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MBB Explainer: ITLF क्या है, जो मणिपुर में कुकी-ज़ो समुदाय की आवाज़ बना है

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम का गठन पिछले साल 9 जून को हुआ था जब कई आदिवासी नेता एन बीरेन सिंह सरकार की कथित "आदिवासी विरोधी" नीतियों का मुकाबला करने के लिए एक साथ आए थे.

15 नवंबर को मणिपुर (Manipur) में कुकी-ज़ो (Kuki-Zo) लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक समूह, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (Indigenous Tribal Leaders’ Forum) या आईटीएलएफ ने केंद्र सरकार को एक अल्टीमेटम दिया.

इस अल्टीमेटम में मैतेई-प्रभुत्व वाले घाटी क्षेत्रों से अलग किए गए कुकी-ज़ो के लिए एक अलग प्रशासन की मांग शामिल थी. संगठन ने कहा कि अगर केंद्र द्वारा दो हफ्ते में उनकी मांग पूरी नहीं की गई तो वो पहाड़ी जिलों – तेंगनौपाल, कांगपोकपी और चुराचांदपुर में “स्व-शासन” स्थापित करेगा.

चुराचांदपुर में आयोजित एक विरोध रैली में आईटीएलएफ के महासचिव मुआन टॉम्बिंग ने समय सीमा की घोषणा की. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि “स्व-शासन” से उनका क्या तात्पर्य है.

टॉम्बिंग के इस बयान के एक दिन बाद मणिपुर सरकार ने कहा कि आईटीएलएफ के बयान का “कोई कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं है.” साथ ही मणिपुर पुलिस ने टॉम्बिंग के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

मई में मणिपुर में मैतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच गृहयुद्ध छिड़ने के बाद से राज्य जातीय आधार पर विभाजित हो गया है. दोनों समुदाय उन क्षेत्रों तक ही सीमित हैं जहां वे बहुसंख्यक हैं.

इस हिंसा के बाद से ही कुकी-ज़ो ने बार-बार मैतेई क्षेत्रों से पूर्ण अलगाव की मांग की है. वहीं यह एक ऐसा आह्वान जिसका मैतेई लोगों ने कड़ा विरोध किया है.

आईटीएलएफ के प्रवक्ता गिन्ज़ा वुएलज़ोंग ने कहा कि मई में संघर्ष की शुरुआत के बाद से ही मैतेई सरकार से एक अलग प्रशासन हमेशा हमारी मांग रही है. उन्होंने स्पष्ट किया कि टॉम्बिंग ने भी “संविधान के दायरे में एक स्वशासी निकाय” का आह्वान किया है.

टॉम्बिंग के बयान को राज्य मशीनरी से औपचारिक विभाजन की मांग को स्वीकार करने के लिए केंद्र पर दबाव बढ़ाने और दबाव डालने के प्रयास के रूप में देखा गया, जिसे कुकी-ज़ो पक्षपातपूर्ण मानते हैं.

इसके अलावा जो बात सामने आई, वह यह है कि यह आह्वान काफी वक्त से मौजूद या अधिक पारंपरिक जनजातीय समूहों से नहीं बल्कि एक साल से अधिक पुराने आईटीएलएफ से आया है. जो एक ऐसा संगठन है जो मणिपुर में जातीय संघर्ष यानि मौजूदा दौर में कुकी-ज़ो की आवाज़ बन गया है.

ITLF का गठन कैसे हुआ?

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम का गठन पिछले साल 9 जून को हुआ था जब कई आदिवासी नेता एन बीरेन सिंह सरकार की “आदिवासी विरोधी” नीतियों का मुकाबला करने के लिए एक साथ आए थे.

आईटीएलएफ के अध्यक्ष पागिन हाओकिप ने बताया कि संगठन के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक राजनीतिक नैरेटिव तैयार करना था जो राज्य सरकार की उस बात का खंडन करेगी कि कुकी-ज़ो अतिक्रमणकारी थे और मणिपुर के मूल निवासी नहीं थे.

