HomeAdivasi Dailyआदिवासी बेटियों ने तोड़ा जेंडर बैरियर

आदिवासी बेटियों ने तोड़ा जेंडर बैरियर

जिस क्षेत्र में मुख्यधारा की लड़कियों की संख्या भी ज़्यादा नहीं है, उस क्षेत्र मे आदिवासी बेटियों ने कदम रखा है.

झारखंड में पहली बार टाटा मोटर्स ने एक नई मिसाल कायम की है.

कंपनी ने अपने ‘कौशल्या कार्यक्रम’ के तहत आदिवासी समुदाय की 13 युवतियों को मोटर मैकेनिक की ट्रेनिंग देकर एक नया रास्ता दिखाया है.

यह जानकारी विश्व युवा कौशल दिवस के मौके पर साझा की गई.

50 दिनों की क्लासरूम ट्रेनिंग और 1 साल की ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग

चांडिल, पोटका और जमशेदपुर के ग्रामीण इलाकों की इन आदिवासी बेटियों ने सबसे पहले 50 दिन का क्लासरूम ट्रेनिंग कोर्स पूरा किया.

इसमें उन्हें कॉमर्शियल व्हीकल सिस्टम्स के बारे में गहराई से जानकारी दी गई.

इसके बाद उन्हें टाटा मोटर्स के अधिकृत सर्विस सेंटरों और डीलरशिप्स पर एक साल की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी गई.

टाटा मोटर्स और विकास समितियों की साझेदारी

इस पूरी पहल को सफल बनाने में टाटा मोटर्स ने ‘विकास समितियों’ नामक एक समाजसेवी संस्था के साथ मिलकर काम किया.

संस्था की मदद से गांव-गांव में जाकर परिवारों को समझाया गया, परामर्श दिया गया और सामुदायिक बैठकें की गईं ताकि लड़कियों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके.

रहने-खाने से लेकर वर्दी और वजीफा भी मिला

ट्रेनिंग के दौरान सभी लड़कियों को छात्रावास की सुविधा, यूनिफॉर्म, सुरक्षा उपकरण और हर महीने वजीफा भी दिया गया. इससे यह सुनिश्चित किया गया कि वे बिना किसी आर्थिक चिंता के प्रशिक्षण ले सकें.

महिलाओं को तकनीकी क्षेत्रों में आगे लाने की कोशिश

टाटा मोटर्स के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) प्रमुख विनोद कुलकर्णी ने बताया कि यह पहल महिलाओं को उन क्षेत्रों में अवसर देने की दिशा में एक प्रयास है, जो अब तक पुरुषों के लिए माने जाते थे.

उनका कहना है कि कंपनी चाहती है कि दूर-दराज के इलाकों की लड़कियों को भी रोजगार के ऐसे रास्ते मिलें, जो पहले उनके लिए संभव नहीं थे.

अन्य क्षेत्रों में भी शुरू होंगे ऐसे कार्यक्रम

कंपनी का कहना है कि झारखंड में इस बैच की सफलता यह साबित करती है कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी जेंडर-इनक्लूसिव (लिंग समावेशी) ट्रेनिंग मॉडल काम कर सकते हैं.

टाटा मोटर्स अब ऐसे ही कार्यक्रमों को देश के अन्य हिस्सों में भी शुरू करने की योजना बना रही है, जहां स्थानीय मांग और संस्थागत सहयोग उपलब्ध हो.

यह पहल सिर्फ एक ट्रेनिंग प्रोग्राम नहीं, बल्कि आदिवासी युवतियों के आत्मनिर्भर बनने का एक महत्वपूर्ण जरिया है. अब ये लड़कियां न केवल तकनीकी ज्ञान में सक्षम हैं, बल्कि आत्मविश्वास से भी भरपूर हैं.

टाटा मोटर्स की यह कोशिश दिखाती है कि अगर सही दिशा और सहयोग मिले, तो ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों की बेटियां भी बड़ी-बड़ी कामयाबी हासिल कर सकती हैं.

(Image is for representation purpose only.)

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