गुजरात (Gujarat) के डांग ज़िले(Dang district) में “प्रोजेक्ट देवी” (project Devi) की शुरुआत की गई है, इसे राज्य के हर आदिवासी क्षेत्र में लागू किया जाएगा.
इस परियोजना का उद्देश्य उन महिलाओं, मुख्य रूप से विधवाओं का पुनर्वास, पुन:एकीकरण और सुरक्षा प्रदान करना है, जिन्हें अन्यायपूर्ण ढंग से डायन करार दिया जाता है और उन्हें दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है.
वहीं आदिवासी आबादी वाले ज़िलों में डायन प्रथा (Witch hunting) को खत्म करने के लिए सरकार के सभी विभागों और पुलिस अधीक्षक भी इसमें सहायता करेंगे.
सरकार की तरफ से पुलिस को पीड़िता की पहचान करना और आदिवासी समुदाय से इस बारे में बातचीत करने का निर्देश दिया गया है.
ये बात ध्यान देने वाली है की राज्य के क्षेत्रफल का लगभग 18 प्रतिशत इलाकों में आदिवासी रहते हैं. इस 18 प्रतिशत क्षेत्रफल में 14 पूर्वी ज़िले, 48 तालुकाओं और 5,884 से भी अधिक गाँव शामिल है और इस 18 प्रतिशत क्षेत्रफल के लगभग सभी इलाकें डायन प्रथा से प्रभावित हो सकते हैं.
इस परियोजना के तहत जिन महिलाओं की पहचान डायन प्रथा से पीड़िता के रूप में की जाएगी, उनकी मदद के लिए उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाएगा.
इस पूरे मामले में चिंताजनक बात ये है की डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं को अक्सर आदिवासी समाज में बहिष्कार कर दिया जाता है.
इस मामले से जुड़े पुलिस अधिकारी ने बताया की 2022 में डायन प्रथा से पीड़ित पांच महिलाओं की मौत हो गई थी.
वहीं राज्य गृह मंत्री, हर्ष संघवी ने बताया कि राज्य के दाहोद, महिसागर, पंचमहल, तापी, अरावली और छोटा उदेपुर जैसे ज़िलों में पुलिस अधिकारियों को ऐसी घटनाओं में सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया गया है.
आज़ादी के 75 साल बाद भी देश के कई इलाके डायन प्रथा से आज़ाद नहीं हो पाए है. इस प्रथा पर रोक लगाने के लिए अलग अलग राज्यों में अलग अलग कानून भी बनाए गए है.
लेकिन ये कानून भी ज़मीनी स्तर पर लागू होते हुए नहीं दिखते. इसलिए इतने कानूनों के बावजूद भी डायन प्रथा से महिलाएं आज भी पीड़ित होती हैं.
कानून बनाने के अलावा हर आदिवासी और गैर-आदिवासी इलाकों में डायन प्रथा को कम करने के लिए जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है. जिसके लिए नाटक या नृत्य के माध्यम से लोगों को संदेश पहुंचाया जा सके. क्योंकि ज्यादातर आदिवासी इलाकों में आज भी टीवी जैसे साधान मौजूद नहीं है.
इसके साथ ही ज़्यादा से ज़्यादा से शिक्षा को बढ़ावा देने से भी हम इस प्रथा को खत्म कर सकते हैं.