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पोडु भूमि विवाद में फ़ॉरेस्ट रेंज ऑफ़िसर की मौत, दो दिन पहले ही संघर्ष समाप्त करने का दावा किया गया था

अधिकारियों ने बताया है कि वन विभाग के रेंज ऑफ़िसर को यह सूचना दी गई थी कि जंगल के जिस हिस्से में नया पौधारोपण किया गया था वहाँ पर कुछ आदिवासी जानवर चरा रहे हैं. इसके अलावा उन्हें सूचना मिली थी कि आदिवासी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के लिए जंगल से पेड़ भी काट रहे हैं. 

तेलंगाना में जंगल की ज़मीन पर खेती के अधिकार के संघर्ष में कल यानि मंगलवार को एक फ़ॉरेस्ट रेंज ऑफ़िसर की मौत हो गई. भद्रादी कोठागुडम ज़िला प्रशासन के अनुसार गुटीकोया आदिवासी समुदाय के लोगों और वन विभाग के कर्मचारियों के बीच झड़प में रेंज ऑफ़िसर की मौत हुई है.

जिस रेंज ऑफ़िसर की मौत हुई है उसका नाम चलमाला श्रीनिवास राव बताया गया है. प्रशासन का कहना है कि जब वन विभाग की टीम ने आदिवासियों को पोडू भूमि के लिए पेड़ काटने से रोका तो उन्होंने रेंज ऑफ़िसर पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया. 

मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने मारे गए रेंज ऑफ़िसर के परिवार के लिए 50 लाख रूपये की मदद का ऐलान किया है. इसके अलावा उनके परिवार से किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी.

तेलंगाना में पोडु भूमि पर खेती करने के अधिकार के लिए आदिवासी समुदायों के लोगों और वन विभाग का संघर्ष काफ़ी पुराना है. आदिवासियों का दावा है कि जंगल में उनके पुरखों के ज़माने से वो खेती करते आए हैं. जबकि वन विभाग का दावा है कि जंगल की भूमि पर आदिवासी अतिक्रमण करते हैं.

तेलंगाना सरकार ने राज्य में जंगल को बचाने और बढ़ाने के लिए हरिता हरम योजना शुरू की है. इस योजना के ज़रिए जंगल के जिस इलाक़े से पेड़ काटे गए हैं वहाँ पर नए पौध लगाने का कार्यक्रम शुरू किया गया है. इस योजना के तहत पौधारोपण के दौरान भी आदिवासियों और वन विभाग के बीच टकराव हुआ है.

आदिवासियों का कहना है कि जिस ज़मीन पर आदिवासी खेती करता है, उसे तैयार करने में बरसों की मेहनत लगती है. 

इस घटना के बारे में अधिकारियों ने बताया है कि वन विभाग के रेंज ऑफ़िसर को यह सूचना दी गई थी कि जंगल के जिस हिस्से में नया पौधारोपण किया गया था वहाँ पर कुछ आदिवासी जानवर चरा रहे हैं. इसके अलावा उन्हें सूचना मिली थी कि आदिवासी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के लिए जंगल से पेड़ भी काट रहे हैं. 

जब रेंज आफ़िसर मौक़े पर पहुँचे और उन्होंने आदिवासियों को पेड़ काटने से रोका तो उन्होंने रेंज ऑफ़िसर के सिर पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया. 

पोडु भूमि विवाद पेचीदा और राजनीतिक तौर पर संवेदनशील 

पोडु खेती आदिवासियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली खेती की एक पारंपरिक प्रणाली है, जिसके तहत फसल लगाने के लिए हर साल जंगल के अलग-अलग हिस्सों को जलाकर साफ किया जाता है. इसे देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में जूम खेती कहा जाता है, अंग्रेज़ी में shifting agriculture, और तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पोडु खेती.

पिछले साल 2021 में तेलंगाना सरकार ने यह ऐलान किया था कि इस मामले को सुलझाने के लिए नीतिगत कदम उठाए जाएँगे. इस काम के लिए सरकार ने एक कमेटी का गठन भी किया था. दो दिन पहले ही ख़बर मिली थी कि तेलंगाना सरकार ने पोडु भूमि पर आदिवासियों को मालिकाना हक़ देने का काम शुरू कर दिया है.

