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BHU स्टडी में सहारिया जनजाति की आनुवंशिक संरचना और TB के बीच गहरा संबंध सामने आया

शोधकर्ताओं ने पाया कि सहरिया जनजाति में दो दुर्लभ मातृ हैप्लोग्रुप N5 और X2 पाए जाते हैं, जो आस-पास की आबादी में पूरी तरह से अनुपस्थित हैं.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और चार अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक आनुवंशिक अध्ययन में मध्य प्रदेश की सहरिया जनजाति (Sahariya tribe ) में तपेदिक यानि TB के असामान्य रूप से उच्च प्रसार के पीछे एक संभावित आनुवंशिक कारक की पहचान की गई है.

ये अध्यन हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल माइटोकॉन्ड्रियन (Mitochondrion) में प्रकाशित हुआ है.

सहरिया, जिन्हें विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) माना जाता है. उनमें प्रति एक लाख जनसंख्या पर टीबी के मामले 1,518 से 3,294 के बीच दर्ज किए जाते हैं, जो राष्ट्रीय औसत से कई गुना ज़्यादा है.

बीएचयू के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में ये अध्ययन किया गया है. अध्यन में मातृ आनुवंशिक वंशावली (Maternal genetic lineage) और टीबी की संवेदनशीलता में उसकी भूमिका की जांच के लिए 729 व्यक्तियों के माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम का विश्लेषण किया गया, जिनमें 140 सहरिया और 589 पड़ोसी जनजातियों और जातियों के लोग शामिल थे.

शोधकर्ताओं ने पाया कि सहरिया जनजाति में दो दुर्लभ मातृ हैप्लोग्रुप N5 और X2 पाए जाते हैं, जो आस-पास की आबादी में पूरी तरह से अनुपस्थित हैं.

फाइलोजेनेटिक स्टडी से पता चलता है कि ये वंश प्रारंभिक लौह युग के दौरान पश्चिमी भारत से जनजाति में प्रवेश कर गए, जिससे उनकी जीनोमिक संरचना में परिवर्तन हुआ और इससे टीबी के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ गई.

प्रोफेसर चौबे ने कहा, “यह पहली बार है कि किसी अध्ययन में यह बताया गया है कि किसी जनसंख्या की आनुवंशिक संरचना किसी बीमारी के साथ किस प्रकार इंटरैक्ट करती है.”

प्रमुख लेखिका देबाश्रुति दास ने कहा कि कमजोर समुदायों में आनुवंशिक संवेदनशीलता को समझने से भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों को मजबूत किया जा सकता है. क्योंकि भारत में दुनिया के सबसे अधिक टीबी मरीज है.

वरिष्ठ लेखक और प्रोफेसर प्रशांत सुरवाझला ने बताया कि ये निष्कर्ष एक संस्थापक प्रभाव की ओर इशारा करते हैं, जहां दुर्लभ मातृवंश सहरिया आबादी में केंद्रित हो गए, जिससे टीबी के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर संभावित रूप से असर पड़ा.

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि आनुवंशिक कारक, कुपोषण और स्वास्थ्य सेवा तक खराब पहुँच के साथ मिलकर, समुदाय पर रोगों के बढ़ते बोझ में योगदान करते हैं.

इस अध्ययन में उच्च-स्तरीय माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए विश्लेषण का इस्तेमाल किया गया, जिसमें मध्यप्रदेश के विदिशा ज़िले से लिए गए नए सैंपल भी शामिल थे. इस रिसर्च में BHU के अलावा कलकत्ता विश्वविद्यालय, फॉरेंसिक लैब जबलपुर और जयपुर के शोधकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया.

सहरिया जनजाति में TB होने के कारण

सहरिया जनजाति में टीबी होने के तीन मुख्य कारण बताए जाते हैं. इनमें से पहला है पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलने से इम्युनिटी कमजोर होना.

सहरिया लोगों के आर्थिक रुप से कमजोर होने के कारण इन्हें पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिल पाता है.

इस जनजाति में टीबी होने का दूसरा कारण ये है कि ये लोग बीड़ी और शराब बहुत ज्यादा पीते हैं.

इसके अलावा ज्यादातर आदिवासी परिवार एक कमरे के घर में रहते हैं जिसमें वेंटिलेशन नहीं होता है. इसलिए एक बार परिवार में किसी एक को यह बीमारी होने पर वो जल्द ही बाकी में भी फैल जाती है. जबकि टीबी मरीज को हमेशा सबसे दूर रखना चाहिए.

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