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उत्तरी त्रिपुरा में आदिवासी परिवारों को बेदखल किया जा रहा है – प्रद्योत देबबर्मा

देबबर्मा ने आरोप लगाया कि राज्य आदिवासियों की ज़मीन की रक्षा करने में विफल रहा है.

टिपरा मोथा पार्टी (TIPRA Motha) के प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा (Pradyot Debbarma) ने दावा किया कि उत्तरी त्रिपुरा ज़िले में आदिवासी परिवारों (Tribal families) को उनकी पैतृक ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है, जो संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षित है.

वहीं ज़िला प्रशासन ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि जिस ज़मीन पर भूमिगत गैस पाइपलाइन बिछाई जा रही है, उसके मालिक को 46 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया गया है.

देबबर्मा ने सोमवार को दावा किया कि उन्हें दमचेरा और पानीसागर के लोगों से बेदखली की धमकियों के बारे में कई शिकायतें मिली हैं.

उन्होंने कहा, “ये लोग पीढ़ियों से इस ज़मीन पर रह रहे हैं, फिर भी उन्हें ज़मीन खाली करने के लिए कहा जा रहा है क्योंकि उनके पास ज़मीन के अधिकार नहीं हैं.”

उन्होंने पूछा, “क्या यह गैरकानूनी नहीं है कि स्वायत्त ज़िला परिषद क्षेत्रों से आदिवासियों को सिर्फ़ बाहरी लोगों को ज़मीन देने के लिए बेदखल किया जा रहा है?”

देबबर्मा ने आरोप लगाया कि राज्य आदिवासियों की ज़मीन की रक्षा करने में विफल रहा है.

उन्होंने कहा, “तिपरासा के लोगों को उनकी अपनी ज़मीन से दूर रखा जा रहा है जबकि बाहरी लोगों को बसाया जा रहा है. प्राकृतिक संसाधनों को बिना उनकी सहमति के छीना जा रहा है और जब लोग आवाज़ उठाते हैं तो उन्हें आतंकवादी बताकर गिरफ़्तार कर लिया जाता है.”

उत्तरी त्रिपुरा के ज़िला मजिस्ट्रेट चंडी चंद्राना ने कहा कि दमचेरा में कोई बेदखली अभियान नहीं चलाया गया.

उन्होंने कहा, “पूर्वोत्तर गैस ग्रिड स्थापित करने में लगी इंद्रधनुष गैस ग्रिड लिमिटेड (IGGL) ने भूमिगत गैस पाइपलाइन बिछाने का काम शुरू कर दिया है. काम शुरू करने से पहले, ज़मीन के मालिक को 46 लाख रुपये दिए गए थे, जो वर्तमान में दिल्ली में रह रहे हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “उन्होंने एक बॉन्ड पर भी हस्ताक्षर किए हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि वे काम के दौरान कोई आपत्ति नहीं उठाएंगी. अब, वे उस ज़मीन के लिए 90 लाख रुपये मांग रही हैं, जो आरक्षित वन क्षेत्र में आती है. कोई कंपनी 1 कनी (0.133781 हेक्टेयर) ज़मीन के बदले मालिक को 90 लाख रुपये नहीं दे सकती.”

चंद्रनन ने कहा कि ज़िला प्रशासन ने इस समस्या के समाधान के लिए तीन बैठकें कीं, लेकिन ज़मीन मालिक एक भी बैठक में शामिल नहीं हुए.

टिपरा मोथा और गठबंधन

त्रिपुरा में 2023 के विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने वाली क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा ने 13 सीटें जीतीं और बाद में पिछले साल के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में शामिल हो गई.

लेकिन अब अक्सर बीजेपी और टिपरा मोथा पार्टी के विचारों का मतभेद देखने को मिल रहा है. टिपरा आए दिन आदिवासी समुदाय को लेकर किए गए वादे को पूरा नहीं करने पर बीजेपी से खफा है.

पार्टी ने हाल ही में कहा कि अगर केंद्र सरकार और भाजपा ने आदिवासियों से किए गए वादे नहीं निभाए, तो वह भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ देगी.

यह बात पार्टी के नेता प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने कही है. उनका कहना है कि अगर टिपरा समझौता लागू नहीं हुआ, तो उनकी पार्टी सरकार में नहीं रहेगी.

टिपरा समझौता एक वादा है जो केंद्र सरकार और Tipra Motha पार्टी के बीच हुआ था. ये वादा लोकसभा चुनाव से पहले किया गया था.

इसमें कहा गया था कि त्रिपुरा के आदिवासी लोगों को ज़्यादा अधिकार दिए जाएंगे. जैसे – उनकी ज़मीन की रक्षा, उनकी संस्कृति और भाषा को बचाना, और उन्हें एक अलग प्रशासनिक ढांचा (Greater Tipraland) देना जिसमें वे अपने इलाकों में खुद फैसले ले सकें.

इस समझौते को संविधान के तहत लागू किया जाना था.

लेकिन ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा है जिसके चलते टिपरा मोथा ने गठबंधन से अलग होने तक का फैसला कर लिया है.

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