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पीएम मोदी 11 फरवरी को मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ से लोकसभा चुनाव का करेंगे आगाज

झाबुआ को भीलों की राजनीति और सांस्कृतिक पहचान की दृष्टि से भीलों की राजधानी भी माना जाता है. लोकसभा के लिहाज से देखें तो पश्चिम मध्य प्रदेश की 3 आदिवासी आरक्षित सीटें, गुजरात की 2 और राजस्थान की 2 लोकसभा सीटें झाबुआ के आसपास आती हैं.

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपने चुनाव प्रचार अभियान का आगाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ से करेंगे. दरअसल आदिवासी बहुल सीटों पर बड़े स्कोर की उम्मीद करते हुए पीएम मोदी 11 फरवरी को रतलाम-झाबुआ एसटी निर्वाचन क्षेत्र में लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंकेंगे.

पीएम पश्चिम मध्य प्रदेश के भील-जनजाति बहुल झाबुआ जिले में गोपालपुरा हवाई पट्टी के पास एक विशाल जनजातीय रैली को संबोधित करेंगे. जिसमें रतलाम-झाबुआ एसटी निर्वाचन क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्रों में से तीन शामिल हैं.

रतलाम-झाबुआ एसटी सीट और गुना सीट मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दो गढ़ थे, जिन्हें 2019 के राष्ट्रीय चुनावों में मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने जीत लिया था, भले ही उस समय कांग्रेस सरकार सत्ता में थी.

मध्य प्रदेश बीजेपी भी प्रधानमंत्री मोदी की जनसभा की तैयारियों में जुट गई है. बीजेपी के प्रदेश प्रभारी डॉक्टर महेंद्र सिंह, सह प्रभारी सतीश उपाध्याय, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद शर्मा झाबुआ पहुंचे और कार्यक्रम स्थल के नजदीक गोपालपुरा हवाई पट्टी और पास के मैदान का प्रशासनिक अमले के साथ निरीक्षण किया.

इस दौरान प्रदेश सरकार के दो मंत्री नागरसिंह चौहान और निर्मला भूरिया भी मौजूद थीं. निरीक्षण के बाद कार्यकर्ताओं की बैठक कर जनसभा को सफल बनाने को लेकर लक्ष्य तय किए.

वीडी शर्मा ने जमीनी स्तर पर तैयारियों की समीक्षा करने के बाद पत्रकारों से कहा, “यह एक ऐतिहासिक आदिवासी रैली होगी जिसमें पीएम मोदी मध्य प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी बिगुल फूंकेंगे.”

वहीं स्थानीय पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक चंद्रभान सिंह भदौरिया के मुताबिक, रैली न केवल पश्चिम एमपी की एक रतलाम-झाबुआ एसटी लोकसभा सीट को साधने की है बल्कि उसी राज्य की आसपास की एलएस सीटों के कुछ क्षेत्रों को लक्षित करेगी.

पड़ोसी राज्य गुजरात के भील जनजाति बहुल दाहोद, छोटा उदयपुर, पंचमहल और महिसागर जिलों के साथ-साथ राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिलों में आदिवासी मतदाताओं को एक संदेश भेजने के लिए रणनीतिक रूप से योजना बनाई गई है.

झाबुआ ही क्यों?

दरअसल, झाबुआ पश्चिम मध्यप्रदेश की आदिवासी राजनीति का केंद्र है. पश्चिम मध्य प्रदेश के धार, रतलाम और इससे गुजरात के दाहोद, महिसागर एवं पंचमहाल जिले सटे हुए हैं और राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले लगे हैं. यह सभी भील आदिवासी बहुल इलाके हैं.

झाबुआ को भीलों की राजनीति और सांस्कृतिक पहचान की दृष्टि से भीलों की राजधानी भी माना जाता है. लोकसभा के लिहाज से देखें तो पश्चिम मध्य प्रदेश की 3 आदिवासी आरक्षित सीटें, गुजरात की 2 और राजस्थान की 2 लोकसभा सीटें झाबुआ के आसपास आती हैं.

हाल ही में राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में झाबुआ और राजस्थान के आदिवासी इलाकों में सत्ता हासिल होने के बावजूद प्रदर्शन अपेक्षा अनुरूप नहीं था इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झाबुआ में 11 फरवरी को विशाल आदिवासी सम्मेलन के जरिए आदिवासियों को साधने की कोशिश करेंगे.

जानकारों के मुताबिक पीएम मोदी इस सभा में आदिवासियों के लिए कुछ बड़े एलान भी कर सकते हैं.

1952 से अब तक रतलाम-झाबुआ एसटी सीट पर हुए 18 चुनावों/उपचुनावों में से कांग्रेस ने 14 बार सीट जीती है. जबकि भाजपा ने 2014 और 2019 में दो बार सीट जीती है.

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