HomeAdivasi Dailyक्या बाबूलाल मरांडी आदिवासियों के बीच अपनी पकड़ खो रहे हैं?

क्या बाबूलाल मरांडी आदिवासियों के बीच अपनी पकड़ खो रहे हैं?

बाबूलाल मरांडी नवंबर 2000 से मार्च 2003 तक मुख्यमंत्री रहे. चार बार सांसद रह चुके मरांडी धीरे-धीरे भाजपा से दूर होते गए और 2006 में उन्होंने जेवीएम (पी) पार्टी की शुरुआत की. वर्तमान में वे अपने गृह जिले गिरिडीह से राजधनवार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.

झारखंड में भाजपा के सत्ता से बाहर होने के बमुश्किल दो महीने बाद मुस्कुराते हुए अमित शाह ने बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) का स्वागत किया था. जिन्होंने अपने झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का उस पार्टी में विलय कर दिया, जिसे उन्होंने लगभग 14 साल पहले छोड़ दिया था.

2020 के विलय को भाजपा के लिए एक मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा गया क्योंकि यह न सिर्फ झारखंड के पहले मुख्यमंत्री की ‘घर वापसी’ थी बल्कि पार्टी को एक प्रमुख आदिवासी चेहरा और साथ ही एक अनुभवी आयोजक और रणनीतिकार भी मिला.

तब से सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं और एक आम चुनाव के बाद झारखंड के राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस के सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ बाबूलाल मरांडी कितने प्रभावी हैं.

6 जून को जब उन्होंने नवनिर्वाचित भाजपा सांसदों को संबोधित किया तो माहौल बिल्कुल भी खुशनुमा नहीं था. हालांकि बाबूलाल मरांडी ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को प्रोत्साहित करने की पूरी कोशिश की. समारोह में मुस्कान फीकी थी और हाव-भाव उदास थे.

इस दौरान बाबूलाल मरांडी ने कहा, “यह ऐतिहासिक सफलता है. हमें अब आराम नहीं करना चाहिए. झारखंड में भी मजबूत सरकार बनानी है.”

उन्होंने कहा कि जनता ने एनडीए को झारखंड में सबसे बड़ा गठबंधन बनाया है. उन्होंने कहा कि कुल 14 संसदीय सीटों में से 9 सीटें एनडीए को दी गई हैं.

लेकिन फैक्ट कुछ और कहते हैं… भाजपा का वोट शेयर 2019 लोकसभा चुनाव के 51.6 प्रतिशत से घटकर लोकसभा चुनाव 2024 में 44.60 प्रतिशत रह गया है.

2019 के बाद से सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, जिनमें से दुमका, मधुपुर, डुमरी और गांडेय पर झामुमो ने जीत दर्ज की है. गांडेय में सबसे हालिया उपचुनाव जून में हुआ था, जिसमें जेल में बंद झामुमो नेता हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने भाजपा उम्मीदवार को 27 हज़ार से अधिक मतों से हराया था.

बेरमो और मांडर सीट को कांग्रेस ने बरकरार रखा, जबकि भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी ने कांग्रेस से रामगढ़ छीन लिया.

इस चर्चा में लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष करिया मुंडा का 8 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा गया पत्र भी शामिल है, जिसमें उन्होंने झारखंड में लोकसभा के नतीजों पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है.

89 वर्षीय करिया ने लिखा, “उम्र के इस पड़ाव पर मैं झारखंड में संगठन की मौजूदा स्थिति और बिरसा मुंडा की जन्मस्थली खूंटी समेत पांच आदिवासी सीटों पर भाजपा की हार से आहत हूं. मैं अपनी इस चिंता से राष्ट्रीय अध्यक्ष (जे.पी.नड्डा) को भी अवगत कराना चाहूंगा. मेरी यह चिंता इस राज्य की आदिवासी पहचान और संस्कृति को लेकर है, जिसे आप समझ सकते हैं.”

आदिवासियों के लिए आरक्षित खूंटी सीट से पद्म भूषण पुरस्कार विजेता करिया मुंडा आठ बार सांसद रहे हैं. उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ काम किया है.

2014 चुनाव में भाजपा ने उनकी जगह खूंटी से अर्जुन मुंडा को टिकट दिया. तब अर्जुन मुंडा जीते थे लेकिन इस बार वे 1.49 लाख वोटों से हार गए.

झारखंड में चुनाव से पहले भाजपा को सभी 14 लोकसभा सीटों पर जीत का भरोसा था लेकिन जब नतीजे आए तो वह खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा, दुमका और राजमहल – ये पांच आदिवासी सीटें हार गई.

