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पारसनाथ पहाड़ी विवाद: आदिवासियों ने दी 11 फरवरी से रेल रोको आंदोलन की चेतावनी

सलखान मुर्मू ने दावा किया कि आदिवासियों के लिए पारसनाथ का मारंग बुरु जुग जहर थान हिंदुओं के लिए अयोध्या में बने राम मंदिर से कम महत्वपूर्ण नहीं है.

पारसनाथ पहाड़ी आखिर किसका होगा, इसका विवाद गहराता जा रहा है. इस बीच पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सलखान मुर्मू ने इसे आदिवासी देवता मारंग बुरु का पूजा स्थल होने का दावा करते हुए सोमवार को घोषणा की कि वे 11 फरवरी से पारसनाथ पहाड़ी को फिर से हासिल करने के लिए अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन शुरू करेंगे.

सोमवार को धनबाद में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने पारसनाथ में बने जैन मंदिर को आदिवासियों को वापस नहीं करने पर कथित तौर पर ध्वस्त करने की धमकी भी दी.

उन्होंने कहा, “आदिवासी सेंगल ने पहले ही 17 जनवरी से मारंग बुरु बचाओ भारत यात्रा शुरू कर दी है और पांच राज्यों के 50 जिला मुख्यालयों पर विरोध रैलियां आयोजित की हैं. क्योंकि अब तक किसी भी सरकारी एजेंसी ने हमारी मांगों को नहीं सुना है इसलिए हमने 11 फरवरी से अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है.”

उन्होंने दावा किया कि आदिवासियों के लिए पारसनाथ का मारंग बुरु जुग जहर थान हिंदुओं के लिए अयोध्या में बने राम मंदिर से कम महत्वपूर्ण नहीं है.

उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर जैनियों को संथाल जनजातियों के पवित्र स्थान को “बेचने” का आरोप लगाते हुए कहा, “अगर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इसे आदिवासियों को वापस नहीं लौटाते हैं तो हम भी जैन मंदिर को ध्वस्त करने पर विचार कर सकते हैं और केंद्र सरकार से सर्वदलीय संवाद बुलाने और विवाद को हल करने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करने की मांग करते हैं. पारसनाथ पहाड़ियों पर उनके पूजा स्थल पर आदिवासियों का पहला अधिकार है और यहां तक कि अंग्रेजों ने 1911 में आदिवासियों के पक्ष में इस मुद्दे को सुलझाया था.”

पारसनाथ का विवाद शुरू कैसे हुआ?

2019 में झारखंड की रघुवर दास की सरकार ने केंद्र सरकार को एक पत्र भेजा. इस पत्र में उन्होंने अनुरोध किया कि पारसनाथ को eco tourism क्षेत्र घोषित किया जाए. जिसके लिए केंद्र में मौजूद बीजेपी सरकार ने हामी भरी थी.

2020 में कोविड-19 महामारी ने भारत को अपनी चपेट में लिया और भारत की आर्थिक, स्वास्थ्य और पर्यटन  स्थिति चरमा गई. कोविड की इस मार से उभरने के लिए ही 17 फरवरी 2022 में झारखंड सरकार ने एक नोटिस जारी किया और पारसनाथ के साथ झारखंड में मौजूद 6 धार्मिक स्थलों को धार्मिक पर्यटक स्थल घोषित कर दिया. ताकि झारखंड में दोबारा से पर्यटन शुरू किया जा सके. सरकार को उम्मीद रही होगी कि पारसनाथ पर पर्यटन को बढ़ावा देने से राज्य को कुछ पैसा मिल सकेगा. 

लेकिन जैन समुदाय को सरकार का यह फ़ैसला एकदम रास नहीं आया. जैन समुदाय ने आशंका ज़ाहिर करते हुए कहा कि पर्यटन से उनके तीर्थ स्थल की पवित्रता भंग हो सकती है. उनका मानना है कि अगर यहा पर लोगों की आवाजाही बढ़ती है तो पारसनाथ में रह रहे जीवों और पहाड़ पर असर पड़ेगा.

इस बीच 28 दिसंबर 2022 को पारसनाथ से जुड़ी एक खबर सामने आती है. जिसके अनुसार एक जैन जात्री ने पारसनाथ पर आए एक पर्यटक के साथ झगड़ा किया. उन्होंने इस पर्यटक को मांसाहारी बताते हुए आरोप लगाया कि वह जैन तीर्थ स्थल की गरिमा और पवित्रता को भंग कर रहे हैं. इस घटना ने आदिवासी समुदाय में बेचैनी पैदा कर दी.

उधर जैन समुदाय ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार से एक आदेश जारी करवा दिया. इस आदेश के अनुसार पारसनाथ पहाड़ के क्षेत्र में किसी भी पर्यटक गतिविधि पर रोक लगा दी गई.

इस फ़ैसले के बाद आदिवासी समुदाय की आशंका भरोसे में बदल गई कि जैन समुदाय सिर्फ़ पारसनाथ मंदिर पर अपना स्वामित्व नहीं मानता है. बल्कि यह समुदाय इस पूरे इलाक़े में अपनी शर्तें थोप रहा है.

इसके बाद आदिवासियों ने यह ऐलान किया कि पारसनाथ आदिवासियों का मारंग बुरू है. यहाँ के आदिवासी समुदाय पीढ़ियों से यहाँ पर अपने देवी देवताओं और पुरखों को पूजते रहे हैं. साथ ही आदिवासी परंपरा के अनुसार पुरखों और देवताओं को शराब और मांस दोनों चढ़ाया जाता है.

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