HomeAdivasi Dailyरिश्वत न देने पर वन अधिकारियों ने आदिवासी बुज़ुर्ग को पीटा

रिश्वत न देने पर वन अधिकारियों ने आदिवासी बुज़ुर्ग को पीटा

तमिलनाडु में एक आदिवासी बुज़ुर्ग के साथ कथित मारपीट ने जंगल से सटे इलाकों में हो रहे अधिकार हनन और सरकारी दबाव को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

तमिलनाडु के एक आदिवासी बुज़ुर्ग पर रिश्वत न देने की सज़ा इतनी भयानक थी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.

यह घटना तिरुवन्नामलाई ज़िले के लोअर पलायमकोट्टई गांव की है. यहां के रहने वाले 65 साल के आदिवासी बुज़ुर्ग लक्ष्मणन अपनी 14 बकरियों को चराने के लिए पास के टेलाथोपे जंगल में गए थे.

वे हर रोज़ इसी जंगल में अपनी बकरी चराते थे. लेकिन उस दिन कुछ वन विभाग के अधिकारी वहाँ पहुँच गए.

अधिकारियों ने मांगी रिश्वत

लक्ष्मणन की 53 वर्षीय पत्नी मल्लिका ने बताया कि वहाँ आए अधिकारियों में एक वन रेंजर भी शामिल था.

अधिकारियों ने लक्ष्मणन से कहा कि अगर यहां बकरियां चरानी है तो हर बकरी के लिए 500 रुपये देने होंगे. यानी कुल 7,000 रुपये की माँग की गई.

जब लक्ष्मणन ने कहा कि वे गरीब हैं. इतने पैसे नहीं दे सकते तो अधिकारियों ने गालियाँ देना शुरू कर दिया और फ़िर हाथापाई की नौबत आ गई.

मल्लिका का कहना है कि अधिकारियों ने उनके पति को बुरी तरह पीटा जिससे उन्हें गंभीर चोटें आईं.

फिलहाल लक्ष्मणन वाणियमबाड़ी के सरकारी अस्पताल में भर्ती हैं. घटना के बाद पहले जमुनामराथुर के सरकारी अस्पताल ले जाया गया था. वहाँ से उन्हें जमुनामराथुर रेफर कर दिया गया.

शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई

मल्लिका ने जमुनामराथुर पुलिस थाने में घटना की शिकायत दी थी. उन्होंने आरोप लगाया है कि अब तक किसी अधिकारी पर न तो कोई केस दर्ज हुआ है, न ही उन्हें निलंबित किया गया है.

अब मल्लिका ने ज़िला कलेक्टर धरपाकराज से मुलाक़ात कर लिखित शिकायत दी है और दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की माँग की है.

ज़िला प्रशासन ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की है.

स्थानीय लोगों में गुस्सा

इस घटना के बाद आसपास के गाँवों के आदिवासी लोगों में भी गुस्सा है.

उनका कहना है कि वन विभाग के कुछ अधिकारी अकसर गरीब आदिवासियों को डराते हैं, उनसे पैसे माँगते हैं और जंगल में आने पर धमकाते हैं.

कई लोगों का कहना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है. हर कुछ दिनों में ऐसी कोई न कोई घटना घट ही जाती है.

भारत में लागू वन अधिकार कानून, 2006 के प्रावधानों में आदिवासियों को जो अधिकार मिले हुए हैं, उनमें सामुदायिक अधिकारों के तौर पर लघु वन उपज, चरागाह क्षेत्र, जल निकाय, आदिम जनजातीय समूहों और कृषि-पूर्व समुदायों के आवासों पर अधिकार शामिल हैं. लेकिन आज भी कुछ अधिकारी जंगलों को अपनी जागीर समझते हैं.

ज़्यादातर मामलों में वन अधिकारियों की भाषा,  रवैया और व्यवहार ऐसा होता है मानो आदिवासी जंगल में घुसपैठ कर रहे हों. जबकि उन्हें कानून के अंतर्गत ये अधिकार प्राप्त हैं और वे कोई गैर कानूना काम नहीं कर रहे होते.

जंगल पर पहला हक उन आदिवासी लोगों का ही है जो पीढ़ियों से वहाँ रहते आए हैं.  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments