ओडिशा के मयूरभंज ज़िले में शुक्रवार को पुलिस ने 7 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन लोगों पर आरोप है कि उन्होंने एक 33 साल के लड़के की हत्या की है. जिस लड़के की हत्या की गई है उसका नाम पांडू मुंडा बताया गया है.
पुलिस का कहना है कि इस लड़के की हत्या जादू-टोने के शक में की गई थी. पत्रकारों से बात करते हुए एसडीपीओ (Sub-Divisional-Police Officer) प्रकाश जेम्स टोप्पो ने बताया कि पांडू मुंडा 17 सितंबर से लापता था.
पांडू मुंडा की पत्नी ने उनके लापता होने की सूचना पुलिस को दी थी. पुलिस को पांडू मुंडा का शव एक प्लास्टिक के बैग में सुबरणरेखा नहर में तैरता मिला था.
पुलिस की जाँच में पता चला है कि कोठाबिला गाँव में लोगों को यह शक था कि पांडू मुंडा जादू टोना करता है. गाँव में दो लोगों की मौत हो चुकी थी और कई लोग बीमार थे. इस सिलसिले में भी गाँव के लोगों का मानना था कि पांडू मुंडा ही उन दोनों ही लोगों की मौत के लिए ज़िम्मेदार था.
पांडू मुंडा को गाँव की पंचायत में बुलाया गया और उस पर 50 हज़ार रूपये का जुर्माना लगा दिया गया. लेकिन पांडू ने यह जुर्माना भरने से मना कर दिया. इस वजह से गाँव के लोग पांडू से बेहद नाराज़ थे. 17 सितंबर को कथित तौर पर गाँव को सता रही आत्माओं से मुक्ति के लिए पूजा का आयोजन किया गया.
गाँव से पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार पांडू मूर्मु इस पूजा में नहीं पहुँचा था. उसी दिन पांडू पड़ोस के एक गाँव में फुटबॉल मैच देखने पहुँचा था. वहाँ से लौटते समय उसके गाँव के 7 लोगों ने तौलिये से उसका गला घोंट कर उसको मार डाला.
पुलिस ने बताया है कि पांडू की मौत के बाद उसकी लाश को एक प्लास्टिक बैग में भर कर नहर में फेंक दिया गया.
काला जादू और डायन बता कर हत्याओं के मामले में ओडिशा का मयूरभंज सबसे उपर बताया जाता है. यहाँ पर 2008 से 2013 के बीच 5 साल में 177 हत्याएं इस वजह से हुई थीं. ये मामले वो हैं जो पुलिस के रिकॉर्ड में आने की वजह से गिनती में शामिल हो गए.
देश के आदिवासी इलाक़ों से लगभग हर हफ़्ते जादू टोना के शक में हत्याओं की ख़बर आती रहती है. इस तरह की ख़बरें समाज में किसी तरह का बवाल खड़ा नहीं कर पाती हैं. मुख्यधारा कहे जाने वाला समाज आदिवासी समुदायों में अशिक्षा और अंधविश्वास को कोस कर अपने काम में लग जाता है. वहीं आदिवासी समुदायों के लिए यह एक नॉर्मल बात बन चुकी है.
इस तरह के मामलों में कार्रवाई के लिए पुलिस पर दबाव बनाने वाले कार्यकर्ताओं को समुदाय में समाज को बदनाम करने वाला घोषित कर दिया जाता है. MBB की टीम ने पिछले महीने झारखंड में इस मसले को समझने की कोशिश में कई दिन वहाँ लगाए थे.
MBB की पड़ताल में पता चला कि इस तरह की घटनाएँ आदिवासी गाँवों में बेहद नॉर्मल मानी जाती हैं. इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने में अक्सर पूरा गाँव शामिल होता है. हमने यह भी पाया था कि जादू टोने के शक में औरतों पर ज़ुल्म ज़्यादा किया जाता है.
इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं में से ज़्यादातर ने समुदाय की न्याय व्यवस्था को चलाने वाली संस्थाओं की भूमिका पर सवाल उठाए. इसके अलावा पुलिस भी इस तरह के मामलों में बहुत संवेदनशील नहीं होती है.
काले जादू या टोने के शक में हत्याओं के कई कारण बताए जाते हैं. इनमें कई बार आपसी दुश्मनी या फिर ज़मीन हड़पने की मंशा से भी इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है. शिक्षा की कमी तो एक कारण माना ही जाता है.