राजस्थान में चुनाव होने को कुछ ही दिन बाकी है. इसी बीच कल यानी रविवार के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रसारित अपने मन की बात में बांसवाड़ा के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी गोविंद गुरु का ज्रिक किये हैं.
नरेंद्र मोदी ने मन की बात के नए एपिसोड में 17 नवंबर 1913 को बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों के नरसंहार की भी चर्चा की थी.
राजस्थान में 200 सीटों में 25 सीटें एसटी के लिए आरक्षित है. वहीं पिछले साल 1 नवबंर को मोदी ने आदिवासी लोगों को संबोधित करने के लिए मानगढ़ धाम का दौरा भी किया था.
आदिवासी शख्सियत के प्रति मोदी का सम्मान राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पार्टी की चुनावी रणनीति को आकार देने के लिए माना जा रहा है.
उनके भाषण के तुरंत बाद भाजपा के नेताओं की एक श्रृंखला ने गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि दी.
30 अक्टूबर यानि आज गोविंद गुरु जी की पुण्य तिथि है. इसी लिए मोदी ने कहा की राजस्थान और गुजरात के आदिवासी और वंचित समुदायों के लिए गोविंद गुरु जी का बहुत महत्व है.
उन्होनें कहा की नवबंर के महीने में मानगढ़ नरसंहार की बरसी मनाई जाएगी.
नरेन्द्र मोदी सरकार ने राजस्थान और गुजरात के आदिवासियों की मांग पर मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दने की घोषणा की थी.
वहीं इस वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर गहलोत ने मानगढ़ धाम के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की घोषणा की.
कांग्रेस के नेता स्वर्णिम चतुर्वेदी ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘अगर पीएम को राज्य के आदिवासियों की जरा भी परवाह है तो उन्हें मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देना चाहिए.
वे पिछले साल आदिवासियों की उम्मीदें जगाकर आए थे, लेकिन मानगढ़ के विकास पर एक शब्द भी नहीं बोलकर उन्हें निराश कर दिया था.
आज फिर से वह इस मांग पर चुप है. केवल बयानबाजी पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. भाजपा सरकार ने ही इसे राष्ट्रीय स्मारक की तरह विकसित करने की घोषणा की थी.
भारतीय ट्राइबल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वेला राम घोगरा ने कहा, “कांग्रेस और भाजपा दोनों का आदिवासी प्रेम मौसम की तरह है, और यह केवल चुनावों के दौरान आता है.
इसलिए भारतीय ट्राइबल पार्टी स्थानीय लोगों के शासन, संस्कृति और उनके नायकों की रक्षा के लिए चुनाव लड़ रही है.
भाजपा आदिवासियों के हित में कई सारे वादें कर रहे हैं. इसलिए ऐसा माना जा रहा की राजस्थान आदिवासी बहुल इलाका है.
इसी लिए दोनों राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस आदिवासी मतदाताओं को खुश करने में लगे हुए हैं.