HomeAdivasi Dailyतेलंगाना में पोडु खेती और वन भूमि पर राजनीतिक संघर्ष

तेलंगाना में पोडु खेती और वन भूमि पर राजनीतिक संघर्ष

सरकार ने कहा है कि दशकों से परंपरागत रूप से खेती करने वाले आदिवासी किसान अवैध अतिक्रमणकारियों के खिलाफ इस अभियान से प्रभावित नहीं होंगे. बल्कि आदिवासियों को भू-स्वामित्व का पट्टा दिया गया है. अधिकारियों ने कहा कि राज्य भर में आदिवासी किसानों को 3 लाख एकड़ से अधिक भूमि आवंटित की गई है.

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के तेलंगाना पहुंचने के साथ ही आदिवासी बस्तियों में अशांति फैल जाती है. इसी मौसम में वन विभाग और आदिवासियों के बीच पोडू भूमि को लेकर झड़पें होती हैं. यह झड़पें न सिर्फ तेलंगाना के इन अंदरूनी इलाकों की शांति भंग करती हैं बल्कि दशकों से बने हुए इस मुद्दे को सुलझाने की सरकार की अनिच्छा भी बयान करती है.

अब बीजेपी ने तेलंगाना में वन क्षेत्रों में आदिवासियों और आदिवासियों के खेती के अधिकार का मुद्दा उठाया है. साथ ही विरोध प्रदर्शन करने और उनके समर्थन में मोटरसाइकिल रैलियां निकालने का संकल्प लिया है. आदिलाबाद के बीजेपी सांसद सोयम बापू राव ने कहा है कि वह जिले में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगे.

 दरअसल तेलंगाना सरकार ने अक्टूबर 2021 में वनों की कटाई से निपटने के प्रयास में जंगलों के अंदर खेती कर रहे भूमिहीन, गैर-आदिवासी किसानों को जंगल से लगते हुए बाहर के हिस्से में भेजने का फ़ैसला किया था.

मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा था कि वन भूमि का अतिक्रमण न हो इसके लिए सभी कदम उठाए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा था कि पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों और आजीविका की रक्षा की जाएगी.

लेकिन तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने मुख्यमंत्री पर इस मुद्दे को सुलझाने के अपने वादे से पीछे हटने का आरोप लगाया है. हाल ही में आदिलाबाद ज़िले में जंगल के भीतर झड़पों की ख़बरें लगातार आती रही हैं. इन्हीं ख़बरों के बीच, संजय कुमार ने आरोप लगाया है कि वन अधिकारी उन आदिवासियों को परेशान कर रहे थे जो अपने परिवार को पालने के लिए फसल बो रहे थे.

वहीं राज्य के वन मंत्री ए इंद्रकरन रेड्डी ने कहा है कि सरकार आदिवासी जीवन के पारंपरिक तरीकों के खिलाफ नहीं है लेकिन बाहरी लोगों पर नकेल कस रही है जो जंगलों में घुसकर संरक्षित भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं.

पोडुभूमि मुद्दा क्या है?

पोडू खेती, जिसमें फसल उगाने के लिए जंगल की जमीन को जलाकर साफ किया जाता है, ये आदिवासियों के लिए आजीविका का एक बड़ा साधन है. लेकिन वन विभाग पर्यावरण की रक्षा और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए इसका विरोध करता है.

वहीं इस वनों की कटाई को रोकने के लिए सरकार खेती के लिए जमीन आवंटित करके खेती करने वालों को घने जंगलों से बाहर के इलाक़े में ले जाना चाहती है. मुख्यमंत्री राव ने पिछले साल राज्य विधानसभा को आश्वासन दिया था कि सरकार वनों की रक्षा और अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए एक अभियान शुरू करेगी.

आदिवासियों का क्या होगा?

सरकार ने कहा है कि दशकों से परंपरागत रूप से खेती करने वाले आदिवासी किसान अवैध अतिक्रमणकारियों के खिलाफ इस अभियान से प्रभावित नहीं होंगे. बल्कि आदिवासियों को भू-स्वामित्व के पट्टे यानि मालिकाना हक़ दिया गया है. अधिकारियों ने कहा है कि राज्य भर में आदिवासी किसानों को 3 लाख एकड़ से अधिक भूमि आवंटित की गई है.

गैर आदिवासी किसानों का क्या?

ये किसान राज्य सरकार को जंगलों के बाहर जमीन आवंटित करने के लिए आवेदन कर सकते हैं. जो लोग जंगलों से बाहर चले गए हैं उन्हें भूमि स्वामित्व प्रमाण पत्र, बिजली और पानी की आपूर्ति, रायतु बंधु लाभ (एक वर्ष में दो फसलों के लिए किसानों के निवेश का समर्थन करने के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू किया गया एक कल्याण कार्यक्रम) और कृषि बीमा योजनाएं दी जाएंगी.

सरकार ने कहा था कि अतिक्रमित भूमि की पहचान के लिए एक सर्वेक्षण किया जाएगा और अतिक्रमण करने वाले किसानों को बाहर निकालने के बाद स्थिति की निगरानी के लिए वन संरक्षण समितियों का गठन किया जाएगा.

क्या है सरकार के कदम की स्थिति?

सरकार ने मुख्य सचिव सोमेश कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था जिसने पोडू किसानों से भूमि के स्वामित्व और वन क्षेत्रों के बाहर भूमि आवंटन के लिए आवेदन आमंत्रित किए. प्रक्रिया की निगरानी के लिए गांव, मंडल और जिला स्तर पर जांच समितियां गठित की गईं. हालांकि यह प्रक्रिया जल्दी ही चरमरा गई क्योंकि 7 लाख एकड़ से अधिक वन भूमि पर दावा करने वाले 1 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे.

वन मंत्री रेड्डी के अनुसार, आवेदनों की जांच करने, आदिवासियों और गैर-आदिवासियों की भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया जारी थी और उन्हें भूमि स्वामित्व दस्तावेज जारी करने में कुछ समय लगेगा.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को मूल आदिवासियों और आदिवासियों से कोई समस्या नहीं है जो हमेशा जंगलों में रहे हैं.  हालांकि, गैर-आदिवासियों द्वारा अतिक्रमण किया गया है. हमने लोगों को आश्वासन दिया है कि जो कोई भी पोडु खेती को छोड़कर जंगल से बाहर जाना चाहता है, उसे अतिरिक्त लाभ के साथ मुफ्त में जमीन दी जाएगी.

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