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लोकसभा चुनाव 2024: भरूच सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला, BJP और AAP के बाद ‘बाप’ की एंट्री

गुजरात के आदिवासी बहुल इलाका झगाड़िया से छोटा भाई वसावा 6 बार विधायक रहे चुके हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में वे पहले भरूच सीट से उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए थे. लेकिन अब उन्होंने अपनी ये सीट अपने छोटे बेटे दिलीप वसावा को सौंप दी है.

झगाड़िया (Jhagadia) के पूर्व विधायक छोटू भाई वसावा (Chotu bhai Vasava) दो हफ्ते पहले बाप पार्टी में शामिल हुए थे. छोटू वसावा पहले भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के सदस्य थे. लेकिन अब वे बाप पार्टी (BAP Party) के राष्ट्रीय संयोजक बन गए है.

बाप पार्टी की सदस्यता मिलते ही उन्होंने अपने छोटे बेटे, दिलीप (Dilip Vasava) के राजनीति करियर को आगे बढ़ाने का प्रयास किया.

मंगलवार को छोटू वसावा ने दिलीप को भरूच से उम्मीदवार के रूप में उतारा है. पहले इस निर्वाचन क्षेत्र से छोटू भाई लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे. लेकिन अब उन्होंने अपने बेटे को इस क्षेत्र का उम्मीदवार बना दिया.

दिलीप बाप पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है. लोकसभा चुनाव 2024 में दिलीप का मुकाबला बीजेपी के छह बार के भरूच सांसद मनसुख वसावा (Mansukh Vasava) और इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार, आप विधायक चैतर वसावा (Chaitar Vasava) से होगा.

बीजेपी के मनसुख और आप विधायक चैतर दोनों ही बीटीपी पार्टी के सदस्य रह चुके हैं. वहीं मनसुख वसावा भरूच से अब तक पांच बार सांसद बन चुके है.

इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भरूच में मनसुख की अच्छी पकड़ है. लेकिन दूसरी ओर दिलीप वसावा के साथ उनके पिता छोटू वसावा है.

छोटू भाई वसावा भील सुमदाय से आते है. भील समुदाय का गुजरात सहित मध्यप्रदेश और राजस्थान में अधिक वर्चस्व है.

इसलिए आदिवासी वोट के नज़रिये से देखे तो छोटू भाई वसावा एक महत्वपूर्ण नाम बन जाता है.

2011 की जनगणना के मुताबिक भरूच की कुल जनसंख्या लगभग 15 लाख हैं, जिनमें से लगभग 5 लाख आदिवासी हैं.
इस पृष्ठभूमि में यह कहा जा सकता है कि भरूच सीट पर आदिवासी मतदाताओं का प्रभाव भी होगा.

छोटू वसावा

छोटू वसावा ने 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले बीटीपी की स्थापना की थी. उस समय जनता दल ने बीजेपी के साथ गठबंधन करने का फैसला किया था.

उस समय बीटीपी पार्टी ने दो सीटें – झगड़िया से छोटू वसावा और उनके बेटे महेश ने डेडियापाड़ा से जीत हासिल की थी.

लेकिन 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बाप और बेटे के बीच मतभेद हुए. महेश वसावा ने झगाड़िया सीट से अपना नामाकंन किया. इस सीट से उनके पिता छोटू वसावा 6 बार विधायक रहे चुके है.

लेकिन महेश का यह फैसला पिता छोटू वसावा को पसंद नही आया और उन्होंने झगाड़िया से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया.

जिसके बाद महेश वसावा ने अपना नामाकंन वापस ले लिया. लेकिन इस चुनाव में छोटू वसावा बीजेपी के रितेश वसावा से हार गए.

जब उनके बड़े बेटे महेश वसावा ने बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया. उसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने एक अलग पार्टी भारतीय आदिवासी संविधान सेना की घोषणा की. लेकिन इसके एक दिन बाद ही वे बाप में शामिल हो गए.

बाप पार्टी के राजस्थान में तीन विधायक और मध्यप्रदेश में एक विधायक है.

महेश वसावा का पार्टी को छोड़कर जाने से बीटीपी पार्टी कमज़ोर पड़ने लगी थी. छोटू वसावा ने नए सिरे से शुरू करने के बारे में सोचा ही था कि उन्हें बाप पार्टी से बुलावा आ गया.

आखिरकार छोटू वसावा ने भी बीटीपी पार्टी की सदस्यता छोड़ बाप में शामिल हो गए.

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