झारखंड में छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act) का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर आदिवासी जमीन खरीदने के 15 साल पुराने मामले में कई लोगों को सजा सुनाई गई है. जिसमें राज्य के पूर्व मंत्री एनोस एक्का, उनकी पत्नी मेनन एक्का और रांची के तत्कालीन LRDC समेत कुल 9 दोषी शामिल हैं.
दोषी करार दिए गए लोगों की पहचान तत्कालीन भूमि सुधार उप समाहर्ता कार्तिक प्रभात, अंचल निरीक्षक राज किशोर सिंह, फिरोज अख्तर और अनिल कुमार, राजस्व कर्मचारी बृजेश मिश्रा, ब्रजेश महतो, मणिलाल महता और हल्का कर्मचारी परशुराम केरकेट्टा के रूप में हुई.
अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने के समय नौ दोषी अदालत में मौजूद थे और आदेश के बाद सभी को बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार भेज दिया गया. परशुराम केरकेट्टा के कोमा में होने के कारण अदालत में उपस्थित नहीं हो सके और उनका इलाज चल रहा है.
CBI की स्पेशल कोर्ट ने सुनाया फैसला
शनिवार (30 अगस्त, 2025) को सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व मंत्री एनोस एक्का और पत्नी मेनन एक्का को 7-7 साल की सजा सुनाई साथ ही दोनों पर दो-दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया.
इसके अलावा रांची के तत्कालीन LRDC कार्तिक कुमार प्रभात को कोर्ट ने 5 साल की सजा सुनाई और 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है.
मामले में दोषी पाए गए तीन तत्कालीन CI राज किशोर सिंह, फिरोज अख्तर और अनिल कुमार को कोर्ट ने चार-चार साल की सजा सुनाते हुए तीनों पर 1-1 लाख रुपए जुर्माना लगाया.
यह मामला साल 2006 से 2008 के बीच रांची जिले के विभिन्न हिस्सों – हिनू, ओरमांझी, नेओरी और सदर क्षेत्र में एनोस द्वारा अपनी पत्नी के नाम पर आदिवासी लोगों से भूमि अधिग्रहण से संबंधित है.
मंत्री रहते पद का दुरुपयोग
एनोस एक्का साल 2005 से 2008 के बीच अर्जुन मुंडा और बाद में मधु कोड़ा सरकार में मंत्री रहे. आरोप है कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए फर्जी पते का इस्तेमाल कर आदिवासी जमीनों की बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त की.
वहीं दोषी करार दिए गए सरकारी कर्मचारी अवैध लेन-देन से जुड़ी साजिश में मुख्य रूप से शामिल थे और उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी सहपठित धारा 193 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) सहपठित धारा 13(1)(डी) के तहत दोषी पाया गया.
सीबीआई की विशेष अदालत ने राजस्व कर्मचारी बृजेश मिश्रा को 4 साल की सजा सुनाई और 1 लाख का जुर्माना लगाया. इसके अलावा मणिलाल महतो को 5 साल की सजा सुनाई गई और एक लाख का जुर्माना लगाया.
साथ ही ब्रजेश्वर महतो को भी 5 साल की सजा सुनाई और 1 लाख का जुर्माना लगाया. मामले में दोषी ठहराए गए दसवें आरोपी परशुराम केरकेट्टा के आईसीयू में भर्ती होने की वजह से अदालत ने उसके रिकॉर्ड को अलग कर दिया है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल राज्य के पूर्व मंत्री एनोस एक्का पर आरोप है कि उन्होंने 15 साल पहले राज्य में मंत्री रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग कर 1.18 करोड़ रुपए से अधिक की आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री फर्जी पते का इस्तेमाल कर की थी.
इसमें तत्कालीन एलआरडीसी, रांची कार्तिक प्रभात समेत तत्कालीन तीन सीआई राज किशोर सिंह, फिरोज अख्तर, अनिल कुमार के अलावा राजस्व कर्मचारी ब्रजेश मिश्रा, मनीलाल महतो और ब्रजेश्वर महतो की भी मिलीभगत से सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर आदिवासी जमीन की खरीद फर्जी पते के आधार पर हुई थी.
बाद में झारखंड हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 4 अगस्त 2010 को इस मामले में पूर्व मंत्री एनोस एक्का, उनकी पत्नी मेनन एक्का समेत अन्य दस लोगो पर एफआईआर दर्ज की थी.
इस मामले में CBI के द्वारा जांच पूरी करते हुए दिसंबर 2012 में चार्जशीट दाखिल की थी. 22 अगस्त को इस मामले में दोनों पक्ष की बहस पूरी होने के बाद फैसले की तारीख 29 अगस्त तय की थी.
29 अगस्त को ही CBI के विशेष जज की अदालत ने 15 साल पुराने सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर आदिवासी जमीन खरीदने के मामले में पूर्व मंत्री एनोस एक्का, उनकी पत्नी मेनन एक्का, रांची के तत्कालीन एलआरडीसी कार्तिक कुमार प्रभात समेत नौ को दोषी करार दिया गया था.
