असम के आदिवासी बहुल इलाकों में इन दिनों ज़मीन को लेकर बड़ा बवाल खड़ा हो गया है.
सरकार पर आरोप है कि उसने छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के तहत सुरक्षित इलाकों की हज़ारों बीघा ज़मीन कॉरपोरेट कंपनियों और गैर-आदिवासी समुदायों को सौंप दी है.
इसी फैसले के खिलाफ़ यहां विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है.
डिफू में हज़ारों लोग सड़कों पर
20 अगस्त को केंद्रीय असम के कर्बी आंगलोंग ज़िले के मुख्यालय दीफू में करीब 10,000 लोग सड़कों पर उतर आए.
दीफू गुवाहाटी से लगभग 240 किलोमीटर दूर है और छठी अनुसूची के तहत आता है.
छठीं अनुसूचि के तहत पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासी इलाकों को विशेष अधिकार और स्वायत्तता दी गई है ताकि उनकी ज़मीन और संस्कृति सुरक्षित रह सके.
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि राज्य सरकार और कर्बी आंगलोंग ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (KAADC) कॉरपोरेट कंपनियों के दबाव में काम कर रही है.
इस प्रदर्शन की अगुवाई ऑल-पार्टी हिल्स लीडर्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष जोन्स इंगती काथर ने की.
उन्होंने बीजेपी शासित परिषद के चीफ एग्जीक्यूटिव मेंबर तुलीराम रोंगहांग पर सीधे-सीधे कॉरपोरेट से मिलीभगत और आदिवासी हितों से विश्वासघात करने का आरोप लगाया.
रैली में शामिल असम जातीय परिषद (AJP) के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने भी तुलीराम रोंगहांग और बीजेपी पर जमकर हमला बोला.
उन्होंने कहा, “एक तरफ परिषद प्रमुख करोड़ों का आलीशान मकान बना रहे हैं, दूसरी तरफ पहाड़ी ज़िले के आदिवासी लोग अब भी झोपड़ीनुमा घरों में रहने को मजबूर हैं. सरकार कॉरपोरेट घरानों को ज़मीन देकर आदिवासी समाज की संस्कृति और पहचान से खिलवाड़ कर रही है.”
कांग्रेस का आरोप और विवादित वीडियो
विवाद की शुरुआत जुलाई में हुई, जब असम कांग्रेस अध्यक्ष गौरव गोगोई ने एक वीडियो जारी किया.
इसमें एक आलीशान निर्माणाधीन घर दिखाया गया था, जिसे उन्होंने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के करीबी दोस्त का घर बताया.
विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह घर दरअसल तुलीराम रोंगहांग का है और इसे कॉरपोरेट के साथ मिलीभगत से खड़ा किया जा रहा है.
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
सरकार के इस पूरे फैसले पर गुवाहाटी हाई कोर्ट ने भी सख़्त नाराज़गी जताई है.
मामला तब सामने आया जब दिमा हसाओ ज़िले के 22 स्थानीय लोगों ने याचिका दाखिल की.
उनका कहना था कि उन्हें उनकी ज़मीन से बेदखल कर दिया गया जबकि सरकार ने वही ज़मीन एक निजी सीमेंट कंपनी को दे दी.
याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय कुमार मेधी ने कहा, “3,000 बीघा! ये क्या चल रहा है? इतनी ज़मीन किसी प्राइवेट कंपनी को कैसे दे दी गई? क्या ये कोई मज़ाक है?”
कोर्ट ने कहा कि छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में सबसे पहले आदिवासी समाज के अधिकारों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए.
अदालत ने नॉर्थ कछार हिल्स डिस्ट्रिक्ट ऑटोनॉमस काउंसिल (NCHDAC) को निर्देश दिया कि इतनी बड़ी ज़मीन देने की पूरी फाइल और नीति कोर्ट में पेश की जाए.
इस मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी.
कंपनी को कैसे मिली इतनी ज़मीन?
जानकारी के मुताबिक, कोलकाता की महाबल सीमेंट कंपनी को अक्टूबर 2024 में 2,000 बीघा ज़मीन दी गई थी.
इसके बाद नवंबर में और 1,000 बीघा ज़मीन उसे एलॉट कर दी गई. यानी कुल 3,000 बीघा (करीब 992 एकड़) ज़मीन कंपनी को एक सीमेंट प्लांट लगाने के लिए मिल गई.
यह इलाका उमरांगसो क्षेत्र में आता है. ये क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील है.
यहां गर्म पानी के झरने, प्रवासी पक्षियों के ठहरने की जगह और वन्यजीवों की मौजूदगी की वजह से इसे इको-हॉटस्पॉट माना जाता है.
तिनसुकिया में गैर-आदिवासियों को बसाने का फैसला
ये विवाद यहीं तक सीमित नहीं है. असम कैबिनेट ने 18 अगस्त को एक और बड़ा फैसला लिया.
इसमें कई गैर-आदिवासी समुदायों को संरक्षित वर्ग (Protected Class) का दर्जा देकर उन्हें तिराप ट्राइबल बेल्ट में बसने की अनुमति दे दी गई.
इनमें आदिवासी (टी ट्राइब), अहोम, चुटिया, गुरखा, बंगाली (नमशूद्र और सुत्रधर), मटक और मोरान जैसी जातियां शामिल हैं.
यहां पहले से बोडो, देओरी, खामती, राभा, सिंग्फो, तांगसा और कई अन्य आदिवासी समुदाय रहते आए हैं.
इनका कहना है कि सरकार का यह फैसला इलाके की जनसांख्यिकी (demography) बदल देगा और उन्हें अल्पसंख्यक बना देगा.
24 अगस्त को बंद का ऐलान
इसी के विरोध में तिनसुकिया और डिब्रूगढ़ जिलों के आदिवासी संगठनों ने 24 घंटे के बंद काएलान किया है.
खास बात ये है कि इसी दिन मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा तिनसुकिया ज़िले के मार्गेरिटा जाने वाले हैं.
संगठनों ने चेतावनी दी है कि वे मुख्यमंत्री के इस दौरे का भी विरोध करेंगे.