झारखंड में एक बार फिर आदिवासियों की ज़मीन को लेकर विवाद शुरू हो गया है.
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि वह रांची के नगड़ी इलाके में आदिवासी किसानों की ज़मीन को जबरन छीन रही है.
यहाँ RIMS 2 नाम का एक नया बड़ा अस्पताल बनाने की योजना है. लेकिन किसानों का कहना है कि उन्हें न तो कोई जानकारी दी गई, और न ही उनकी इजाज़त ली गई.
चंपाई सोरेन ने कहा कि उन्हें अस्पताल बनाने से कोई दिक्कत नहीं है पर जो ज़मीन ली जा रही है, वह आदिवासियों की उपजाऊ खेती वाली ज़मीन है.
सरकार को चाहिए कि वह अस्पताल को ऐसी जगह बनाए जहाँ बंजर ज़मीन हो, जैसे स्मार्ट सिटी इलाके में.
उन्होंने ये भी कहा कि सरकार ने कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई न अधिसूचना निकाली, न ग्राम सभा की बैठक बुलाई, जो कि ज़रूरी होता है.
ये पहली बार नहीं है जब झारखंड में आदिवासी ज़मीन को लेकर विवाद हुआ है.
कुछ साल पहले खूंटी और आस-पास के इलाकों में ‘पत्थलगड़ी आंदोलन’ हुआ था, जहाँ आदिवासियों ने पत्थर गाड़कर अपनी ज़मीन पर किसी भी सरकारी काम का विरोध किया था.
वे चाहते थे कि उनकी इजाज़त के बिना कोई भी काम उनकी ज़मीन पर न हो.
झारखंड में दो बड़े क़ानून हैं – CNT एक्ट और SPT एक्ट – जो आदिवासी ज़मीन की रक्षा करते हैं.
इनके अनुसार, आदिवासी की ज़मीन न तो कोई गैर-आदिवासी खरीद सकता है और न ही सरकार बिना ग्राम सभा की मंज़ूरी के कोई काम कर सकती है.
लेकिन कई बार इन नियमों का पालन नहीं होता, जिससे विवाद खड़ा हो जाता है.
ऐसा लग रहा है कि इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है.
चंपाई सोरेन ने कहा है कि 24 अगस्त को वे किसानों के साथ खेतों में हल चलाएंगे, ताकि सरकार को दिखाया जा सके कि ये ज़मीन किसानों की रोज़ी-रोटी है.
उनका कहना है कि विकास ज़रूरी है, लेकिन आदिवासियों के अधिकारों की कीमत पर नहीं होना चाहिए.
आज भी आदिवासी अपने “जल, जंगल और ज़मीन” के लिए लड़ रहे हैं.
सरकार को चाहिए कि वो उनकी बात सुने, नियमों का पालन करे और ऐसा कोई काम न करे जिससे उनके अधिकारों को चोट पहुँचे.

