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आदिवासी पहचान के मसले पर हीरो बने हेमंत सोरेन का लिटमस टेस्ट है रूपा तिर्की केस

इतने बड़े स्तर पर एक मौत पर सवाल उठाए जा रहे हैं और लोग सड़क पर उतर रहे हैं, तो सरकार लोगों के ग़ुस्से को ख़ारिज कर आगे नहीं बढ़ सकती. सरकार को यह ध्यान में रखना होता है कि जनता के आक्रोश की वजह से ही एक पार्टी को सत्ता से बाहर कर लोग आपको सत्ता में लाये हैं.

साहिबगंज थाना प्रभारी रूपा तिर्की मामले में सोमवार को राँची में एक और प्रदर्शन हुआ. सरना प्रार्थना सभा ने सोमवार को अल्बर्ट एक्का चौक विरोध प्रदर्शन किया.

प्रदर्शन करने वाले संगठन के नेताओं का कहना है कि पुलिस पूरे मामले को ग़लत दिशा में ले जाने का प्रयास कर रही है. 

प्रदर्शनकारियों का हत्या को आत्महत्या का रूप दिया जा रहा है. सोमवार को ही साहिबगंज के डीएसपी प्रमोद कुमार मिश्रा रूपा तिर्की के परिवार से मिलने पहुँचे.

लेकिन उनके घर पर इस पुलिस अधिकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ा.  

पुलिस को देखते ही बड़ी संख्या मे ग्रामीण रूपा तिर्की के घर पर जुट गए. लोगों ने साहिबगंज पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की और साहिबगंज पुलिस वापस जाओ के नारे लगाए.

यहाँ पर एक बार फिर लोगों ने सीबीआई जांच की माँग की है. डीएसपी रूपा के परिजनो से मिलकर डीएसपी ने अपने आने का कारण और जांच में मदद करने की बात कर ही रहे थे कि विरोध शुरू हो गया.

रूपा तिर्की के अंतिम संस्कार की तस्वीर

डीएसपी प्रमोद मिश्रा का कहना था कि परिवार को जाँच में मदद करनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने लोगों और रूपा के परिवार को आश्वस्त करने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि हर हाल में रूपा तिर्की के परिवार को इंसाफ़ मिलेगा. 

लेकिन रूपा तिर्की के पिता देवानंद उरांव ने कहा कि एसआईटी जांच सिर्फ धोखा है. हमें सिर्फ सीबीआई जांच ही चाहिए. जब तक झारखंड सरकार सीबीआई जांच की अनुशंसा नहीं कर देती है तब तक हम सभी परिजनो के अलावा आदिवासी समाज के लोग चुपचाप नहीं बैठेंगे.

रूपा तिर्की मामले में पुलिस ने अभी शिव कुमार कनौजिया नाम के एक पुलिस अधिकारी को गिरफ़्तार किया है. मीडिया में छपी ख़बरों के अनुसार शिव कुमार रूपा तिर्की का दोस्त था. यह भी बताया जा रहा है कि दोनों की बातचीत का एक ऑडियो भी पुलिस को मिला है. 

लेकिन रूपा तिर्की का परिवार, आदिवासी संगठन और काफ़ी हद तक झारखंड के आम आदिवासी भी पुलिस की थ्योरी पर विश्वास नहीं कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी लगातार रूपा तिर्की के परिवार को इंसाफ़ दिलाने की बातें हो रही हैं. 

सोशल मीडिया पर बड़ा प्रभाव रखने वाले कई लोगों ने रूपा तिर्की मामले पर आवाज़ उठाई है. इसके अलावा रूपा तिर्की के गले में फंदे की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर तैर रही हैं. 

रूपा तिर्की मामले में आक्रोश बढ़ रहा है

इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर, लगातार आत्महत्या की थ्योरी को चुनौती दी जा रही है. बेशक राज्य में विपक्षी दल बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता इस मामले में हेमंत सोरेन को घेरने में लगे हैं.

लेकिन रूपा तिर्की मामले में ऐसे लोग भी इंसाफ़ की माँग कर रहे हैं जो हेमंत सरकार के मित्र ही कहे जा सकते हैं. 

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का अभी तक इस मामले में कोई बयान नहीं आया है. अलबत्ता उनके किसी मंत्री ने ट्विटर के ज़रिए यह कहने की कोशिश की थी कि रूपा तिर्की मामले को राजनीतिक कारणों से तूल दिया जा रहा है.

बेशक यह आत्मघाती बयान ही कहा जा सकता है. जब इतने बड़े स्तर पर एक मौत पर सवाल उठाए जा रहे हैं और लोग सड़क पर उतर रहे हैं, तो सरकार लोगों के ग़ुस्से को ख़ारिज कर आगे नहीं बढ़ सकती.

इस तरह के उदाहरण एक नहीं कई मिल जाएँगे. मसलन इसी तरह के बयान यूपीए के कुछ मंत्रियों ने दिये थे जब सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. राजनीति में जनता के आक्रोश को ख़ारिज करने से ख़तरनाक कुछ नहीं होता है. 

