बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (BTC) के चुनाव करीब आते ही असम के कई प्रमुख आदिवासी संगठन इस बार खुलकर सामने आए हैं.
उनका कहना है कि जो सीटें संविधान द्वारा केवल अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित की गई हैं, उन पर गैर-जनजातीय उम्मीदवारों को खड़ा करना लोकतांत्रिक हक़ पर सीधा हमला है.
ऑल असम ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (AATSU) और बोडोलैंड जनजाति सुरक्षा मंच (BJSM) समेत कई संगठनों ने कोकराझार के डिप्टी कमिश्नर को एक ज्ञापन सौंपा.
इस ज्ञापन में साफ कहा गया कि एसटी आरक्षित सीटों पर किसी भी हाल में गैर-जनजातीय उम्मीदवारों को नामांकन दाख़िल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
संगठनों ने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक दल संविधान में दी गई सुरक्षा को दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं.
ज्ञापन में संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) और जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 (Representation of the People Act) का हवाला दिया गया.
इन क़ानूनों में साफ़ प्रावधान है कि एसटी आरक्षित सीटों पर केवल अनुसूचित जनजाति का उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकता है.
कौन-सी जनजातियां एसटी सूचि में शामिल हैं?
असम में अनुसूचित जनजातियों को दो श्रेणियों में बांटा गया है, हिल एरिया (स्वायत्त ज़िले) और प्लेन्स एरिया.
प्लेन एरिया की एसटी सूचि में कछार के बर्मन, बोरो/बरो कछारी, देओरी, होजाई, कछारी/सोनवाल, लालुंग, मेच, मिरी और राभा शामिल हैं.
वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले चकमा, डिमासा कछारी, गारो, हाजोंग, हमार, खासी–जैन्तिया–सिन्थेंग–पनार–वार–भोई–लिंग्न्गम, कुकी जनजाति, लखेर, ताई बोलने वाले मान, मिज़ो (लुशाई), मिकिर, नागा, पावी और सिन्थें अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल हैं.
यह सूची अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1976 और 2011 की जनगणना में अधिसूचित है.
बीटीसी इलाका मुख्य रूप से प्लेन क्षेत्र में आता है. इसलिए चुनाव में अगर गैर-जनजातीय उम्मीदवार खड़ा होता है तो यहां बोडो, राभा, लालुंग, देओरी, मिरी जैसी जनजातियों का प्रतिनिधित्व सीधे तौर पर दांव पर लग सकता है.
संगठनों का कहना है कि यदि गैर-जनजातीय उम्मीदवारों को आरक्षित सीटों पर खड़ा किया गया तो यह न केवल कानून का उल्लंघन होगा बल्कि इन समुदायों के राजनीतिक अधिकारों की अनदेखी भी होगी.
आदिवासी संगठनों ने दिया कोर्ट के फैसलों का हवाला
आदिवासी संगठनों ने अपने तर्क को मज़बूत करने के लिए अदालत के कई फ़ैसलों का भी ज़िक्र किया.
उन्होंने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस ऐतिहासिक फ़ैसले की याद दिलाई, जिसमें 2014 में जनक लाल बसुमतारी बनाम नबा कुमार सरनिया मामले में अदालत ने साफ़ कहा था कि “सरनिया कछारी” को एसटी समुदाय के रूप में मान्यता नहीं मिली है.
इसी आधार पर नबा कुमार सरनिया का चुनाव रद्द कर दिया गया था.
साथ ही 2018 में दाख़िल एक जनहित याचिका (PIL) पर अदालत ने यह निर्देश दिया था कि जिन समुदायों को सूची में शामिल नहीं किया गया है, उन्हें एसटी प्रमाणपत्र जारी न किया जाए.
ज्ञापन में क्या मांग की गई?
ज्ञापन में संगठनों ने मांग की कि एसटी आरक्षित सीटों पर दाख़िल सभी नामांकन पत्रों की कड़ी जांच की जाए.
अगर कोई गैर-जनजातीय उम्मीदवार नामांकन करता है तो उसे तुरंत खारिज किया जाए.
इसके साथ ही ज्ञापन में ये भी मांग की गई है कि जांच की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो और हर अस्वीकृति का कारण सार्वजनिक किया जाए.
जो लोग फ़र्ज़ी ST प्रमाणपत्र का इस्तेमाल करते हैं या दल ऐसा करने की कोशिश करते हैं, उनके खिलाफ़ सख़्त क़ानूनी कार्रवाई की भी मांग की गई है.
साथ ही, ग़लत एसटी प्रमाणपत्र जारी करने वाले अफ़सरों पर भी ज़िम्मेदारी तय करने की बात ज्ञापन में शामिल है.
संगठनों का कहना है कि अगर इस नियम का पालन नहीं किया गया तो यह सीधे तौर पर बोडो समेत पूरे आदिवासी समाज के अधिकारों पर चोट होगी.
उन्होंने चुनाव आयोग से अपील की कि वह निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करे और एसटी आरक्षित सीटों पर केवल योग्य उम्मीदवारों को ही चुनाव लड़ने दे.