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राजस्थान: गरासिया आदिवासी संस्कृति और इतिहास

राजस्थान में नवंबर 2023 में चुनाव होगा. यहां की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है. उन्हीं समुदायों में से एक है गरासिया जनजाति. आईए इस जनजाति के बारे में थोड़ा जानने-समझने की कोशिश करते हैं.

राजस्थान की कुल जनसंख्या करीब 6 करोड़ 85 लाख (2011 जनगणना) है. इसमें से करीब 15 प्रतिशत यानि 92 लाख 38 हज़ार 534 जनसंख्या आदिवासी लोगों की है.

यहां मूल रुप से भील, मीणा, गरासिया, दामोदर, पटेलिया, सहरिया, कथोड़ी इत्यादी हैं. इतिहासकारों का मत है कि बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ नामक स्थान पर पहले कुशल और भीलों का शासन था.

डॉ कृष्णा आचार्य एक लेख में कहती हैं कि इसे कुशलगढ़ कुशलपाड़ा के नाम से जाना जाता था. इसी लेख में वह कहती हैं कि राजपूतों के राठौर गौत्र के शासकों ने कुशला भील को हराया और कुशलगढ़ राज्य स्थापित किया था.

डूंगरपुर में भी डूंगरिया भील का शासन था.  वहीं लेखक कर्नल टाँड ने लिखा है सन् 1342 में राजपूतों के राव देवा ने मीणा लोगों से बंदूघाटी छीन ली और बूंदी राज्य की स्थापना की. कोटा में कटोरिया भील का शासन था जिसे राजपूतों ने अपना अधिकार जमा लिया.

जयपुर राज्य को पहले आमेर,घूंदर नाम से जाना जाता था, जहां मीणा लोगों का शासन था, जिसे कछवाहा नरेशों ने समाप्त कर अपना राज्य स्थापित कर दिया.

इन सभी उदाहरण का यही मतलब है प्राचीन समय में राजस्थान के कई स्थानों में भील और मीणा का शासन था, जिंन्हे राजपूतों ने एक के बाद एक भील और मीणा को हराकर अपना साम्राज्य बना लिया.

राजपूतों से भील, मीणा हार गये तो उन्होनें पहाड़ों और जंगलो को अपना रहने का स्थान  बना लिया. तभी से जंगलो में रहते हैं. इस कारण आदिवासी अभी भी पिछड़े हुए हैं.

राजस्थान सरकार ने 1981 जनगणना के अनुसार 12 अनुसूचित जनजातिय की उपजनजातियों की एक सूची तैयार की है.

ये भील, मीणा, गरासिया, मीणा, दामोदर, पटेलिया, सहारिया, कथोड़ी, नैकदा, नायक, नायका इत्यादि थी.

सर्वाधिक जनजातियों की जनसंख्या उदयपुर में हैं और क्रमशः बांसवाड़ा , ड़ूंगरपुर, जयपुर, और चित्तौड़गढ़ में हैं. जनजाति के निवास के आधार पर राज्य की जनजातिय जनसंख्या का विश्लेशण करें तो 70 प्रतिशत भील, डूंगरपुर और उदयपुर जिले में रहते हैं. इसके अलावा बाकी 30 प्रतिशत राजस्थान के अन्य क्षेत्र में हैं.

गरासिया जनजाति का जमाव उदयपुर में हैं. जिनका जनसंख्या 56.63 प्रतिशत है. 2001 के जनगणना के अनुसार राजस्थान पढ़े लिखे लोगों की जनसंख्या 60.04 है.

जिसमें जनजातियों की जनसंख्या 44.04 प्रतिशत है और इसमें महिलाओं की जनसंख्या कम है. जनजातियों में बीकानेर में पढ़े लिखे की संख्या ज्यादा है और जालौर जिले में सबसे कम हैं

  राजस्थान की गरासिया जनजाति का जीवन शैली

भील और मीणा जनजातियों के बाद तीसरी बड़ी जनजाति है गरासिया. इनकी वर्तमान में जनसंख्या लगभग 2 लाख है.

कई सारे विद्वानों ने गरासिया शब्द का अलग-अलग उच्चारण किया है. इसलिए कहीं- कहीं इन्हें ग्रारासिया, गरासिया, गिरासिया आदि नामों से भी पुकारा जाता है.

