HomeIdentity & Lifeबलिदान दिवस: गोंड रानी दुर्गावती से जुड़े कुछ अनोखे किस्से

बलिदान दिवस: गोंड रानी दुर्गावती से जुड़े कुछ अनोखे किस्से

गोंड रानी दुर्गावती का आज बलिदान दिवस है. उनकी वीरता और सूझबूझ की कहानियां आज भी गोंड आदिवासियों में घर घर सुनी और सुनाई जाती हैं. गोंड समुदायों के गीतों में भी रानी दुर्गावती के ना जाने कितने किस्से मिलते हैं.

गोंड आदिवासी (Gond Tribe) समुदाय की वीरांगना रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का आज बलिदान दिवस (Balidan Diwas) है.

वर्तमान में जबलपुर ज़िले के जबलुपर-बरगी रोड पर स्थित बारहा गाँव के पास वह स्थान है, जहां रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुई थी.

आइए आज रानी दुर्गावती के जीवन के बारे में विस्तार से बात करते हैं –

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को के दिन हुआ था. उनके पिता राजा कीरत सिंह और उनकी माता रानी कमलावती थे.

गोंड साम्राज्य के सम्राट संग्रामशाह रानी दुर्गावती के सौंदर्य और वीरता से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने राजा कीरत सिंह से उनकी पुत्री का हाथ अपने पुत्र दलपतिशाह के लिए मांग लिया.

लेकिन 1541 को साम्राट संग्रामशाह का निधन हो गया.

इसके बावजूद भी राजा कीरत सिंह ने अपना वचन नहीं तोड़ा और 1542 को अपनी बेटी रानी दुर्गावती का हाथ राजा दलपतिशाह को सौंप दिया.

लेकिन विवाह के चार साल पशचात दलपितशाह का भी निधन हो गया.

उस समय रानी दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था. पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने शासन को संभाले का कार्यभार अपने ऊपर ले लिया.

रानी दुर्गावती ने 16 वर्षो में कई युद्ध लड़े और 51 युद्धों में जीत का झंडा फहराया था. रानी दुर्गावती ने 16 सालों तक गोंड साम्राज्य में राज किया.

ऐसा भी कहा जाता है कि भारत में गोंड साम्राज्य इकलौता ऐसा राज्य था, जहां कर के रूप में सोने के सिक्के लिए जाते थे. इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि गोंड जनजाति का साम्राज्य उस वक्त कितना समृद्ध था.

रानी दुर्गावती की राजनीतिक रणनीति आक्रमण पर आधारित थी. रानी दुर्गावती को युद्ध भूमि में दोनों हाथों से तलवार चलाने में कुशल माना जाता था.

इसके अलावा उन्होंने अपना गोंड साम्राज्य संभालने के लिए 52 गढ़ो को बढ़ाकर 57 कर दिए थे.

उनकी सेना में 20 हज़ार पुरूष, हज़ारों की संख्या में हाथी और कई हज़ार पैदल सैनिक थे.

इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है की गोंड साम्राज्य भारत में एकमात्र ऐसा साम्राज्य रहा है, जहां सेना में स्त्रियां भी मौजूद थी.

इन स्त्रियों को रानी दुर्गावती की बहन कमलावती और पुरागढ़ की राजकुमारी संभालती थी.

अकबर की सेना ने रानी दुर्गावती पर तीन बार आक्रमण किया, लेकिन तीनों पर अकबर की सेना रानी दुर्गावती को हराने में नाकामयाब रही.

इतनी बार हार मिलने के बाद अकबर की सेना ने एक बार फिर रानी दुर्गावती पर हमला किया.

ऐसा कहा जाता है कि अकबर की सेना ने षड्यंत्र का सहारा लेकर सिंगारगढ़ को चारों ओर से घेर लिया.

युद्ध भूमि में लड़ाई के दौरान रानी दुर्गावती की आंखों में एक तीर लग गया.

जिसके बाद उनके कुछ सैनिकों ने उन्हें युद्ध भूमि छोड़ने का अनुरोध किया. लेकिन रानी दुर्गावती बहादुरी के साथ युद्ध भूमि डटी रही.

ऐसा कहा जाता है कि जब उन्हें पता चला की वे बेहोश होने वाली है. तभी उन्होंने दुश्मनों के हाथों मरने से बेहतर खुद को मार देना ही सही समझा और अपने सीने में तलवार घोंप दी. इस तरह 24 जून 1564 को वीरांगना रानी दुर्गावती की मृत्यु हो गई.

अकबर सेना और रानी दुर्गावती का यह ऐतिहासिक युद्ध जबलपुर के पास मदन महल किले में हुआ था. आज यहां रानी दुर्गावती की समाधि स्थित है.

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