इसके बाद 30 अगस्त को सजा के बिंदुओं पर सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के द्वारा फैसला सुनाया गया.
पूर्व मंत्री एनोस एक्का पर मंत्री रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग कर राजधानी रांची के हिनू में अपनी पत्नी मेनन एक्का के नाम पर 22 कट्ठा जमीन, जबकि रांची के ओरमांझी में 12 एकड़ से अधिक जमीन, रांची के नेवरी में चार एकड़ जमीन, रांची के ही चुटिया सिरम टोली मौजा स्टेशन रोड में करीब 9 डिसमिल जमीन खरीदी थी.
सभी जमीन की खरीददारी मार्च 2006 से लेकर के मई 2008 के बीच की गई थी.
क्या है CNT एक्ट
छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (1908) ब्रिटिश शासनकाल में लागू किया गया था. इस कानून का मकसद आदिवासी समुदाय की जमीन को सुरक्षित रखना है. इसके तहत आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को बेचना, गिरवी रखना या ट्रांसफर करना प्रतिबंधित है.
यहां तक कि एक आदिवासी भी अपने थाना क्षेत्र से बाहर किसी अन्य आदिवासी को जमीन नहीं बेच सकता.
CNT एक्ट का महत्व
बिरसा आंदोलन के बाद 1908 में भूमि संबंधी मुद्दों को नियंत्रित करने और भूमि हस्तांतरण को रोकने के लिए लागू किया गया छोटानागपुर काश्तकारी (CNT) अधिनियम, आदिवासियों के लिए मैग्ना कार्टा माना जाता है यानि राजा भी कानून से ऊपर नहीं है. इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा, निष्पक्ष सुनवाई और कानून के समक्ष समानता जैसे अधिकारों की गारंटी दी गई.
इस अधिनियम का खाका एक मिशनरी सामाजिक कार्यकर्ता जॉन हॉफमैन ने तैयार किया था.
यह अधिनियम उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू प्रमंडलों में विभिन्न नगर पालिकाओं और अधिसूचित क्षेत्र समितियों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों सहित, प्रभावी है.
सीएनटी अधिनियम की धारा 46 अनुसूचित जनजातियों/अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों की भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाती है.
हालांकि, एक आदिवासी अपनी भूमि बिक्री, विनिमय, उपहार या वसीयत के माध्यम से किसी अन्य अनुसूचित जनजाति के सदस्य और अपने थाना क्षेत्र के निवासियों को हस्तांतरित कर सकता है.
वहीं अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के लोग, डिप्टी कमिशनर की पूर्व अनुमति से, उस जिले की सीमा के भीतर अपने समुदाय के सदस्यों को भूमि हस्तांतरित कर सकते हैं जिसमें वह भूमि स्थित है.
इसके अलावा एक्ट के तहत जमीन को छह वर्ष से अधिक लीज पर भी नहीं दिया जा सकता है. यह लीज भी सीमित छूट के लिए है, जिसका मतलब है कि लीज की जमीन पर किसी भी तरह का व्यावसायिक काम नहीं किया जा सकता है.
हालांकि, आदिवासियों के संबंध में इस अधिनियम का अक्षरशः पालन किया गया लेकिन अनुसूचित जाति/पिछड़े वर्ग के लिए इसके प्रावधान लगभग निष्क्रिय ही रहे. इन प्रावधानों को समय-समय पर अदालतों में चुनौती भी दी गई और पटना हाई कोर्ट ने 1996 में इसे संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया.
आदिवासी संगठन कानून में किसी भी बदलाव का विरोध करते रहे हैं. लेकिन गैर-आदिवासी चाहते हैं कि अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों पर ज़मीन की बिक्री पर लगे प्रतिबंधों में ढील देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया जाए.
सीएनटी समर्थक संगठनों, जिनमें ज़्यादातर आदिवासी संगठन हैं… उन्होंने सीएनटी एक्ट बचाओ मोर्चा का गठन किया है और राज्य सरकार से कानून में कोई बदलाव न करने की मांग की है. उनका आरोप है कि पिछले संशोधनों ने इस अधिनियम को कमज़ोर कर दिया है और आदिवासियों की ज़मीन “हड़पने” के लिए और ज़्यादा रास्ते खोल दिए हैं.
एक समय में झारखंड बचाओ संघर्ष मोर्चा के तहत विभिन्न गैर-आदिवासी संगठन राज्य सरकार पर कानून में संशोधन के लिए दबाव बनाने के लिए एकजुट हुए. उनका दावा है कि अधिनियम के कुछ प्रावधान विकास में बाधा बन रहे हैं.
वहीं कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जनजाति सलाहकार परिषद (टीएसी) की सिफारिशों पर राज्य विधानमंडल द्वारा सीएनटी अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होगी क्योंकि झारखंड संविधान की अनुसूची 5 के अंतर्गत आता है.
इसके अलावा, सीएनटी अधिनियम संविधान की नौवीं अनुसूची में सूचीबद्ध है, जिसका अर्थ है कि यह न्यायिक समीक्षा से परे है.