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पीएम मोदी के पिथौरागढ़ के ड्रेस को बनाने वाली भोटिया जनजाति कौन है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ पहुंचे हैं . यहां पर उनका एक अलग रूप देखने को मिला है. पीएम नरेंद्र मोदी एक ऐसी ड्रेस में नजर आए हैं. जो की यह ड्रेस भोटिया जनजाति की ओर से तैयार किया जाता है. ऊन से बनने वाले ड्रेस को पिथौरागढ़ के जनजाति लोग बना कर तैयार करते हैं.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ के पर्वती कुंड मंदिर पहुंचे. वहां कैलाश दर्शन के दौरान पीएम मोदी एक अलग ही रंग-रूप में नजर आएं.

उन्होंने एक क्रीम कलर का ओवरकोट जैसा एक ड्रेस पहन रखा था. ये ड्रेस उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों का एक पारंपरिक ड्रेस है.


चार धाम जाने वाले यात्रियों के लिए यह ड्रेस भोटिया जनजाति के लोग तैयार करते हैं. यही उनकी कमाई का जरिया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने जब इस ड्रेस को पहना तो इसे बनाने वाली भोटिया जनजाति की चर्चा शुरू हो गई है.

भोटिया जनजाति
भोटिया एक घुमंतू जनजाति मानी जाती रही है. ये जनजाति मंगोलॉयड विशेषताओं से संबंधित है. यह प्रदेश की प्रमुख जनजातियों में से एक है.

प्रदेश के अल्मोड़ा, चमोली, पिथौड़ागढ़ और उत्तरकाशी जिले में इस जनजाति के लोग मुख्य रूप से निवास करते हैं.
भोटिया शब्द की उत्पत्ति भोट से हुई है.

भोट तिब्बती मूल के लोगों के लिए एक पांरपरिक नाम है इस समुदाय के सामाजिक मानदंडों में भी काफी ढील दी गई है. हालांकि, समुदाय की सबसे बड़ी विशेषता है कि सामाजिक स्तर पर पुरुषों और महिलाओं को एक समान स्थान दिया गया है.


भोटिया जनजाति की पांच श्रेणियां
भोटिया जनजाति में रंग, जौहरी, तोलचा, मार्चा और जद मुख्य श्रेणियां है. तोलचा और मोर्चा श्रेणी के भोटिया चमोली और जद भोटिया उत्तरकाशी जिले में निवास करते हैं. जौहरी और रगं भोटिया पिथौरागढ़ में निवास करते हैं.

भोटिया समुदाय के लोग मौसम देवता गबला को पूजते हैं. भोटिया जनजातियों का ऐसा मानना है की मौसम और गबला भगवान की पूजा करने से अधिक बारिश और बर्फ नहीं गिरता है.


भोटिया जनजाति को लेकर ये दावा किया जाता है कि ये सदियों से नीती और माणा घाटी में निवास करते हैं. नीती और माणा घाटी में भोटिया जनजाति के 20 हजार लोग निवास करते हैं.


पहले के समय में इन घाटियों के लोग तिब्बत से नमक, ऊन, घी का व्यापार करते थे। इसके बाद यहां गांव-गांव में इसके बदले में खाद्यान्न का आदान-प्रदान होता था.


लेकिन साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद तिब्बत से व्यापार बंद हुआ. इसके बाद ग्रामीण खेती-किसानी करने लगे.
भारत-चीन युद्ध के बाद जिंदगी बदल गई.


भारत-चीन युद्ध के बाद भोटिया जनजाति के लिए चीजें बदल गईं. तिब्बत से व्यापार खत्म हुआ तो लोगों ने खेती शुरू की. बाद में सेना की बढ़ती चौकसी और घाटियों में निगरानी से भी बदलाव आया.

किसानों की करीब 60 फीसदी जमीन सेना ने अपने पास रखी. इसके बदले उन्हें मुआवजा दिया जान लगा. ग्रामीण अपनी बची जमीन पर राजमा और आलू की खेती करते हैं.

ठंड अधिक होने के कारण यहां पर धान और गेहूं की फसल नहीं उपजती है. स्थानीय ग्रामीण ऊन के कपड़े बनाने का भी काम करते हैं.

महिलाएं भी इस काम को करती हैं. इसे मेले और चारधाम यात्रा में बेचा जाता है. यही ड्रेस पीएम मोदी ने भी पहनी थी.
भोटिया जनजाति के लोग हिमालय बेल्ट से संबंधित मूल (स्वदेशी) लोग हैं.

वहीं नेपाल में वे नेपाल के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में रहते हैं. जहां वे और अन्य तिब्बती क्षेत्र के ऑटोचथोनस (स्वदेशी) लोग हैं.


भोटिया भारतीय राज्यों जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में भी रहते हैं.


उत्तर प्रदेश में भोटिया जनजाति बहराईच, गोंडा, लखीमपुर, लखनऊ, बाराबंकी, कानपुर नगर, कानपुर देहात और खीरी जिलों में रहती है.

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