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तामिलनाडु: आदिवासी गाँव में राशन के लिए 5 किलोमीटर का रास्ता तय करते हैं

तमिलनाडु के कृष्णागिरि ज़िले के कड़कानाथम में आदिवासी महिलाओं को राशन के लिए हर महीने 5 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना पड़ता है. इस गांव से कोई बस या यातायात का साधन भी नहीं है. जाने से ज़्यादा आने की समस्या है क्योंकि घर आते वक्त उन्हें 30 किलोग्राम का राशन उठाकर 5 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना होता है.

तामिलनाडु के कृष्णागिरि ज़िले के आदिवासी गाँव कड़कानाथम में आदिवासियों को आने जाने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. दरअसल गाँव में बस की कोई भी सुविधा नहीं है. साथ ही गाँव में बहुत कम लोगों के पास गाड़ी उपलब्ध है.

गाँव के कई आदिवासी महिलाओं को राशन लेने के लिए 5 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना पड़ता है. क्योंकि गाँव में कोई भी राशन की दुकान (PDS Shop) मौजूद नहीं है.

इसलिए राशन के लिए उन्हें उनके गांव से 5 किलोमीटर दूर एंचेट्टी जाना पड़ता है. राशन लेने जाने से ज़्यादा आने की समस्या है क्योंकि घर आते वक्त उन्हें 30 किलोग्राम का राशन उठाकर 5 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना होता है.

गाँववासियों ने बताई अपनी समस्या

कड़कानाथम गाँव में रहने वाली 28 साल की वी. सालम्माल ने बताया की ग्राम सभा की मीटिंग में उन्होनें राशन की दुकान के लिए राजस्व विभाग के अधिकारियों को (revenue department officials) याचिका दी है.

वहीं 52 साल के. मधेश का कहना है की उन्होंने राशन की दुकान के लिए भवन का भी प्रबन्ध कर लिया है. लेकिन प्रशासन उनके लंबे समय से चली रही मांग को पूरा नहीं कर पा रहे थे.

अब मंगलवार को एंचेट्टी के सप्लाई ऑफिसर गांव पहुंचे हैं. जहां उन्होंने कुछ गाँववासियो के साथ बातचीत भी की. इसके साथ उन्होंने यह भी आश्वासन दिया की एक महीने के भीतर वह राशन की दुकान के लिए सप्लाई ऑफिसर को भेजेंगे.

राशन की यह दिक्कत तामिलनाडु के लगभग हर आदिवासी गाँव में देखने को मिलती है. मुंचकोंडापल्ली और उरीगाम के पंचायत ऑफिसर भी राशन की दुकान बनाने के लिए जिला प्रशासन में अब तक दो याचिका दर्ज करावा चुके हैं.

वही उरीगाम के कोवाली गाँव भी कई सालों से राशन की दुकान की मांग कर रहे हैं. लेकिन गाँव के पंचायत ऑफिसर का कहना है की कोवाली गाँव में एक और नई दुकान बनाना मुश्किल है क्योंकि गाँव में पहले से ही दो राशन की दुकान मौजूद है.

आदिवासियों को अक्सर अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए सरकार से लड़ना पड़ता है. सरकार आदिवासियों की मदद के लिए कई योजनाएं बनाती तो है. लेकिन यह सभी योजनाएं ज़ामीनी स्तर सहीं ढंग से लागू नहीं हो पाती हैं.

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