HomeAdivasi Dailyकर्नाटक: एफ़आरए के जल्द कार्यान्वयन के निर्देश से बंधी है उम्मीद

कर्नाटक: एफ़आरए के जल्द कार्यान्वयन के निर्देश से बंधी है उम्मीद

कर्नाटक में कम-से-कम 70 से 80,000 आदिवासी हैं और उनमें से सिर्फ़ 30,000 ने ही एफ़आरए के तहत दावा किया है. हालांकि, राज्य में आदिवासी समुदायों और दूसरे जंगल में रहने वाले दूसरे लोगों द्वारा एफ़आरए के तहत दायर दावों की कुल संख्या लगभग 2.5 लाख हो सकती है.

कर्नाटक के अनुसूचित जनजाति और जंगल में रहने वाले दूसरे पारंपरिक निवासियों के लिए अच्छी ख़बर है. राज्य में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के कार्यान्वयन से इनको काफ़ी फ़ायदा होगा.

पर्यावरण और जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने हाल ही में एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की थी, जिसमें सभी राज्यों से एफ़आरए के जल्द कार्यान्वयन के लिए कहा गया था.

6 जुलाई को जारी इस विज्ञप्ति में राज्य आदिवासी कल्याण विभाग और वन विभाग को संयुक्त रूप से ग्रामीण विकास विभाग के परामर्श से एक रणनीति तैयार करने का निर्देश दिया गया है.

उम्मीद है कि इससे मनरेगा और एनआरएलएम (National Rural Livelihood Mission) के तहत मिलने वाले फ़ायदे जंगल में रहने वाले दूसरे निवासियों को भी मिल सकेंगे.

वन विभाग को वोनपज इकट्ठा करने वालों के क्षमता निर्माण, कटाई के नए तरीकों को बढ़ावा देने और गैर-लकड़ी वन उत्पादों के स्टोरेज, प्रोसेसिंग और मार्केटेंग के लिए परियोजनाओं बनाने का निर्देश दिया गया है.

सरकार की अलग-अलग योजनाओं के तहत वन अधिकार के तहत आजीविका में मदद करने के अलावा जंगल और पेड़ों की गिनती में सुधार के लिए एग्रोफ़ॉरेस्ट्री, हॉर्टिकल्चर और औषधीय पौधों पर ज़ोर दिया गया है.

विज्ञप्ति पर मिश्रित प्रतिक्रिया

आदिवासी मुद्दों पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि विज्ञप्ति इस बात का सुबूत है कि अब तक एफ़आरए का कार्यान्वयन न सिर्फ़ धीमा था, बल्कि निष्प्रभावी भी था.

कर्नाटक में कम-से-कम 70 से 80,000 आदिवासी हैं और उनमें से सिर्फ़ 30,000 ने ही एफ़आरए के तहत दावा किया है. हालांकि, राज्य में आदिवासी समुदायों और दूसरे जंगल में रहने वाले दूसरे लोगों द्वारा एफ़आरए के तहत दायर दावों की कुल संख्या लगभग 2.5 लाख हो सकती है.

दूसरी चिंता यह है कि माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ने यह कहकर अपनी ज़िम्मेदारी छोड़ दी है कि “राज्य सरकारें अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं और इससे संबंधित मुद्दों को राज्य स्तर पर हल करने की ज़रूरत है”.

कई आवेदन खारिज

एक और चिंता की बात यह है कि राज्य सरकार ने एफ़आरए के तहत दायर अधिकांश दावों को संदिग्ध आधार पर खारिज कर दिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे आवेदकों को जंगलों से बेदखल करने का आदेश दिया था.

लेकिन बाद में अदालत ने ही आदेश पर रोक लगा दी और राज्य को दावों की समीक्षा करने और एक रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश दिया.

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