HomeIdentity & Lifeत्रिपुरा में चकमा समुदाय का जीवन और संघर्ष

त्रिपुरा में चकमा समुदाय का जीवन और संघर्ष

चकमा परिवार में मेहमान का स्वागत घर पर ही बनाई गई देसी शराब और हुक्का से किया जाता है. शराब और हुक्का पीने के मामले में स्त्री या पुरूष के बीच कोई भेद नहीं किया जाता है.

त्रिपुरा के ढालाई ज़िले की डूम्बूर झील क़रीब 41 वर्ग किलोमीटर में फैली है. इस झील में कुल 48 टापू हैं. इन टापूओं पर चकमा बस्तियाँ हैं.

हम इन टापुओं में से एक चकमा समुदाय के लोगों से मिलने पहुँचे. यह नारिकलकुंज पंचायत के रायशिया ब्लॉक का गाँव है. नारिकल कुंज पहुँचने के लिए मोटरबोट और आम नौका दोनों ही मिलती हैं.

शोर से बचने के लिए हमने मोटरबोट लेने की बजाए चप्पू से चलने वाली नाव का विकल्प चुना. 

चकमा जनजाति की जनसंख्या तीन देशों में बंटी हुई है. इस समुदाय की सबसे बड़ी आबादी बांग्लादेश के चटगाँव की पहाड़ी ढलानों पर बसी है. इसके अलावा भारत और बर्मा में भी चकमा जनजाति के लोग रहते हैं.

चकमा जनजाति के लोग अक्सर अपनी बस्तियाँ पानी के किनारे पर बसाते हैं.

चकमा जनजाति के लोग प्लेटफ़ॉर्म पर अपना घर बनाते हैं. घर बांस से बनाए जाते हैं जिस पर फूँस का छप्पर होता है. किसी किसी घर की छत टिन की भी नज़र आती है.

घर के आँगन की बाउंड्री बनाने के लिए बांस से अलग अलग डिज़ाइन की बाड़ या रेलिंग बनाई जाती है. चकमा गाँवों में परिवार के लगभग सभी पुरूष बांस के काम में माहिर होते हैं.

इसलिए अपने घर बनाने के लिए किसी कारीगर को बुलाने कि ज़रूरत नहीं पड़ती है. लेकिन गाँव में एक दूसरे के घर बनाने में मदद ज़रूर की जाती है.

यहाँ की इन चकमा बस्तियों में लोगों की जीविका और रोज़गार का कोई ज़रिया नज़र नहीं आता है. यहाँ पर इन लोगों के पास खेती की ज़मीन नहीं है.

यहाँ के लोग कहते हैं कि सरकार हमें रोज़गार तो नहीं देती है, अब वे ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं रखते हैं. लेकिन इतना ज़रूर चाहते हैं कि सरकार की तरफ़ से उनके गाँव में पीने के पानी, रास्ते जैसी ज़रूरी सुविधाएँ पहुँचा दे.

चकमा जनजाति के लोगों बौद्ध धर्म का पालन करते हैं. लेकिन इनकी धार्मिक आस्थाओं में विविधता भी मिलती है. मसलन बौद्ध धर्म में जानवरों की बलि का प्रावधान नहीं है, लेकिन चकमा जनजाति के लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी होने के बावजूद अपने पुरखों को शांत और प्रसन्न करने के लिए मुर्ग़े या बकरे की बलि देते हैं.

इसी तरह से उनकी कुछ परंपराओं और आस्थाओं पर हिंदू धर्म का प्रभाव भी नज़र आता है. चकमा महिलाएँ कपड़े बुनाई में भी माहिर होती हैं.

चकमा जनजाति के कपड़ों के अलग डिज़ाइन होते हैं. ख़ासतौर से महिलाओं के कपड़े जो बुने जाते हैं उनमें कई तरह के रंगों के धागे इस्तेमाल होते हैं.

चकमा समुदाय की परंपरागत वेशभूषा की बात करें तो अब इस समुदाय के पुरुषों ने तो पूरी तरह से आधुनिक कहे जाने वाले कपड़े पहनने शुरू कर दिये हैं. अब बेहद ख़ास मौक़े पर ही कुछ पुरूष अपने परंपरागत कपड़े पहनते हैं. 

चकमा जनजाति में पढ़ाई लिखाई के प्रति रुझान बढ़ा तो है लेकिन इनके बच्चे अक्सर पढ़ाई लिखाई बीच में ही छोड़ देते हैं. त्रिपुरा साक्षरता के मामले में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है.