हाओकिप ने कहा कि मुख्यमंत्री के रूप में बीरेन सिंह के दूसरे कार्यकाल के कुछ महीने बाद इस तरह के दबाव की जरूरत महसूस की गई थी.

उन्होंने कहा, “मणिपुर सरकार के कार्यों में जनजातीय भूमि के बड़े क्षेत्रों को संरक्षित वन और आरक्षित वन, वन्यजीव अभयारण्य और प्रस्तावित वन भंडार घोषित करना शामिल है, जो सभी 1927 के वन अधिनियम द्वारा शासित हैं.”

वन भूमि पर “अतिक्रमण” और पहाड़ी जिलों में पोस्ता की खेती के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी सरकार के अभियान को कुकी-ज़ो को राज्य में बाहरी लोगों के रूप में स्थापित करने और उनकी जमीन छीनने के प्रयास के रूप में देखा गया था.

हाओकिप ने कहा, “सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति का विरोध करने के लिए एक एकीकृत मोर्चे की आवश्यकता को पहचानते हुए चुराचांदपुर जिले के सभी मान्यता प्राप्त जनजातियों के नेताओं ने जून 2022 में आईटीएलएफ का गठन किया.”

इसकी ताकत का पहला प्रदर्शन इस साल मार्च में हुआ था.

संरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण करने के आरोपी ग्रामीणों को बेदखल करने के विरोध में कुकी-ज़ो समुदाय के हजारों लोगों ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए चुराचांदपुर, कांगपोकपी, तेंगनौपाल और जिरीबाम के आदिवासी-बहुल पहाड़ी जिलों में आयोजित रैलियों में हिस्सा लिया था.

एक प्रभावशाली आवाज़

3 मई को जातीय संघर्ष छिड़ गया था, जो मणिपुर हाई कोर्ट के उस आदेश के कारण शुरू हुआ, जिसमें राज्य सरकार को मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया था. ऐसे में आईटीएलएफ अपने आप में आ गया.

कुकी-ज़ो समुदाय से संबंधित एक राजनीतिक वैज्ञानिक ने बताया कि आईटीएलएफ व्यापक पैमाने पर लोकप्रिय समर्थन के साथ एक बहुत ही बड़े राजनीतिक मोर्चे के रूप में उभरा है.

उन्होंने कहा कि आईटीएलएफ एक विशेष राजनीतिक नैरेटिव को आगे बढ़ाने, संसाधन जुटाने और मणिपुर से परे नेटवर्क स्थापित करने की कोशिश में “सबसे संगठित और सबसे मुखर” रहा है.

ITLF ने कुकी-ज़ो को गैर-स्वदेशी के रूप में लेबल करने के प्रयासों को रोकने में काफी प्रभावशाली भूमिका निभाई है. जब समुदाय के खिलाफ गलत सूचना का मुकाबला करने की बात आई तो आईटीएलएफ तुरंत तैयार हो गया.

आईटीएलएफ के प्रवक्ता वुअलज़ोंग ने कहा कि हिंसा के शुरुआती दिनों में इम्फाल घाटी में मैतेई-नियंत्रित मीडिया द्वारा फैलाई गई “झूठी कहानियों” का मुकाबला करने की जरूरत महसूस की गई थी.

उन्होंने कहा कि आईटीएलएफ मीडिया सेल ने हमारे सोशल मीडिया हैंडल को चलाने में मदद के लिए राज्य के बाहर के लोगों से समर्थन मांगा. धीरे-धीरे हम अपने खिलाफ झूठे प्रचार का मुकाबला कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि आखिरकार विभिन्न राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के मीडियाकर्मी मणिपुर आए. हमने अपनी कहानियाँ सुनाईं, उन्होंने पीड़ितों से बात की और खुद देखा कि ज़मीन पर क्या हुआ. इस तरह उन्होंने हम पर विश्वास करना शुरू कर दिया और दुनिया के सामने हमारी बात कहना शुरू कर दिया.

चुराचांदपुर के एक कुकी-ज़ो कार्यकर्ता ने बताया कि पिछले कई महीनों में संगठन का विकास प्रभावशाली रहा है.