प्रशासन की तरफ़ से बताया गया था कि सरकार ने आदिवासियों को उस भूमि पर अधिकार देने का फैसला किया है जिस पर वे पीढ़ियों से खेती कर रहे थे. प्रशासन की तरफ़ से यह भी बताया गया कि पोडु भूमि का स्पष्ट सीमांकन होगा. वन कर्मचारियों को पता चलेगा कि कौन-सी जमीन आदिवासियों की है और बाद वाले को पता होगा कि कौन सी वन भूमि है.

एक बार जब भूमि का स्पष्ट सीमांकन हो जाएगा तो फिर पोडु भूमि पर होने वाला संघर्ष भी रूक जाएगा.

आंध्र प्रदेश सरकार ने 2005 से पहले भूमि में फसल उगाने वाले पात्र किसानों को पट्टे जारी किए थे. आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, उस समय 70 हज़ार 53 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 37 हज़ार 324 को जिला-स्तरीय समितियों द्वारा अनुमोदित किया गया था. उस समय क्षेत्रफल की सीमा 1.36 लाख एकड़ थी.

आंध्र प्रदेश से तेलंगाना अलग होने के बाद इस बार 3.1 लाख एकड़ के विस्तार के लिए प्राप्त आवेदनों की संख्या 83 हज़ार थी. तत्कालीन आंध्र प्रदेश की तुलना में प्राप्त आवेदनों की संख्या के मुकाबले काफी अधिक है.

प्राप्त आवेदनों में से सबसे ज्यादा कुमुरांभीम आसिफाबाद जिले से हैं. उनकी संख्या 31 हज़ार 633 है, इसके बाद आदिलाबाद से 24 हज़ार 561 आवेदन, मनचेरियल से 11 हज़ार 938 और निर्मल से 14 हज़ार 868 आवेदन प्राप्त हुए हैं. ये आवेदन 3.01 लाख एकड़ की सीमा के लिए हैं.

आदिवासियों को वन भूमि पर स्वामित्व अधिकार प्रदान करने की लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करने के लिए राज्य सरकार ने तत्कालीन आदिलाबाद जिले में वन, पंचायत राज और राजस्व अधिकारियों के साथ एक सर्वेक्षण शुरू किया.

तीनों विभागों की ओर से नियुक्त सर्वे टीमों ने जमीनी स्तर पर सर्वे पूरा कर उन किसानों की पहचान की जो जमीन पर खेती कर रहे हैं और कौन सी जमीन खाली है. अधिकारियों ने विवरण एकत्र किया और उन्हें ऐप में अपलोड किया जो आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा प्रदान किया गया है.

कर्मचारी ग्राम सभा के समय डेटा दिखाएंगे और सभी की सहमति से स्वामित्व प्रदान करते हुए प्रस्ताव पारित करेंगे. ग्राम-स्तरीय ग्राम सभा संकल्प प्रति जो पारित की जाती है को अंतिम रूप देने के लिए जिला-स्तरीय समिति को भेजा जाएगा.

भूमि सर्वेक्षण पूरा होने के साथ ही वन अधिकारियों ने अधिकार प्रमाण पत्र बांटने के लिए ग्राम सभाएं आयोजित करना शुरू कर दिया है. ऐसा ही एक आयोजन कुमुरांभीम आसिफाबाद जिले के जैनूर मंडल के अंतर्गत आने वाली मरलवई ग्राम पंचायत में हुआ.

वन अनुभाग अधिकारी हरिता ने कहा कि प्रमाण पत्र उन लोगों को सौंपे जा रहे हैं जो 2005 से खेती कर रहे हैं. उन्होंने लोगों से अपनी चिंताओं को ग्राम पंचायत तक पहुंचाने का आग्रह किया. इस कार्यक्रम में सरपंच कनक प्रतिभा वेंकटेश्वर राव, पंचायत सचिव और अन्य वन अधिकारियों ने भी भाग लिया.

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