लेकिन यहाँ पर स्कूल ड्रॉप आउट रेट बहुत ज़्यादा देखी गई है. ख़ासतौर से जनजातीय इलाक़ों में स्कूल ड्रॉप आउट रेट बहुत अधिक है. हालाँकि सरकार ने हाल ही में यह दावा किया है कि राज्य में स्कूल ड्रॉपआउट के मामले कम हुए हैं. लेकिन उसके बावजूद यह दर काफ़ी ज़्यादा है.

इस चकमा गाँव में लोगों से बात करके हमें दो बातें पता चलीं, पहली बात ये कि यहाँ लोगों को लगता है कि पढ़ाई लिखाई का उन्हें कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होगा. इसलिए वे पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर काम में लग जाते हैं.

दूसरी बात यह पता चली कि इन गाँवों में प्राइमरी स्कूल तो हैं, इसलिए चकमा जनजाति में आपको निरक्षर लोग कम मिलते हैं. लेकिन इनमें से ज़्यादातर लोग प्राइमरी स्कूलों से आगे नहीं बढ़ पाते हैं क्योंकि स्कूल दूर है.

चकमा समुदाय में परिवार क्लेन और सब क्लेन में बंटे होते हैं. क्लेन को आप गोत्र या उपगोत्र कह सकते हैं. चकमा गोजा और गुट्टी शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. चकमा जनजाति में एक ही गोत्र में शादी की मनाही होती है. 

आमतौर पर शादी में लड़के या लड़की की मर्ज़ी पूछी जाती है, लेकिन शादियाँ माँ बाप तय करते हैं. शादी के समय ब्राइड प्राइड तय होता है. यानि लड़के का पिता लड़की के परिवार को एक तय रक़म या उपहार देता है.

अगर लड़का लड़की परिवार की सहमति के बिना भाग जाते हैं तो भी शादी हो सकती है, लेकिन इस तरह की शादी में ब्राइड प्राइड के साथ साथ लड़के के परिवार को फ़ाइन भी देना पड़ता है.

चकमा परिवार में मेहमान का स्वागत घर पर ही बनाई गई देसी शराब और हुक्का से किया जाता है. शराब और हुक्का पीने के मामले में स्त्री या पुरूष के बीच कोई भेद नहीं किया जाता है.

चकमा समुदाय के लोग छोटी मोटी खेती करते हैं. क्योंकि ये पहाड़ी ढलानों पर रहते हैं तो उत्पादन कम ही होता है. यहाँ पर ज़्यादातर परिवारों की जीविका का मुख्य साधन मछली मारना ही होता है. 

त्रिपुरा में बसे चकमा जनजाति के कुछ परिवार अब जीविका के वैकल्पिक साधन भी तलाश रहे हैं. मसलन अब इस समुदाय के लोग लीची और आम के बाग़ान लगा रहे हैं. इस काम में सरकार से भी उनको मदद मिल रही है. 

चकमा जनजाति के खाने में चावल भोजन का मुख्य हिस्सा है. इसके अलावा कई तरह के जिमिकंद और कद्दू इनके खाने में शामिल होता है. चकमा समुदाय में मुर्ग़े, बकरे और मछली चाव से खाया जाता है.

चकमा समुदाय में खाना बनाने की तरह तरह की विधि मिलती है. जैसा हमने शुरू में ज़िक्र किया की चकमा समुदाय तीन पड़ौसी देशों में बसा है. इनकी सबसे अधिक आबादी क़रीब साढ़े पाँच लाख बांग्लादेश में बताई जाती है, इसके अलावा भारत के त्रिपुरा, मिज़ोरम और अरूणाचल प्रदेश में क़रीब एक लाख से ज़्यादा चकमा बताए जाते हैं.

बर्मा में भी 20 हजा़ार से ज़्यादा चकमा परिवार हो सकते हैं. चकमा समुदाय भारत में शरणार्थी के तौर पर पहुँचा था. लेकिन अब वो यहीं का हो कर रह गया है.

हालाँकि भारत और बांग्लादेश की सीमा पर बसे इलाक़ों से अक्सर ऐसी ख़बरें मिलती हैं कि वहाँ पर ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से चकमा समुदाय के लोग आ कर बसे गए हैं…कई बार यह मुद्दा राजनीतिक रंग भी लेता है.

चुनाव की राजनीति की अपनी कुछ मजबूरियाँ होती हैं. इसलिए अलग अलग राजनीतिक दल एक मुद्दे को अलग नज़रिये से पेश करते हैं.

त्रिपुरा की राजनीति में भी चकमा शरणार्थियों का मसला उठाया जाता है. लेकिन चकमा अभी जितनी बड़ी तादाद में त्रिपुरा में रहते हैं, वे यहाँ के सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही दृष्टि से अलग नहीं किये जा सकते हैं. 

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