मध्य प्रदेश (Tribes of Madhya pradesh) के शयोपुर ज़िले (sheopur) में स्थित एक अस्पताल में आदिवासी मां अपने बच्चे के शव को गोदी में लेकर शव वाहन का घंटों तक इंतजार करती रही.
इस घटना के बाद सामाजिक कार्यकर्ता अस्पताल पहुंचे और उन्होंने इस संदर्भ में ज़िला अधिकारियों से बातचीत की.
जिसके बाद आदिवासी परिवार को अपने बच्चे के शव के लिए शव वाहन मिल सका.
मानव अधिकारों (Human Rights) की धज्जियां उड़ा देने की यह घटना 25 जून की है.
इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक शयोपुर ज़िले के अस्पताल में एक आदिवासी परिवार अपने बच्चे के शव को गाँव तक ले जाने के लिए अस्पताल के दरवाज़े पर गिड़गिड़ता रहा.
इस परिवार ने अस्पताल में जिम्मेदार लोगों से बार बार मदद की गुहार लगाई.
आदिवासी मां अपने बच्चे के शव को लेकर घंटों तक इस उम्मीद में बैठी रही कि उसे अपने बच्चे को गाँव तक ले जाने के लिए शव वाहन मिलेगा.
रतोदान गाँव की रहने वाली सुनीता ने 19 जून को ज़िला अस्पताल में एक शिशु को जन्म दिया था. जिसे डॉक्टरों ने SNCU में भर्ती भी किया था.
लेकिन इलाज़ के दौरान बच्चे की मौत हो गई. जिसके बाद आदिवासी परिवार ने बच्चे के शव को गाँव तक ले जाने के लिए अस्पताल से शव वाहन देने का अनुरोध किया.
लेकिन डॉक्टर इसे नगर पालिका की जिम्मेदारी बताकर अपना पल्ला झाड़ते रहे.
आदिवासी परिवार ने कई बार नगर पालिका को कॉल किया और घंटों तक अपने बच्चे के शव के साथ अस्पताल के दरवाज़े पर इंतजार करते रहें.
जब इस पूरे मामले की जानकारी मुकेश नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता कोक् हुई तो उन्होंने मामले में हस्तक्षेप किया. उन्होंने ज़िला अधिकारियों से बात करके बच्चे के शव के लिए शव वाहन का इंतजाम करवाया.
मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िला आदिवासियों में कुपोषण (Malnutrition) के लिए जाना जाता है. यहां पर कुपोषण से आदिवासी बच्चों की मौत एक ऐसा मुद्दा है जिसका समाधान आज तक नहीं हो पाया है.
इस ज़िले में सहरिया आदिवासी (Sahariya Tribe) बड़ी संख्या में रहते हैं.