देश के मध्य भाग में स्थित राज्यों से लेकर पूर्वी राज्य तक महुआ (Mahua) आदिवासी इलाकों के जंगल में महुआ मिलता है.
महुआ सिर्फ आदिवासी संस्कृति का नहीं, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का भी महत्वपूर्ण (Importance of Mahua) अंग है.
मुख्यधारा समाज में हमेशा से यही धारणा रही है कि महुआ का इस्तेमाल सिर्फ शराब (Mahua Liquor) बनाने में होता है.
लेकिन आदिवासी इलाकों में महुआ सिर्फ शराब बनाने में इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि यह आदिवासियों के लिए आहार का स्तोत्र है.
झाबुआ के एक गांव संदला में ननिया भील नाम के बुज़ुर्ग ने महुआ के बारे में बात करते हुए हमें बताया, “आजकल तो अनाज की कमी नहीं होती है. लेकिन एक वक्त था जब बारिश नहीं होती थी तो अकाल पड़ जाता था. तब हम महुआ खा कर ही जिंदा रहते थे.”
उन्होंने बताया कि आज भी आदिवासी महुआ उबाल कर या भून कर कई तरह से इस्तेमाल करता है. वे कहते हैं कि महुआ के बिना आदिवासी के जीवन की कल्पना बहुत मुश्किल है.
ननिया भील बताते हैं कि महुआ से जुड़ी कई कहानियां आदिवासी इलाकों में मिलती हैं.
आजादी से पहले और अब का हाल
आज़ादी से पहले ब्रिटिश प्रशासन ने 1880 के समय महुआ उत्पाद पर कई प्रतिबंध लगाए थे.
उस समय महुआ उत्पाद पर प्रतिबंध (British ban on Mahua production) लगाने के लिए ब्रिटिश बॉम्बे अबकारी एक्ट 1878 और महोवरा एक्ट 1892 कानून लाए थे.
इन दोनों ही प्रावधानों को आज़ादी के बाद हटा दिया गया. लेकिन अलग अलग राज्यों की सरकार महुआ उत्पाद पर अभी भी कुछ हद तक प्रतिबंध लगाती है.
महुआ के बारे मूल जानकारी
महुआ देश के मध्य और पूर्वी राज्यों में उत्पन्न होता है. इनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, गुजरात, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु राज्य शामिल हैं.
महुआ का पेड़ 20 से 25 किलोमीटर की ऊंचाई में उगता है. इसका तना हरा और भूरे रंग का होता है. इस पेड़ में लगने वाले फूल की सुगंध जंगल को महका देती है.
जंगल में मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में महुआ का फूल झड़ने लगता है.
खाने से लेकर दवा में महुआ का इस्तेमाल
महुआ फूल आदिवासी समाज में पौषण और दवा (Usage of Mahua) का स्तोत्र है. व्यंजनों में इस्तेमाल करने से पहले महुआ फूलों को या तो धूप में सुखाया जाता है, या फिर इसे बर्तन में रोस्ट किया जाता है.
ऐसा करने से महुआ का स्वाद और पौषण तत्व दोनों ही दुगने हो जाते हैं. वहीं अगर शराब बनानी हो तो इन फूलों को पानी में कम से कम पांच दिन तक भिगोया जाता है.
महुआ से बने वाली यह शराब आदिवासी समाज में मुख्य भूमिका निभाती है. यह शराब ज्यादातर आदिवासी त्योंहार और शादी- ब्याह में बनाई जाती है.
हाल ही MBB टीम मध्यप्रदेश के झाबुआ में गई. जहां आदिवासी महिला शांति ने हमें बताया कि महुआ कड़वा और मीठा दोनों होते है.
कड़वे महुआ का इस्तेमाल अक्सर शराब बनाने में होता है. वहीं मीठा महुआ से आदिवासी अलग-अलग व्यंजन बनाते हैं.
महुआ फूलों का इस्तेमाल खाद्य पदार्थ और शराब तक सीमित नहीं है. महुआ के फूलों से आयुर्वेदिक दवा भी बनाई जाती है.
इससे बने वाली दवा कई बीमरियों को दूर करती है. महुआ फूलों से बने वाली दवा बुखार, खांसी, दस्त और पाचन संबंधित समस्याओं से राहत देती है.
इसके अलावा महुआ के बीज़ से बनने वाला तेल भी त्वचा से जुड़ी समस्याओं का समाधान करता है.
इसके साथ ही इस तेल का इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है.
महुआ कमाई का साधान
आदिवासियों जीविका और संस्कृति में महुआ बेहद महत्वपूर्ण है. महुआ आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक और संस्कृतिक पहलू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
महुआ आदिवासियों के लिए कमाई का मुख्य स्तोत्र है.
आदिवासी महुआ के फूलों को बाज़ार में बेचकर पैसे कमाता है. इसके अलावा आजकल महुआ से बने लड्डू, तेल जैसे कई पदार्थ का बाज़ार में प्रचलन है.
क्योंकि यह सभी पौष्टिक तत्व का मुख्य स्तोत्र है.
महुआ के लिए आधी अधूरी सरकारी पहल
देश के कई राज्यों में अन्य वन उत्पादों के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर महुआ भी खरीदा जाता है. लेकिन ज़्यादातर आदिवासी इलाकों में लोग शिकायत करते हैं कि जंगल से सरकारी केंद्रों तक महुआ बेचने जाना बहुत मुश्किल काम होता है.
इसके अलावा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने महुआ से शराब उत्पादन के लिए कुछ शुरूआत की थी. लेकिन अफ़सोस की ये पहल भी आधी अधूरी रही.
सरकार यह बहुत अच्छी तरह से जानती है कि महुआ आदिवासी जनसंख्या की आय का एक अच्छा ज़रिया है. लेकिन फिर भी आदिवासी को महुआ सप्ताहिक हाट में आने वाले व्यापारियों को ही बेचना पड़ता है.
सरकार अगर बड़ी शराब कंपनियों के दबाव से मुक्त हो कर महुआ की शराब का उत्पादन करे तो आदिवासी इलाकों में रोज़गार के लिए पलायन की समस्या भी कम हो सकती है.