाँव के सभी बच्चे आपस में कुडुख भाषा में बात करते हैं और बच्चे इसी भाषा को सही से समझ पाते हैं.”

यही कारण है कि उन्होंने स्कूल में जनजातीय भाषा में पढ़ाने का फैसला किया था. इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए सात शिक्षक मौजूद है. लेकिन स्कूल में अभी तक बुनियादी सुविधाओं की कमी है.

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