HomeAdivasi Dailyबड़वानी के स्कूल में आदिवासी छात्रों से भेदभाव, जांच के आदेश

बड़वानी के स्कूल में आदिवासी छात्रों से भेदभाव, जांच के आदेश

बड़वानी जिले के निवाली क्षेत्र में स्थित Mount Litera Zee School में आरटीई के तहत दाखिल आदिवासी बच्चों को नियमित कक्षाओं से अलग करके दोपहर के समय में पढ़ाया जा रहा था.

मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में एक निजी स्कूल पर शिक्षा के अधिकार कानून  (Right to Education) के तहत पढ़ने वाले आदिवासी बच्चों को बाकी बच्चों से अलग बैठाने का गंभीर आरोप लगा है.

बड़वानी जिले के निवाली क्षेत्र में स्थित Mount Litera Zee School में आरटीई के तहत दाखिल आदिवासी बच्चों को नियमित कक्षाओं से अलग करके दोपहर के समय में पढ़ाया जा रहा था.

इस मामले को लेकर जिला प्रशासन ने सख्ती दिखाई है, कलेक्टर सुजाता राव ने स्कूल को नोटिस भेजा और जांच के आदेश दिए.

बड़वानी के निवाली इलाके में एक निजी स्कूल में पढ़ रहे आरटीई (Right to Education) के तहत नामांकित आदिवासी बच्चों को बाकी बच्चों से अलग कमरे में बैठाया जा रहा था.

उन्हें स्कूल के सामान्य समय से अलग समय पर बुलाया जा रहा था, जिससे वे सुबह की प्रार्थना, खेल और दूसरी गतिविधियों से वंचित रह जाते थे.

इस व्यवहार से परेशान होकर करीब 13 आदिवासी बच्चों के माता-पिता ने जिला शिक्षा अधिकारी और सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारियों से शिकायत की.

उन्होंने कहा कि उनके बच्चों को स्कूल में अलग रखा जाता है और ठीक से पढ़ाई नहीं कराई जाती.

स्कूल के डायरेक्टर पियूष शर्मा ने कहा कि आरटीई के बच्चे अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा नहीं जानते थे, इसलिए उन्हें अलग समय पर पढ़ाया जा रहा था.

उन्होंने यह भी कहा कि अब बच्चों को बाकी छात्रों के साथ ही सामान्य समय में पढ़ाया जा रहा है.

जैसे ही मामला कलेक्टर सुजाता राव तक पहुँचा, उन्होंने तुरंत स्कूल को 7 दिन में जवाब देने का नोटिस भेजा.

साथ ही कहा कि अगर स्कूल ने नियम नहीं माने तो उनकी मान्यता रद्द की जा सकती है.

जिला शिक्षा विभाग ने इस मामले की जांच के लिए 5 लोगों की एक टीम बनाई है.

यह टीम 3 दिन के अंदर रिपोर्ट सौंपेगी. रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्रवाई की जाएगी.

इस मामले के सामने आने के बाद कांग्रेस नेता और सामाजिक संगठनों ने स्कूल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.

माता-पिता का कहना है कि उनके बच्चों को स्कूल में अलग समय और अलग कमरे में पढ़ाना गलत है. ऐसा करना नियमों के खिलाफ है.

उन्होंने बताया कि बच्चों को स्कूल की ज़रूरी गतिविधियों जैसे प्रार्थना, खेल और ग्रुप में पढ़ाई में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. इससे बच्चों को उनका पूरा हक नहीं मिला.

कई माता-पिता ने कहा कि ऐसा व्यवहार बच्चों को गरीब और अलग समझने का एहसास दिलाता है. इससे बच्चे खुद को कमतर महसूस करने लगे और उनका आत्मसम्मान भी घट गया हो.

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