मध्य प्रदेश भारत का वो राज्य है जहां आदिवासी जनसंख्या सबसे अधिक है.
मध्य प्रदेश की जनजातियों में से गोंड आदिवासी समुदाय सबसे बड़ा समूह है. गोंड समुदाय को विश्व की सबसे बड़ी और पुरानी आदिवासी समुदायों में से एक माना जाता है.
यह जनजाति मध्य प्रदेश के बैतूल, होशंगाबाद, सागर, दमोह, रायसेन, बालाघाट, मंडला, खंडवा, शहडोल सहित अन्य जिलों में रहते हैं.
इसके अलावा यह जनजाति छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी रहती है.
इस जनजाति का संबंध प्राक-द्रविड़ समूह से हैं. यह जनजाति चार जनजातियों में विभाजित हैं जो राज गोंड, माड़िया गोंड, धुर्वे गोंड, खतुलवार गोंड हैं.
गोंड समुदाय की धार्मिक आस्था
गोंड समुदाय के लोग मानते हैं कि धरती अनेक देवी देवताओं और उनके पुरखों द्वारा शासित हैं.
इन्हीं देवों में से एक हैं भीमादेव. भीमादेव उनकी सुख और संपन्नता के देवता है.
क्योंकि यह मान्यता है कि अगर भीमादेव प्रसन्न रहे तो अच्छी वर्षा होती हैं. जिसका सीधा असर इनकी धान की फसल पर पड़ता हैं. जिससे इनकी धान की फसल अच्छी होती हैं.
यह जनजाती भीमा देव के साथ-साथ उनकी पत्नी भीमिन की भी प्रतिमा बनाकर दोनों की पूजा करते हैं. भीमा देव को डोकरा भी कहते हैं.
अगर बारिश अधिक समय तक हो रही तो भी भीमा देव का आह्वान किया जाता हैं.
जिसमें भीमा देव और उनकी पत्नी भीमिन का विवाह कराया जाता हैं. फिर विवाह के बाद भीमा देव पुरी गाँव की ओर से वर्षा करने के लिए इन्द्र देवता का आव्हान करते हैं.
भीमा देव की पूजा हर गाँव में अलग- अलग स्थानों पर होती हैं. कहीं गाँव में सीमा पर और कहीं गाँव के गुड़ी के सामने एक पत्थर के रुप में पूजा होती हैं.
भीमादेव के विवाह के लिए पूरा गांव एकजुट होकर चंदा जमा करता हैं. चंदे में रुपये अनाज आदि लिया जाता हैं.
इस विवाह में भी अन्य विवाह की जैसी वस्तुए लगती हैं. बस भीमादेव को हल्दी के अलावा गोबर का लेप लगाया जाता हैं.
इसके बाद जाते-जाते यह कहा जाता है कि तुम्हे शर्म आयेगी तो तुम इसे धोओगे.
आदिवासियों की मान्यता है की भीमादेव अपने ऊपर लगे गोबर का लेप धोने के लिए इंद्रदेव से बारिश का आव्हान करते हैं.
जिससे उनके ऊपर लगे गोबर का लेप साफ हो सके. आदिवासियों के अनुसार ऐसा करने से वर्षा जरुर होती हैं और दैवीय आक्रोश भी दूर होता हैं.
भीमा देव की कहानी
भीमा देव की एक कहानी बहुत प्रचलित हैं. जिसमें यह कहा जाता है कि आदिवासियों का एक भीमा नामक राजा था. जो बहुत आलसी था और अपने आलस के कारण प्रजा की भी चिंता नहीं करता था.
एक बार राज्य में लगातार चार वर्षों तक वर्षा नहीं होने से गाँव में अकाल पड़ गया. प्रजा की विनती सुनकर राजा को अपने आलस्य पर बहुत लज्जा आई और उसने देवताओं से वर्षा आगमन के लिए प्राथना की. इस पर देवता ने प्रकट होकर कहा जिस राज्य का राजा आलसी हो वहां मैं वर्षा क्यों करता?
भीमा ने देवता के सामने अपनी भूल मानी और कहा मेरे आलस के कारण प्रजा को जो कष्ट हुआ इसलिए अब मैनें अपना आलस छोड़ दिया हैं.
तब देवता ने भीमा को कहा अगर तुम स्वंय खेत में जाकर हल चलाओ, खेत जोतो और बीज बोओ. अगर तुम ऐसा करोगे तो मैं समझ जाऊगा की तुमने आलस छोड़ दिया हैं और तब अच्छी वर्षा होगी. इसके बाद गांव में बहुत अच्छी वर्षा हुई.
भीमा देव को बस्तर भूमि का खेतीहर देव भी मानते हैं. मान्यतों के अनुसार जब वह खेती के काम में सक्रिय होकर हल चलाते हैं.
तब उनकी सक्रियता देख देवता पानी बरसाते हैं. जिससे खेत की सिंचाई होती है और सबको अन्न धन की प्राप्ति होती हैं.
भीमा देव पर बस्तर की भतरी बोली में एक कहावत हैं. नागर धरला भीम, पानी देयला इंदर इसका मतलब भीमा ने हल चलाया, इंद्र ने पानी दिया हैं.
इस कहावत से यह पता चलता है कि भीमा देव कृषि कार्य के मिथक हैं. वर्षा ना होने पर यह समझा जाता है कि भीमा देव रुष्ट होकर हल नहीं चला रहे हैं.
भीमा देव को मनाने के लिए भक्तिभाव से इनकी पूजा की जाती हैं.
ज्यादातर मुरिया गांवों का एक मंदिर ऐसे होते हैं. जिनकी छत नहीं होती हैं. चार मुख्य लकड़ी के स्तंभ कुछ आड़े तिरछे डण्डे और बीच में पत्थर लगे होता हैं.
यह पत्थर एक से तीन फुट तक ऊंचे होते हैं. बीच का पत्थर देवता भीमू लपेन का प्रतिनिधित्व करता है. उनके साथ ही उनकी पत्नी भीमसेनिन जिन्हें गोरोड़ी डोकरी भी कहते हैं. यह एक अच्छी बात है कि अब ट्राइबल आर्ट में भी आदिवासी देवी देवताओं की मूर्ति बन रही हैं.
लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि जब आप और हम ये आर्ट ख़रीद रहे होते हैं तो बस ख़ूबसूरती पर नज़र होती है, उसकी कहानी जानने में हमारी दिलचस्पी नहीं होती है.