यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) के हाल ही के आंकड़ो के मुताबिक अनुसूचित जनजाति के छात्र और छात्राएं विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आवदेन तो देते है लेकिन उनमें से लगभग 50 प्रतिशत ही छात्र कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) परिक्षा में बैठ पाते हैं.
दरअसल, साल 2022 में यूजीसी ने एक नया नियम निकाला था जिसके अंतर्गत केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सभी अनिवार्य ग्रेजुएशन एडमिशन के लिए सीयूईटी अनिवार्य कर दिया गया. इससे पहले कुछ विश्वविद्यालयों में सीयूईटी के जारिए और अन्य विश्वविद्यालयों में योग्यता क्रमसूची (Merit List) के जरिए दाखिला दिया जाता था.
ये मेरिट लिस्ट सभी छात्रों के कक्षा बारहवीं में प्राप्त अंको के आधार पर बनती थी. यूजीसी के इस नियम से भले ही शहरों के छात्रों को परेशानी न हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इससे एक नई चुनौती आ गई. जिसमें सबसे बड़ी समस्या थी की ज़्यादातर परीक्षा के केंद्र बड़े शहरो में थे. जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के कई आदिवासी छात्राओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
रोज़रानी मरपल्ली की काहनी
रोज़रानी छतीसगढ़ के बीजापुर ज़िले की रहने वाली है. उनका गांव दूधेरा बीजापुर से 50 किलोमीटर की दूरी में पड़ता है. उसके माता-पिता खेती-किसानी करते हैं. रोज़रानी का हमेशा से सपना था की वो बैचलर ऑफ साइंस करें.
सीयूईटी का फॉर्म भरते वक्त उसने देखा सभी परीक्षा केंद्र उसके घर से बेहद दूर थे. जिसके बाद वो चिंता में आ गई लेकिन उसके माता पिता ने उसका बहुत साथ दिया. रोजरानी ने कुल 4 परिक्षाएं दी. जिसके लिए उसने अकेले ही बस में पूरी रात सफर किया और अगली सुबह बीजापुर पहुंच गई. उसने बीजापुर में 5 राते बिताई जिसका कुल खर्च 15 हज़ार रुपये पड़ा.
यह खर्च किसी भी किसान परिवार के लिए उनके पूरे साल भर की आमदनी से भी कम है. लेकिन रोज़रानी बाकी आदिवासी छात्रों से भाग्यशाली रही क्योंकि छतीसगढ़ के ऐसे कई आदिवासी छात्र हैं जिनके माता पिता के पास इतने पैसे नहीं है की वो उन्हें अपने ज़िले के बाहर किसी दूसरे ज़िले तक परीक्षा के लिए भेज सकें.
अरुण तोडम की कहानी
रोज़रानी जैसी ही कहानी अरुण तोडम की भी है. अरुण छतीसगढ़ के बस्तर ज़िले के गोंड आदिवासी समुदाय से हैं और माता-पिता खेती-किसानी करते हैं. वो हमेशा से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बायोलॉजी की पढ़ाई करना चाहते थे. लेकिन रोज़रानी की तरह उसका परीक्षा केंद्र भी गाँव से कई किलोमीटर की दूर पड़ा.
जिसकी वज़ह से अरुण इस साल की परीक्षा नहीं दे सका. अब वो अगले साल नीट (NEET) की परिक्षा देगा क्योंकि नीट परीक्षा केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों से नज़दीक भी मिलते हैं.
रोज़रानी और अरुण जैसे कई आदिवासी बच्चों के मन में यही सवाल उठता है की क्या यूजीसी का यह नया नियम आदिवासी बच्चों के लिए बना है?
यूजीसी सीयूटी (UGC CUET) की परीक्षा एनटीए (NTA) द्वारा करवाई जाती है. लेकिन एनटीए जो परीक्षा केंद्र देती है वो ग्रामीण इलाको से बेहद दूर होते हैं. ऐसे में कई आदिवासी छात्र-छात्राएं पैसे के अभाव में अपने गाँव से दूर मिले एग्जामिनेशन सेंटर तक नहीं पहुच पाते हैं.
कितनी है आदिवासी परिवार की कमाई?
साल 2021-22 के प्रीयोडिक लेबर फोर्स सर्वे (Periodic Labour Force Survey) के मुताबिक अनुसूचित जनजाति द्वारा पूरे साल में 1881 रुपये खर्च करती है. वहीं ओबीसी, एससी और अन्य जाति साल में 2000 रुपये से अधिक खर्च करती है.
यह खर्च इनके सलाना इनकम को दर्शाता है. जिसमें ओबीसी, एससी और अन्य जाति आदिवासी समुदाय के मुकाबले लगभग एक गुना ज़्यादा खर्च करती है. इसके अलावा झारखंड के आदिवासी सिर्फ 1593 रुपये ही खर्च करते हैं.
इन आंकड़ो से पता चलता है की आदिवासी अभी भी आर्थिक रूप से अन्य समाज के मुकाबले गरीब है. मतलब जो आदिवासी परिवार अपने बच्चों को आगे पढ़ाना चाहते हैं इसके बावजूद वह शिक्षा में इतना अधिक खर्च करने के लिए सक्षम नहीं है. उनके लिए सिर्फ एक परीक्षा के लिए इतनी दूर भेजना बच्चों की सुरक्षा का एक विषय बन जाता है. क्योंकि इन सभी परीक्षा केंद्रों में बच्चों को ठहरने के लिए कोई भी सुविधा नहीं दी गई है.
जिसकी वज़ह से कुछ दिन रहने का खर्चा भी सभी आदिवासी परिवार को ही उठाना पड़ेगा. दूसरी समस्या यह है कि यह सभी फॉर्म ऑनलाइन ही उपलब्ध है और इन्हें भरना भी कठीन है. वहीं एनटीए द्वारा जो मदद के केंद्र बनाए गए है. वो सभी आदिवासी गाँव में उपलब्ध नहीं है.
NEET परीक्षा क्यों हैं सीयूईटी से बेहतर?
नीट परीक्षा भी सीयूईटी जैसा ही है. यह परीक्षा उन सभी छात्रा-छात्राओं के लिए है जो चिकित्सा के क्षेत्र में जाना चाहते हैं. लेकिन नीट परीक्षा में ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई परीक्षा केंद्र होते हैं. इसलिए बच्चों को इस परीक्षा में ज़्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता.
यूजीसी का नियम शहरों में पढ़ने वाले छात्र और छात्राओं के लिए तो सही है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इस फैसले से छात्राओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. अगर प्रशासन को सभी को बराबर का मौका देना है तो यूजीसी के परीक्षा केंद्र ज़्यादा से ज्यादा गाँव में उपलब्ध कराना होगा. परीक्षा केंद्रों के लिए वह गाँव के स्कूलों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
साथ ही ऑनलाइन फॉर्म भरने के इस सिस्टम को आसान बनाने के लिए गाँव के आस पास स्कूलों में कंप्यूटर और एक गाइडर भी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है.
ताकि सरकार के सर्व शिक्षा अभियान द्वारा लिया गया संकल्प “ सभी पढ़े सभी बढ़े ” पूरा हो सके क्योंकि आज के समय में एक अच्छी नौकरी पाने के लिए ग्रेजुएशन तक पढ़ाई बेहद जरूरी है.