सिंहभूम में 1.68 लाख वोटों से हारने वाली भाजपा की गीता कोड़ा ने माना कि आदिवासियों तक पहुंचने के लिए जमीनी स्तर पर अधिक प्रयास किए जाने चाहिए थे.

उन्होंने मीडिया से कहा, “हम नतीजों से दुखी और चिंतित हैं क्योंकि झामुमो-कांग्रेस आरक्षण और संविधान जैसे मुद्दों पर आदिवासियों को गुमराह करने में सफल रही है.”

लोहरदगा में 1.39 लाख वोटों से हारने के बावजूद भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव ने हिम्मत दिखाते हुए कहा कि आठ सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है.

उन्होंने कहा कि चुनाव में हार-जीत तो लगी रहती है. हम लगातार संगठन के काम में लगे रहते हैं. भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. आदिवासी अब झामुमो-कांग्रेस के छल को समझ रहे हैं.

क्या खत्म हो रहा मरांडी का असर?

बाबूलाल मरांडी नवंबर 2000 से मार्च 2003 तक मुख्यमंत्री रहे. चार बार सांसद रह चुके मरांडी धीरे-धीरे भाजपा से दूर होते गए और 2006 में उन्होंने जेवीएम (पी) पार्टी की शुरुआत की. वर्तमान में वे अपने गृह जिले गिरिडीह से राजधनवार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.

2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने झारखंड में आदिवासी क्षेत्रों पर अपनी पकड़ और सरकार दोनों खो दी. आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से भाजपा को केवल दो सीटें मिली थी.

2020 में जेवीएम (पी)-भाजपा के विलय के बाद उन्हें उसी साल फरवरी में भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया. लेकिन उनके खिलाफ दलबदल के लंबित मामले के कारण उन्हें तीन साल तक विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं दिया गया.

हालांकि, बाबूलाल मरांडी ने जिलों और ब्लॉकों का दौरा करना और कार्यकर्ताओं को संगठित करना शुरू कर दिया और हेमंत सोरेन सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए और उसकी कथित अनियमितताओं को उजागर किया.

पिछले साल 4 जुलाई को उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. जिसे लोकसभा चुनाव के मद्देनजर फ्रंटफुट पर खेलने के अवसर के रूप में देखा गया था.

हालांकि, भाजपा विधायक दल के नेता अमर कुमार बाउरी राज्य चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को लेकर उत्साहित हैं.

उनका कहना है कि प्रदेश पार्टी अध्यक्ष के साथ मिलकर हमने पूरी ताकत से चुनाव लड़ा है. एनडीए ने 9 सीटें जीती हैं और हम 50 विधानसभा क्षेत्रों में आगे हैं. हम निश्चित रूप से आगामी विधानसभा चुनाव जीतेंगे.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 57 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाने का दावा किया था. लेकिन कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में यह 25 सीटों पर सिमट गई.

संथाल परगना की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले राजनीति विज्ञान के व्याख्याता सुमन कुमार कहते हैं कि दुमका बाबूलाल मरांडी की राजनीतिक कर्मभूमि रही है. 1998 में मरांडी ने यहां शिबू सोरेन को हराया था लेकिन इस बार भाजपा यह सीट हार गई.

इससे पहले 2020 के दुमका विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. ऐसा लगता है कि संथालों के बीच बाबूलाल मरांडी का प्रभाव और पकड़ कम हो गई है.

आदिवासी बहुल संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्र में 32 विधानसभा सीटें हैं और 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में सत्ता हासिल करने के लिए ये सीटें महत्वपूर्ण हैं.

2019 में भाजपा ने यहां केवल 4 सीटें जीती थीं.

झारखंड में इस साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस गठबंधन भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा है.

झामुमो के दिग्गज नेता स्टीफन मरांडी ने अपने आकलन में दो टूक कहा कि भाजपा नेताओं को दूसरों पर आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए.

उन्होंने मीडिया से कहा, “भाजपा और केंद्र सरकार आदिवासियों और झारखंडियों के मुद्दों और भावनाओं को समझने में विफल रही है. जहां तक ​​बाबूलाल मरांडी की बात है तो आदिवासियों के बीच उनकी स्वीकार्यता खत्म हो चुकी है और वे भाजपा के लिए इस्तेमाल किए जा चुके कारतूस साबित हो रहे हैं. विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ेगा.”

हालांकि, आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टियों की हार-जीत के दावों के बीच भाजपा प्रदेश कार्यालय में शुक्रवार को केंद्रीय बाल एवं महिला विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी और रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ का स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया गया था.

इस दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने दावा किया कि झारखंड में डबल इंजन की सरकार बनानी है. उन्होंने राज्य को मंत्रिपरिषद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय नेतृत्व का आभार जताया.

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