HomeIdentity & Lifeशौचालय नहीं था तो आदिवासी लड़के को हाथी ने कुचल दिया

शौचालय नहीं था तो आदिवासी लड़के को हाथी ने कुचल दिया

इस दुखद ख़बर का एक शर्मनाक पहलू और है. हाथी ने जिस लड़के को कुचल कर मार डाला, उसकी बस्ती को पूरी तरह से ‘खुले में शौच मुक्त’ (open defecation-free ) होने के लिए ईनाम मिल चुका है. लेकिन सच्चाई ये है कि इस बस्ती के सभी घरों में शौचालय अभी भी नहीं हैं. 

कर्नाटक के कोडगु ज़िले में 24 साल के एक लड़के को हाथी ने कुचल कर मार डाला. यह लड़का जेनु कुरूबा जनजाति (Jenu Kuruba) का बताया गया है. जेनु कुरूबा जनजाति को विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति (PVTG) की श्रेणी में रखा गया है. यह घटना गुरूवार यानि 29 सितंबर की है.

जिस आदिवासी लड़के को हाथी ने मार डाला है उसका नाम बसप्पा बताया गया है. इस लड़के का परिवार डुबारे (Dubare) की आदिवासी बस्ती में रहता है. उसके परिवार के अनुसार यह लड़का दिहाड़ी मज़दूर था. 

स्थानीय लोगों के अनुसार यह घटना उस समय हुई जब बसप्पा अपनी ही बस्ती के एक और आदमी के साथ शौच के लिए जंगल में गया था. वहाँ पर इस हाथी ने इन दोनों को घेर लिया. बसप्पा के साथ जंगल में गए व्यक्ति ने बताया कि वह तो किसी तरह से भागने में कामयाब हो गया, लेकिन बसप्पा गिर पड़ा.

जैसे ही वो गिरा हाथी ने उसे अपने पैरों तले कुचल दिया. इस हाथी के बारे बताया गया है कि यह जंगली हाथी नहीं था. बल्कि यह एक पालतू हाथी था जिसे पास के जंगल में चरने के लिए छोड़ दिया गया था. इस मामले में बसप्पा की पत्नी ने पुलिस केस दर्ज करा दिया है.

वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पालतू हाथी अगर महावत के बिना होता है तो वो ख़तरनाक हो जाता है. शायद ऐसा ही जंगल में हुआ जब उसे चरने के लिए छोड़ दिया गया था. 

शौचालय होता तो यह मौत नहीं होती

इस दुखद ख़बर का एक शर्मनाक पहलू और है. हाथी ने जिस लड़के को कुचल कर मार डाला, उसकी बस्ती को पूरी तरह से ‘खुले में शौच मुक्त’ (open defecation-free ) होने के लिए ईनाम मिल चुका है. लेकिन सच्चाई ये है कि इस बस्ती के सभी घरों में शौचालय अभी भी नहीं हैं. 

इस आदिवासी बस्ती के लोगों का कहना है कि अगर बसप्पा के परिवार को समय से शौचालय के लिए पैसे मिल गए होते तो वह आज ज़िंदा होता. इस गाँव के लोगों ने कहा कि आदिवासी विभाग (Integrated tribal development project) की तरफ से शौचलाय बनाने के लिए फंड रीलीज नहीं किया जा रहा है. 

बेदख़ली का विरोध करते हुए कुरूबा आदिवासी (image – survival international)

जेनु कुरूबा जंगल से बेदख़ल (forced eviction)

जेनु कुरूबा जनजाति को शहद जमा करने वाले लोगों के समूह के तौर पर जाना जाता है. यह समुदाय नागरहोल नेशनल पार्क (Nagarhole National Park) के घने जंगलों में बसा है. 

यह नेशनल पार्क कर्नाटक के दो ज़िलों मैसूर और कोडगु में फैला और इसे अब राजीव गांधी नेशनल पार्क के नाम से भी जाना जाता है. साल 2007 में इस जंगल के क़रीब 1500 वर्ग किलोमीटर को क्रिटिकल टाइगर हेबिटाट (Crtical Tiger Habitat ) के तौर पर जाना जाता है.

जेनु कुरूबा समुदाय के क़रीब 4000 लोग 22 बस्तियों में इस जंगल के भीतर रहते हैं. इन समुदायों का कहना है कि उनकी ना जाने कितनी पीढ़ियाँ इस जंगल में जीती आई हैं. इन आदिवासियों पर लंबे समय से जंगल छोड़ कर बाहर निकलने का दबाव बनाया जा रहा है.

सरकार की तरफ़ से इन आदिवासियों को 10 लाख रूपये तक का मुआवज़ा देने की पेशकश की गई है. लेकिन ये आदिवासी जंगल को नहीं छोड़ना चाहते हैं. क्योंकि इन आदिवासी परिवारों में से ज़्यादातर अभी भी जीविका के परंपरागत साधनों पर ही निर्भर करते हैं.

मसलन इनमें से ज़्यादातर परिवार अभी भी शहद जमा करते हैं. इसके अलावा इस जंगल से वो अलग अलग मौसम में कई तरह के फल और जड़ी बूटी भी जमा करते हैं. वन अधिकार क़ानून 2006, आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य समुदायों को जंगल, ज़मीन और वन उत्पाद पर पूरा हक़ देता है.

लेकिन इस जंगल में बसे ज़्यादातर आदिवासी परिवारों को अभी तक ज़मीन का व्यक्तिगत अधिकार नहीं मिला है. 

विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों (PVTG) को ज़बरदस्ती जंगल से बाहर ला कर बसाना उन्हें मौत के मुंह में धकेलना है. जंगल से बाहर बसा दिये जाने के बाद उनकी जीविका के परंपरागत साधन उनसे छीन जाते हैं. क्योंकि ये आदिवासी समुदाय मुख्यधारा से बहुत दूर रहे हैं तो उनके लिए शहरों में जीविका कमाना बेहद मुश्किल हो जाता है.

इसके अलावा आधुनिक कहे जाने वाले समाज का रवैया उनके प्रति बहुत अच्छा नहीं रहता है. कई शोध और MBB की टीम का अनुभव यह बताता है कि जहां भी PVTG को ज़बरदस्ती जंगल से बेदख़ल किया गया है, उन आदिवासियों में अवसाद (Depression) पैदा हो गया है. 

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