सरकार को यह ध्यान में रखना होता है कि जनता के आक्रोश की वजह से ही एक पार्टी को सत्ता से बाहर कर लोग आपको सत्ता में लाये हैं. 

जहां तक झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बात है, मेरी नज़र में वो कम से कम अभी तक बेहद सफल मुख्यमंत्री हैं. दो मोर्चों पर उन्होंने बड़ी सफलता पाई है. एक आदिवासी पहचान के मामले में और दूसरी एक आधुनिक सोच और बदलाव की तमन्ना रखने वाले आदिवासी नेता की छवि.

हेमंत सोरेन ने हाल ही में कोविड-19 से निपटने के सिलसिले में प्रधानमंत्री की फ़ोन कॉल के बाद जो बयान दिया, उसकी तारीफ़ सिर्फ़ झारखंड में नहीं हुई.

हेमंत सोरेन ने आधुनिक सोच के आदिवासी नेता की पहचान बनाई है

इसके अलावा हेमंत सोरेन जब से मुख्यमंत्री बने हैं वो सोशल मीडिया के ज़रिए आने वाले सवालों और मदद की गुहार पर तुरंत हरकत में आते हैं.

उन्होंने कोविड-19 की पहली लहर में पलायन कर झारखंड वापस लौटे मज़दूरों के रोज़गार से संबंधित जो बयान दिए, उन्हें पॉलिटिक्ली करेक्ट की श्रेणी में रखा जाएगा.

हेमंत सरकार ने आदिवासियों की अलग धार्मिक पहचान की माँग का खुल कर समर्थन किया. उन्होंने इस सिलसिले में विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पास किया.

इसके अलावा एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में बोलते हुए उन्होंने साफ़ कहा कि हिंदू धर्म की पहचान आदिवासियों पर नहीं थोपी जा सकती है.

हेमंत सोरेन ने आदिवासियों में पहचान के मसले पर बेचैनी और बहस को सही समय पर पकड़ा. इसके अलावा उन्होंने जिस कुशलता से गठबंधन की सरकार को अभी तक चलाया है, वो शाबाशी के पात्र हैं. 

लेकिन रूपा तिर्की मामले में उनकी ख़ामोशी का क्या कारण है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. मैं कोई अंदाज़ा लगाना चाहता भी नहीं हूँ कि उनकी इस बारे में क्या रणनीति है, या फिर उनकी कोई रणनीति है भी या नहीं. 

हाँ इस मामले में कुछ बिना माँगी सलाह देने की हिमाक़त कर रहा हूँ. इस उम्मीद के साथ की वो यह सलाह उन तक पहुँचेगी. 

इस मामले में सीबीआई की जाँच की माँग हो रही है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सीबीआई, ईडी और एनआईए जैसी संस्थाएँ आज पहले से अधिक कुख्यात हो चुकी हैं.

हेमंत सोरेन को ध्यान रखना होगा कि जनता का आक्रोश ख़ारिज नहीं करना चाहिए

अब ये सिर्फ़ पिंजरे में बंद तोते नहीं हैं. अब ये गाइडेड मिसाइल हैं जो चुन चुन कर सरकार पर सवाल उठाने वालों और विपक्ष के नेताओं और दलों को ध्वस्त करने का काम कर रही हैं.

एक बार यह मान भी लिया जाए कि सीबीआई रूपा तिर्की मामले में अंततः सच निकाल कर बाहर रख देगी. लेकिन इस बीच तथाकथित सूत्रों के हवाले से जो ख़बरें छपेंगी, वो हेमंत सोरेन सरकार के लिए सिरदर्द बन जाएँगी. 

इसके बावजूद मेरी सलाह है कि हेमंत सोरेन और उनकी पूरी सरकार को इस मामले में लोगों के आक्रोश का संज्ञान लेना ही चाहिए. इसके साथ ही मुख्यमंत्री को ख़ुद इस परिवार से मिलना चाहिए.

अगर मुख्यमंत्री आश्वस्त हैं कि उनकी पुलिस इस मामले में सही दिशा में जाँच कर रही है तो सबसे पहले परिवार को भरोसा दिलाएँ.

इसके अलावा यह भी ज़रूरी है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले पर अभी तक की जाँच के बारे में पारदर्शिता दिखाते हुए राज्य के लोगों को भरोसा दिलाएँ की इस मामले में इंसाफ़ हो रहा है.

अगर इस मामले में उनके किसी नज़दीकी पर सवाल उठ रहे हैं, तो उन सवालों की जाँच हो और जाँच होती हुई नज़र भी आनी चाहिए. 

अंत में अगर परिवार और राज्य के लोगों का आक्रोश कम नहीं होता है तो सीबीआई की जाँच की सिफ़ारिश करें. अभी तक आपने जिस तरह से राज्य के लोगों का भरोसा जीता है, मुझे विश्वास है कि सीबीआई की लीक ख़बरों से वो भरोसा नहीं टूटेगा. 

आपने आदिवासी पहचान के साथ एक आधुनिक सोच वाले मुख्यमंत्री की जो छवि बनाने में कामयाबी पाई है, वो दांव पर है. 

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