HomeTribal Kitchenमेहनतकश संताल परिवार की रसोई जंगल से चलती है

मेहनतकश संताल परिवार की रसोई जंगल से चलती है

जंगल से लकड़ी ला कर आदिवासी साल भर कुछ नक़द पैसा कमा लेता है. इसके अलावा आदिवासी को जंगल से साल भर खाने के लिए भी कुछ ना कुछ मिलता रहता है. इसमें कई तरह का साग भी होता है.

दुमका ज़िले में हमारी टीम को कई आदिवासी परिवारों से मिलने का मौक़ा मिला. इस दौरान कई परिवारों ने हमें अपने घर पर खाना भी खिलाया और बना कर भी दिखाया. हरिपुर नाम के गाँव में सुहागनी मूर्मु से मुलाक़ात हुई.

सुहागनी मूर्मु के घर पर जब हम पहुँचे तो धूप काफ़ी चढ़ चुकी थी. लेकिन उसके बावजूद उन्होंने हमारे लिए खाना बनाया. खाना बनाते समय हम उनके साथ उनकी रसोई में मौजूद रहे. वैसे भी उनकी रसोई खुले आँगन में ही है.

उन्होंने हमारे लिए एक दाल और एक बेहद ख़ास तरह से साग बनाया. इस दौरान उनसे बातचीत भी होती रही थी. इस बातचीत में लगा कि वे काफ़ी चिंतित थीं. क्योंकि समय पर बारिश नहीं हुई थी. इसलिए मक्का की लगाई फसल बर्बाद हो रही थी.

बारिश नहीं होने से धान की फसल तो लग ही नहीं पाई थी. वो कहती थीं कि उनका घर खेती किसानी और जंगल के भरोसे चलता है. उन्होंने बताया कि जंगल से लकड़ी ला कर आदिवासी साल भर कुछ नक़द पैसा कमा लेता है.

इसके अलावा आदिवासी को जंगल से साल भर खाने के लिए भी कुछ ना कुछ मिलता रहता है. इसमें कई तरह का साग भी होता है. पूरी बातचीत और उनके बनाये खाने को देखने के लिए उपर वीडियो लिंक को क्लिक करें.

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