राजस्थान के गरासिया आदिवासी उदयपुर जिले के कोटड़ा, गोगुंदा, तहसीलों में पाली जिले की बाली और दूसरी तहसीलों में सिरोही जिले की आबूरोड, पिंडवाड़ा, रेवदर, सिरोही और शिवगंज तहसीलों में गुजरात राज्य के बनासकांठा, माहीकांठा और रेवकांठा क्षेत्रों में बसे हैं.

कैसा है गरासियों का समाज

राजस्थान के गरासिया तीन अलग-अलग भागों में निवास करते हैं. भाकर, भीतरोटे, और पिंडवाड़ा पट्टा है. (भाकर का मतलब पहाड़ होता है) जिसमें 24 गांव बसी है और ये तीन भागों में बटें हैं. जमूदी, उपलीबोर, और निचला खेजड़ा प्रत्येक में तीन गांव होते हैं. गरासिया अपने रिश्तेदारों से एकता का व्यवहार रखते हैं. गांव की संगठन अपने सदस्यों की सुरक्षा और कल्याण के लिए ध्यान भी रखता है.

गांव में किसी प्रकार का झगड़ा और विवाद का निपटारा ग्राम पंचायत करती है. पंचायत दोषी पाये जाने पर दोषी को दंड भी दे सकती है. गरासिया आदिवासी जाति के आधार पर दो भागों में बंटे है, नानकी और मोटी.

 गरासिया परिवार का रहन-सहन

गरासिया परिवार की महिलाओं को बहुत सम्मान मिलता है. ये अपनी मन-पसंद दुल्हे से शादी करती हैं और इनका विवाह कम उम्र में नहीं होता. गरासिया परिवार की विधवा स्त्रीयों को पुनर्विवाह करने की आजादी होती है.

विवाह के बाद नये जोड़े अलग रहना पसंद करते हैं. गरासियों का मानना है एक अच्छा और सुखी जीवन के लिए विवाह आवश्यक होता है. अपने ही गांव में गरासियों को संबंध बनाना सख्त मना है.

गरासियों में लड़का-लड़की सहमति से भागकर भी शादी करते हैं. विवाह के समय लड़के वाले को लड़की के परिवार को कन्या का मूल्य देना पड़ता है जिसे दापा कहते हैं.

गरासियों में विवाह अनेक प्रकार है

मोरबंधिया विवाह ढालेवासा – इस विवाह के समय ढोल बजाते हैं. वधू की विवाह में 5 से 7 दिन तक पाट बैठती है और विवाह में 200 बांसो की मण्डप बनती है. परांपरागत नृत्यों से विवाह संपन्न होती है.

इतवारी विवाह- इस विवाह में ढोल नहीं बजता और कम से कम खर्चा में विवाह को इतवार के दिन ही संपन्न करते हैं.

मेलबो विवाह- इस विवाह में दुल्हा बारात लेकर नहीं जाता बल्कि लड़की ही लड़के वालों के घर जाती हैं और वहीं विवाह संपन्न होता है.

सेवा विवाह- गरासिया में जब किसी परिवार का लड़का नहीं होता और उनके बुढ़ापे के सहारे के लिए अपनी लड़की के लिए एक ऐसा लड़का तलाश करती हैं जो घर जमाई बनकर उनकी सेवा करें.

नात्रा विवाह- नात्रा विवाह का मतलब है विधवां औरत की पुनर्विवाह जिसमें किसी प्रकार की उत्सव नहीं होती.

 गरासिया आदिवासी का पहनावा

गरासिया लोग रंग-बिरंगे और आकर्षक कपड़े डिजाइन कढ़ाई से भरे वस्त्र पहनते हैं. पुरुष सिर पर पघड़ी और धोती पहनते हैं. वहीं महिलायें घांघरा-चुन्नी ओढ़नी पहनती हैं और स्त्रियां कड़े, पेंडल, हंसली, झोला, झोमरिया आदि आभूषण पहनती हैं.  

गरासिया आदिवासी समुदाय के पुरुष महिला दोनो ही शराब पिते हैं. भोजन में शकाहारी और मंसाहरी खाते हैं. ये लोग गाय, बकरी, बैल, भेड़ और मछली पालते हैं. मैदानी क्षेत्रों में गरासिया आदिवासी खेती करते हैं.  

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