बेहदीनखलम महोत्सव (Behdienkhlam Festival) मेघालय के पनार जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला सबसे प्रसिद्ध त्योहार है. मेघालय में इस सामूहिक उत्सव को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है
बेहदीनखलम हर वर्ष बुवाई के बाद जुलाई के महीने में मनाया जाने वाला सांस्कृतिक महोत्सव है. मुख्य तौर पर यह उत्सव पनार जनजाति के बीच मशहूर है लेकिन जैंतिया जनजाति भी इसे खूब हर्षोल्लास के साथ मनाती है.
बेहदीनखलम नाम के इस महोत्सव का शाब्दिक अर्थ हैजा (cholera) के दानव को भगाना है. इस यात्रा महोत्सव में भगवान का आह्वान किया जाता है और आशीर्वाद मांगा जाता है कि उनकी फसल किसी कीड़े के सम्पर्क में न आए और बढ़िया फसल हो. इसके साथ अच्छे स्वास्थ्य की भी कामना की जाती है.
इस उत्सव के अनुष्ठान इसके अर्थ से मिलते-जुलते ही हैं. क्योंकि इस यात्रा के दौरान युवा पुरुष हर घर की छत पर बांस के डंडे मारकर बुरी आत्मा, प्लेग और बीमारी को दूर भगाने का प्रतीकात्मक संकेत देते हैं.
यह एक ऐसा महोत्सव है जिसमें नृत्य होता तो है लेकिन महिलाएं नहीं नाचतीं. ऐसा नहीं है कि उन्हें नाचने की अनुमति नहीं है बल्कि वे अपने पूर्वजों की आत्माओं को बलि चढ़ाने के महत्वपूर्ण काम में व्यस्त होती हैं.
बेदीनखलम उत्सव समारोह में तीन दिनों तक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. उत्सव के आखिरी दिन लोग ऐटनार नाम की एक जगह पर इकट्ठा होते हैं और पाइप और ड्रम की धुन पर नाचते हैं.
इस दिन आदिवासी अपनी सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक पोशाक पहनते हैं. साथ ही मेघालय के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र के आदिवासियों के बीच एक मैच भी खेला जाता है. जिसे डैड-लावाकोर कहते हैं. यह फुटबॉल की तरह का ही एक खेल है जिसे लकड़ी की गेंद से खेला जाता है.
ऐसी धारणाएँ हैं कि जिस क्षेत्र की टीम मैच जीतती है, आने वाले साल में उस क्षेत्र के किसानों की फसल बहुत बढ़िया होती है. इस उत्सव के दौरान पूरे क्षेत्र में मौज-मस्ती का माहौल रहता है.
इस उत्सव के दौरान बारिश होने को शुभ संकेत माना जाता है.
उत्सव के आखिरी दिन, सजावटी टावर जैसे खंभे को तोड़ दिया जाता है. इस खंभे को रथ बोला जाता है. उसके बाद झील में विसर्जित कर दिया जाता है. इसे अंधेरी ताकतों पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है.
यह उत्सव आदिवासियों के लिए अपनी मूल सांस्कृतिक प्रथाओं को संरक्षित करने का एक तरीका है.