HomeAdivasi Dailyमिलिए वंदे भारत की पहली आदिवासी असिस्टेंट लोको पायलट रितिका तिर्की से

मिलिए वंदे भारत की पहली आदिवासी असिस्टेंट लोको पायलट रितिका तिर्की से

जल, जंगल और बिरसा मुंडा की धरती से उठकर रितिका ने यह साबित किया है कि अगर हिम्मत और मेहनत हो तो कोई भी मंजिल पाना असंभव नहीं है.

अपनी आंखों से लगातार पटरियों को स्कैन करते हुए और अपने हाथों से वंदे भारत एक्सप्रेस को उसके गंतव्य तक पहुँचाने के लिए सहजता से मार्गदर्शन करते हुए, रितिका तिर्की, एक आदिवासी महिला लोको पायलट ने 15 सितंबर को टाटानगर-पटना वंदे भारत ट्रेन को उसकी पहली यात्रा पर चलाया.

झारखंड की 27 वर्षीय रितिका तिर्की, टाटानगर-पटना वंदे भारत एक्सप्रेस की असिस्टेंट लोको-पायलट के रूप में सुर्खियां बटोर रही हैं.

रितिका, गुमला जिले से हैं और उन्होंने वंदे भारत एक्सप्रेस की असिस्टेंट लोको-पायलट के रूप में देश की पहली आदिवासी महिला बनने का गौरव हासिल किया है.

BIT मेसरा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद रितिका ने भारतीय रेलवे में अपना करियर बनाया. उन्होंने 2019 में दक्षिण पूर्व रेलवे (SER) के चक्रधरपुर डिवीजन में शंटर के रूप में अपनी भारतीय रेलवे की यात्रा शुरू की और बाद में माल गाड़ी और यात्री ट्रेनें चलाईं.

उनका कैरियर सिनियर असिस्टेंट लोको पायलट के पद पर प्रमोट होने के बाद आगे बढ़ा. जिसके बाद उन्हें वंदे भारत जैसी अत्याधुनिक ट्रेन चलाने का मौका मिला है. वह इस बात पर गर्व महसूस करती हैं कि उन्हें भारतीय रेल में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बनने का अवसर मिला हैं.

आदिवासी बेटी का कमाल

रितिका एक सामान्य परिवार से आती हैं. रितिका के परिवार में उनके माता-पिता और उनके चार भाई-बहन हैं. रितिका ने अपनी स्कूली शिक्षा रांची से पूरी की. उन्होंने रांची के बीआईटी मेसरा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया.

रितिका ने साल 2019 में भारतीय रेलवे में असिस्टेंट लोको पायलट के रूप में नौकरी शुरू की. उनकी पहली पोस्टिंग धनबाद डिवीजन के अंतर्गत चंद्रपुरा, बोकारो में हुई. साल 2021 में रितिका का तबादला टाटानगर हो गया. वहीं साल 2024 में उन्हें सीनियर असिस्टेंट लोको पायलट के पद पर पदोन्नत कर दिया गया.

झारखंड के एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली रितिका तिर्की ने लोको-पायलट के रूप में योग्यता प्राप्त करने के लिए मुश्किल ट्रेनिंग के माध्यम से अपना रास्ता बनाया. एक छोटे से आदिवासी गांव से भारत की सबसे प्रतिष्ठित ट्रेनों में से एक को चलाने का मौका मिलने तक की यात्रा उनके दृढ़ संकल्प और समर्पण के बारे में बहुत कुछ कहती है.

भारत के बढ़ते बुनियादी ढाँचे के प्रतीक वंदे भारत एक्सप्रेस की पायलट के रूप में रितिका न सिर्फ अपने कौशल का प्रदर्शन कर रही हैं, बल्कि तकनीकी क्षेत्रों में महिलाओं की क्षमता का प्रतिनिधित्व भी कर रही हैं.

रितिका को रेलवे में बतौर असिस्टेंट लोको पायलट काम करके बहुत खुशी होती है. वो अपनी ड्यूटी से संतुष्ट हैं. उन्होंने बताया कि ट्रेन चलाने से दो घंटे पहले कॉल बुक दिया जाता है और ड्यूटी पूरी होने के बाद 16 घंटे का आराम दिया जाता है.

उन्होंने कहा कि जब उन्होंने सहायक लोको पायलट के रूप में नौकरी शुरू की थी, तब थोड़ा डर लगता था कि ट्रेन चला पाएंगे या नहीं, लेकिन धीरे-धीरे यह डर समाप्त होता गया. उन्होंने बताया कि अब उन्हें ट्रेन चलाने में बहुत मजा आता है.

रितिका पैसेंजर ट्रेन और मालगाड़ी दोनों चलाती हैं. ट्रेन चलाते समय अलग-अलग शहरों में जाना उन्हें बहुत अच्छा लगता है.

रितिका ने बताया कि वंदे भारत ट्रेन में कई आधुनिक सुविधाएं हैं. यह ट्रेन बाकी ट्रेनों से बहुत अलग है. इस ट्रेन के हर कोच में सीसीटीवी कैमरा और फायर अलार्म लगा हुआ है. साथ ही यात्रियों से बात करने के लिए पायलट के पास आपातकालीन टॉक-बैक की सुविधा भी है.

रितिका के मुताबिक वंदे भारत के केबिन में जो भी सिस्टम लगा हुआ है, वो पूरी तरह से ऑटोमैटिक है. इसमें सिग्नल देने के लिए झंडी की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि लाल और हरे बटन को दबाकर सिग्नल दिया जा सकता है.

रितिका तिर्की की उपलब्धि लड़कियों को, ख़ासकर के हाशिए के समुदायों से बड़े सपने देखने और पारंपरिक रूप से पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के महत्व को उजागर करती है.

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