कार्यकर्ता ने कहा कि चुराचांदपुर में स्थानीय मुद्दों में हस्तक्षेप करने वाले एक साधारण समूह से यह एक काफी बड़े संगठन में विकसित हो गया है, जिसमें विभिन्न कार्यक्षेत्र लगभग पूरे समय काम करते हैं.

जानकारी के मुताबिक आईटीएलएफ के पास अपने कई विभागों को चलाने के लिए लगभग 200 लोगों का समर्पित स्टाफ है.

संगठन का लक्ष्य कुकी-ज़ो के अंतर्गत आने वाली सभी जनजातियों को शामिल करना है. इसमें पाइट, ज़ू, हमार, सिम्ते, वैफेई, कुकी, मिज़ो और गंगटे जनजातियों के सदस्य शामिल हैं.

आईटीएलएफ की कार्यकारी समिति में प्रत्येक जनजाति का एक प्रतिनिधि होता है. लेकिन समूह को मुख्य रूप से पाइट जनजाति परिषद के एक वर्ग और राज्य के शीर्ष कुकी निकाय कुकी इनपी की चुराचांदपुर इकाई से अपनी ताकत मिलती है.

हालांकि, इसकी बढ़ती प्रमुखता के बावजूद कई लोग कहते हैं कि आईटीएलएफ का शासन सभी कुकी-बहुल पहाड़ी जिलों पर नहीं चलता है. चुराचांदपुर से आगे संगठन की ज्यादा मौजूदगी नहीं है.

उदाहरण के लिए, कांगपोकपी जिले में जनजातीय एकता समिति या सीओटीयू, जिसका गठन 4 मई को हुआ था, सबसे प्रमुख नागरिक समाज समूह है. इसी तरह हिल ट्राइबल काउंसिल को मोरेह, टेंग्नौपाल जिले में सबसे प्रभावशाली कुकी-ज़ो नागरिक समाज समूह माना जाता है.

सीओटीयू के अध्यक्ष थांगलेन किपगेन ने कहना है कि आईटीएलएफ का कांगपोकपी में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. यहां हम आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.

जब आईटीएलएफ ने “स्व-शासन” का आह्वान किया तो समूहों के भीतर कुछ असंतोष था क्योंकि टॉम्बिंग के बयान देने से पहले उनसे परामर्श नहीं किया गया था.

अजांग खोंगसाई, जो राज्य कुकी इनपी में शीर्ष कुकी संगठन के प्रमुख हैं. वो उन लोगों में से एक हैं जो मानते हैं कि आईटीएलएफ ने बंदूक तान दी है.

उनका कहना है कि वे (ITLF) अंतिम निर्णय लेने के लिए अधिकृत नहीं हैं क्योंकि उनके पास अन्य कुकी-ज़ो बसे हुए क्षेत्रों में जनादेश नहीं है. वे पूरे कुकी-ज़ो समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते.

कुकी-ज़ो समुदाय के एक वकील ने बताया कि आईटीएलएफ ने मैतेई-प्रभुत्व वाले बिष्णुपुर जिले और चुराचांदपुर के बीच “बफर ज़ोन” में अगस्त में कुकी पीड़ितों को सामूहिक रूप से दफनाने का आह्वान करने में भी इसी तरह जल्दबाजी की थी.

समुदायों के बीच हुई हिंसा के कारण केंद्रीय गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप से दफ़नाना टाल दिया गया. उन्होंने कहा कि समुदाय के भीतर बहुत से लोगों ने सोचा कि यह समय से पहले, गलत समय पर और एकतरफा था.

लेकिन सभी आलोचनाओं के बावजूद कई नेता इस बात पर सहमत हुए कि बीरेन सिंह सरकार द्वारा म्यांमार से अवैध कुकी-चिन आप्रवासियों पर संघर्ष का आरोप लगाने के प्रयासों के सामने कुकी-ज़ो समुदाय की आवाज़ को बढ़ाने में आईटीएलएफ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

(Image Courtesy: ITLF)

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