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दक्षिण गुजरात में बीजेपी की राह कठिन, आप और आदिवासियों ने बढ़ाई मुश्किलें

आदिवासियों के लिए आरक्षित 14 सीटों में से भाजपा के पास सात डांग, कपराडा, उमरगाम, धरमपुर, गांडवी, महुवा और मंगरोल सीटें हैं. इस बार दक्षिण गुजरात की इन सीटों पर भाजपा की राह मुश्किल नजर आ रही है.

गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान की तारीख अब नजदीक आ चुकी हैं बीजेपी समेत सभी पार्टियां अपना प्रचार करने में अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं. लेकिन पहले चरण के चुनाव में दक्षिण गुजरात बीजेपी के लिए बड़ी टेंशन बन चुका है.

विधानसभा चुनाव में दक्षिण गुजरात की 35 सीटें बीजेपी के सत्ता प्राप्ति के लक्ष्य में बड़ी बाधा बन सकती हैं. क्योंकि यहां आम आदमी पार्टी और आदिवासी बीजेपी का गणित बिगाड़ सकते हैं. ये वही इलाका हैं जहां सरकारी परियोजनाओं के खिलाफ स्थानीय आदिवासी प्रदर्शन कर रहे हैं.

1 दिसंबर को गुजरात चुनाव के पहले चरण में जिन 89 सीटों पर चुनाव होंगे, उनमें से 35 सीटें भरूच, नर्मदा, तापी, डांग, सूरत, वलसाड और नवसारी के दक्षिणी जिलों में फैली हुई हैं. ये वही सीटें हैं जहां पर आदिवासी बहुल आबादी ज्यादा रहती है.

2017 में बीजेपी इन 35 में से 25 सीटें जीतने में सफल रही थी, जबकि कांग्रेस ने आठ और भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) ने दो सीटें जीती थीं. लेकिन क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 14 सीटों में से भाजपा केवल पांच पर ही जीत दर्ज कर पायी. इसके बाद हुए उपचुनावों में उसने कांग्रेस से दो और सीटें डांग तथा कपराडा छीन ली थी.  

हालांकि  आदिवासी बहुल इलाके आज भी बीजेपी की दुखती रग माने जाते हैं. जबकि दक्षिण गुजरात में शहरी मतदाता 2017 में पार्टी के साथ खड़े रहे थे. 2015 में सूरत हार्दिक पटेल की अगुवाई में पाटीदार कोटा आंदोलन का केंद्र था और वहां व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई थी.

सूरत में कपड़ा व्यापारी भी वस्तु एवं सेवा कर लगाने के खिलाफ थे लेकिन इन सबके बावजूद भाजपा ने सूरत जिले में 16 विधानसभा सीटों में से 15 पर कब्जा जमाया था जिनमें पाटीदार बहुल वराछा, कामरेज और कतारगाम सीटें शामिल हैं. वह सिर्फ आदिवासी बहुल मांडवी (अनुसूचित जनजाति) पर जीत दर्ज नहीं कर पायी थी.

लेकिन अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप के जोरदार प्रचार अभियान और पिछले साल के सूरत निकाय चुनाव में उसके प्रभावशाली प्रदर्शन के मद्देनजर इस बार मुकाबला फिर से दिलचस्प हो गया है. आप ने सूरत नगर निगम चुनाव में 27 सीटें जीती थी जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था.

कांग्रेस ने वराछा सीट से कभी हार्दिक पटेल के करीब रहे पाटीदार नेता अल्पेश कथीरिया को प्रत्याशी बनाया है. पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस) के एक अन्य नेता धार्मिक मालवीय ओल्पाड से आप की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. आप की गुजरात इकाई के अध्यक्ष गोपाल इटालिया कतारगाम से चुनाव लड़ रहे हैं.आप के प्रदेश उपाध्यक्ष भेमाभाई चौधरी को विश्वास है कि पाटीदार समुदाय के समर्थन से काफी फर्क पड़ेगा.

आदिवासियों के लिए आरक्षित 14 सीटों में से बीजेपी के पास सात डांग, कपराडा, उमरगाम, धरमपुर, गांडवी, महुवा और मंगरोल सीटें हैं. कांग्रेस के युवा आदिवासी चेहरे विधायक अनंत पटेल राजमार्ग परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ नवसारी और वलसाड जिलों में प्रदर्शनों की अगुवाई कर रहे हैं.

हाल ही में उन्होंने पार-तापी-नर्मदा नदी-लिंक परियोजना के खिलाफ दक्षिण गुजरात में बड़े पैमाने पर विरोध का नेतृत्व किया, जिसमें सौराष्ट्र और कच्छ के शुष्क क्षेत्रों में अधिशेष पानी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव था.

आदिवासियों ने दावा किया कि परियोजना के हिस्से के रूप में बनाए जाने वाले बांधों के कारण वे अपनी जमीन और घर खो देंगे. आखिरकार, मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने मई में घोषणा की कि परियोजना को खत्म किया जा रहा है.

कांग्रेस का दावा है कि आदिवासी वोटर बीजेपी पर कभी भरोसा नहीं करेंगे. दक्षिण गुजरात के वरिष्ठ कांग्रेस नेता तुषार चौधरी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में सीटें जीतेगी क्योंकि स्थानीय लोगों ने हमेशा हम पर अपना विश्वास रखा है। भाजपा निश्चित रूप से जमीन खो रही है और यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो सप्ताह के अंतराल में वलसाड जिले में दो रैलियां कीं.”

दूसरी ओर, बीजेपी के मुकेश पटेल ने दावा किया कि उनकी पार्टी के खिलाफ आदिवासी आबादी में कोई गुस्सा नहीं है.

मंत्री और ओलपाड के मौजूदा विधायक ने कहा कि मुझे विश्वास है कि भाजपा सूरत, तापी, डांग, नवसारी और वलसाड जिलों की सभी 28 सीटों पर जीत हासिल करेगी. आदिवासियों में कोई गुस्सा नहीं है. कुछ लोगों ने इन आदिवासियों को भड़काया नहीं तो  स्थानीय लोग जानते हैं कि यह भाजपा सरकार थी जिसने उनकी मांग के अनुसार पेसा (पंचायत विस्तार से अनुसूचित क्षेत्रों तक) अधिनियम को लागू करने का फैसला किया.

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