वन (संरक्षण) संशोधन बिल को हरि झंडी देने वाली संयुक्त संसदीय समिति के कम से कम 6 सदस्यों ने इस बिल पर आपत्ति दर्ज कराई हैं. इन सदस्यों ने वन भूमि के बड़े हिस्से को इस कानून की पाबंदी से छूट देने पर ऐतराज़ जताया है.
वन (संरक्षण) संशोधन बिल पर विवाद के बाद संसद के दोनों सदनों की सहमति से इसे एक संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया था. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट का फ़ाइनल ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. अभी यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है. लेकिन यह पता चला है कि कमेटी ने इस बिल को पूरी तरह से मंजूरी दी है.
संयुक्त समिति ने इस बिल में किसी तरह के बदलाव का सुझाव या प्रस्ताव नहीं दिया है. अब उम्मीद की जा रही है कि संसद के मानसून सत्र में जब यह रिपोर्ट टेबल हो जाएगी तो सरकार नए सिरे से इस बिल को पास कराने के लिए संसद में लाएगी.
इस बिल के प्रवाधानों पर आपत्ति दर्ज कराने वाले सभी 6 सांसद विपक्षी दलों के हैं. इन सांसदों की आपत्ति में सीमावर्ती इलाकों के 100 किलोमीटर के दायरे में वन भूमि को इस कानून से छूट देने के फ़ैसले को ख़तरनाक बताया है.
इन सांसदों ने अपनी आपत्ति में कहा है कि इस प्रावधान के बाद पूर्वोत्तर राज्यों और हिमालय के जंगल का अधिकांश हिस्सा वन संरक्षण कानून 1980 के दायरे से बाहर हो जाएगा.
विधेयक की मुख्य बातें
- विधेयक वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन करता है ताकि इसे कुछ प्रकार की भूमि पर लागू किया जा सके. इनमें भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत या 1980 अधिनियम लागू होने के बाद सरकारी रिकॉर्ड में जंगल के रूप में अधिसूचित भूमि शामिल है. यह अधिनियम 12 दिसंबर, 1996 से पहले गैर-वन उपयोग में परिवर्तित भूमि पर लागू नहीं होगा.
- यह कुछ प्रकार की भूमि को भी अधिनियम के दायरे से छूट देता है. इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए आवश्यक भारत की सीमा के 100 किमी के भीतर की भूमि, सड़क के किनारे छोटी सुविधाएं और आबादी तक जाने वाली सार्वजनिक सड़कें शामिल हैं.
- राज्य सरकार को किसी भी वन भूमि को किसी निजी संस्था को आवंटित करने के लिए केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होती है. विधेयक इसे सभी संस्थाओं तक विस्तारित करता है, और केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट नियमों और शर्तों पर असाइनमेंट करने की अनुमति देता है.
- अधिनियम कुछ गतिविधियों को निर्दिष्ट करता है जो जंगलों में की जा सकती हैं, जैसे चेक पोस्ट, बाड़ लगाना और पुल स्थापित करना. विधेयक चिड़ियाघर, सफारी और इको-पर्यटन सुविधाएं चलाने की भी अनुमति देता है.
प्रमुख मुद्दे और आपत्ति
- विधेयक भूमि की दो श्रेणियों को अधिनियम के दायरे से बाहर करता है: 25 अक्टूबर, 1980 से पहले वन के रूप में दर्ज भूमि, लेकिन वन के रूप में अधिसूचित नहीं, और वह भूमि जो 12 दिसंबर, 1996 से पहले वन-उपयोग से गैर-वन-उपयोग में बदल गई. यह प्रावधान वनों की कटाई को रोकने पर 1996 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जा सकता है.
- राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों के पास भूमि को छूट देने से उत्तर-पूर्वी राज्यों में वन क्षेत्र और वन्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
- चिड़ियाघरों, पर्यावरण-पर्यटन सुविधाओं और टोही सर्वेक्षणों जैसी परियोजनाओं के लिए पूर्ण छूट से वन भूमि और वन्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
- इस बिल के प्रावधानों को वन अधिकार कानून 2006 के कई प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला बताया जा रहा है.