HomeAdivasi Dailyअपतानी जनजाति के द्री उत्सव का विस्तार और परंपराएं

अपतानी जनजाति के द्री उत्सव का विस्तार और परंपराएं

अपतानी समुदाय के लोग अपनी ज़मीन और खेती से गहराई से जुड़े हैं. इसलिए वे इस कृषि महोत्सव (Tribal Festival) को खूब हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह उत्सव धान के बीज की खोज और इन आदिवासियों के खेती के तरीकों से जुड़ा है.

द्री (Dree) अरुणाचल प्रदेश की अपतानी (तानिया) जनजाति (Apatani Tribe) का खेती से जुड़ा एक उत्सव है. अपतानी आदिवासी अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी ज़िले की ज़ीरो घाटी (Zero Valley) में रहते हैं.

अपतानी समुदाय के लोग अपनी ज़मीन और खेती से गहराई से जुड़े हैं. इसलिए वे इस कृषि महोत्सव को खूब हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.

ऐसा माना जाता है कि यह उत्सव धान के बीज की खोज और इन आदिवासियों के खेती के तरीकों से जुड़ा है.

द्री उत्सव का आयोजन फसलों को कीड़ों, बीमारियों, प्राकृतिक आपदाओं आदि से बचाने के लिए किया जाता है. इस के लिए अपतानी आदिवासी अपने देवताओं की पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं.

किन देवताओं की होती है पूजा?

दानी देवता- ये आदिवासी मानव जाति की रक्षा और समृद्धि के लिए दानी देवता (सूर्य) की पूजा करते हैं. इस पूजा में अपतानी समुदाय के सभी परिवार मिथुन की बली देते हैं.

तम्मु- तम्मु (देवता) को खुश करने के लिए मुर्गियों और अंडों की बलि दी जाती है. उनका आह्वान किया जाता है. कृषि क्षेत्रों में कीड़ों को नष्ट करने की प्रार्थना की जाती है जिससे फसलों को नुकसान न हो.

मेती- मेती (देवता) को भी मुर्गों और अंडों की बलि देकर प्रसन्न किया जाता है. फ़सल में किसी भी बीमारी को रोकने के लिए और अकाल को टालने के लिए इनकी पूजा की जाती है.

इसके अलावा खेतों को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने के लिए, आस-पास की ऊर्जा को शुद्ध करने के लिए और स्वस्थ फसलों के लिए मेड्डर और मेप्पिंग देवता से आशीर्वाद मांगा जाता है.

पुराने समय में हर अपतानी गांव इस उत्सव को अपने अलग तौर-तरीकों के हिसाब से अलग-अलग दिन मनाता था. किसी भी मौके पर अपतानी समुदाय के लोग इकट्ठा नहीं हो पाते थे.

इसलिए 1967 में द्री त्योहार को इस अवसर के लिए चुना गया और निर्णय किया गया कि समुदाय के सभी लोग साल में एक बार द्री उत्सव पर मिलकर एक निश्चित स्थान पर साथ में जश्न मनाएंगे.

इसके बाद से हर साल यह उत्सव चार दिनों तक मनाया जाता है. इस उत्सव की शुरुआत 5 जुलाई को होती है.

पहले दिन पुजारी अपनी परंपरागत पद्धति के अनुसार अनुष्ठान करते हैं जैसे पहले उनके गांव में इस उत्सव के आयोजन के समय होता था.

दूसरे दिन घाटी के सभी अपतानी एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं और बलि के लिए वेदी का निर्माण करते हैं. सही मायनों में दूसरे दिन ही इस शुभ उत्सव का उद्घाटन होता है.

इस दिन मुख्य अतिथियों और अन्य मेहमानों का स्वागत किया जाता है. इसके अलावा ध्वजारोहण किया जाता है. भाषण और खेल आदि का भी आयोजन किया जाता है.

शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है. तीसरे दिन सांस्कृतिक बैठक और सामुदायिक भोज का आयोजन किया जाता है.

इसके साथ ही शाम को सांस्कृतिक प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती हैं. आखिरी दिन शेड को हटाया जाता है और सभी लोग अपने-अपने गांव लौट जाते हैं.

इकट्ठा होकर उत्सव मनाना क्यों था चुनौती?

पहले जब यह आयोजन ग्रामीण स्तर पर होता था तब लोगों द्वारा ही इस उत्सव में योगदान किया जाता था. लेकिन बड़े स्तर पर आयोजन के लिए ज़्यादा पैसे की ज़रुरत थी और आदिवासी इतना खर्च उठाने के योग्य नहीं थे.

उस समय एनजीओ या कोई अन्य सामाजिक संस्था भी इस कार्य के लिए सामने नहीं आई. उस समय इस उत्सव के लिए पर्याप्त धन राशी जमा करना एक बड़ी चुनौती थी.

गांव के कुछ चुने हुए बुजुर्ग गोरास, चावल, बाजरा और धुएं में सुखाए गए चूहों (तारी-कुबू) के रूप में आम जनता से योगदान एकत्र करते थे और फिर पुजारी ड्री अनुष्ठान पूरा करते थे.

आयोजन स्थल का चयन कैसे होता है

यह स्थान लगभग सभी गांवों से बराबर दूरी पर होना चाहिए. उस स्थान पर वाहन आसानी से पहुंच सके. इसके अलावा खेल के लिए एक बड़ा मैदान हो और सार्वजनिक सभा के लिए शेड बनाने के लिए भी उचित जगह होनी चाहिए.

नेंचल्या में हिजा स्कूल के पास की जगह इन सभी सुविधाओं से युक्त है और शुरुआत से इस उत्सव का आयोजन नेंचल्या के ग्राउंड में ही किया जाता है.

प्रतियोगिताएं और अन्य कार्यक्रम

इस उत्सव का आकर्षण बिंदु फुटबॉल प्रतियोगिता है. यह प्रतियोगिता ज़ीरो घाटी के सभी गांवों के बीच होती है. फुटबॉल खेल के अलावा वॉलीबॉल, बैडमिंटन, टेनिस और जेवलिन थ्रो के अलावा और भी कई अन्य पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाता है.

इस उत्सव के दौरान होने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में निबंध लेखन, चित्रकला आदि शामिल है. इन साहित्यिक कार्यक्रम के माध्यम से अपातानी भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाता है.

स्थानीय परिधानों और पहनावे को बढ़ावा देने के लिए फ़ैशन शो और सौंदर्य प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है.

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