HomeAdivasi Dailyतमिलनाडु के दो आदिवासी किसानों को नवाचारी किसान पुरस्कार

तमिलनाडु के दो आदिवासी किसानों को नवाचारी किसान पुरस्कार

आधुनिक तकनीक और पारंपरिक ज्ञान को मिलाकर तमिलनाडु के आदिवासी किसानों ने बढ़ाई पैदावार, पाया राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान

तमिलनाडु के दो आदिवासी किसानों ने आधुनिक खेती की ओर कदम बढ़ाकर एक नई मिसाल पेश की है.

उनकी मेहनत और प्रयोगशीलता को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (IIHR) ने उन्हें “नवाचारी किसान पुरस्कार 2025” से सम्मानित किया.

यह सम्मान संस्थान के 59वें स्थापना दिवस समारोह में बेंगलुरु में प्रदान किया गया.

कौन हैं ये किसान

पुरस्कार पाने वाले किसानों में सलेम ज़िले की करुमन्धुरई पहाड़ियों के किलाकाडु गांव के 38 वर्षीय बी. कुमार और तिरुचिरापल्ली जिले की पचमलाई पहाड़ियों के टॉप सेंगट्टुपट्टी गांव के 39 वर्षीय के. पलानी शामिल हैं.

दोनों किसान तमिलनाडु के आदिवासी कल्याण विभाग की “ऐंथिनई” परियोजना से जुड़े हुए हैं और इसी के माध्यम से उन्होंने वैज्ञानिक तकनीक और पारंपरिक ज्ञान को मिलाकर खेती को आगे बढ़ाया है.

पलानी की सफलता की कहानी

पलानी ने भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित टमाटर की उन्नत किस्म “अर्का अभेद” और मिर्च की किस्म “अर्का सान्वी” की खेती की.

केवल एक एकड़ भूमि पर उन्होंने 16 टन टमाटर का उत्पादन किया और इस खेती से 4.60 लाख रुपये का शुद्ध लाभ कमाया.

मिर्च की पैदावार भी पहले की तुलना में 68 प्रतिशत बढ़ी और उनके मुनाफे में लगभग 90 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

कुमार की खेती का तरीका

कुमार ने खेती में प्रिसिजन फार्मिंग और एकीकृत फसल पद्धति (Integrated Cropping) को अपनाया.

इस तरीके से उन्होंने रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर निर्भरता कम कर दी.

इससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ, उत्पादन की लागत घटी और फसल की गुणवत्ता भी बेहतर हुई.

उनकी कोशिशों से यह साबित हुआ कि यदि आधुनिक तकनीक का सही उपयोग किया जाए तो छोटे किसान भी मिट्टी की क्षमता बढ़ाते हुए बेहतर आमदनी हासिल कर सकते हैं.

वैज्ञानिक तकनीकों का लाभ

दोनों किसानों ने अपनी खेती में कई वैज्ञानिक और जैविक उपाय अपनाए.

उन्होंने अर्का माइक्रोबियल कंसोर्टियम, अर्का वेजिटेबल स्पेशल और जैविक कीटनाशक जैसे अर्का नीम सोप और अर्का पोंगामिया सोप का उपयोग किया.

इन उपायों से न केवल फसलों की गुणवत्ता में सुधार हुआ बल्कि लागत भी कम हुई और मिट्टी की उर्वरक क्षमता लंबे समय तक बनी रही.

किसानों का अनुभव

पलानी ने बताया कि पहले वह केवल कसावा (Tapioca) की खेती करते थे. यह फसल साल भर खेत में रहती है, लेकिन बाज़ार में इसके दाम स्थिर नहीं रहते, जिससे अच्छी आय नहीं हो पाती थी.

अब वह टमाटर, मिर्च और बीन्स जैसी सब्जियों की खेती साल में तीन मौसम कर सकते हैं.

उन्होंने अभी केवल दो मौसम में ही खेती की है और फिर भी आय पहले की तुलना में कहीं ज्यादा हो गई है.

दोनों किसानों ने सरकार से अनुरोध किया कि आदिवासी क्षेत्रों में किसानों के लिए विशेष बाजार स्थापित किए जाएं ताकि किसान अपनी उपज सीधे बेच सकें और बिचौलियों पर निर्भर न रहें.

सरकार का दृष्टिकोण

आदिवासी कल्याण विभाग की सचिव लक्ष्मी प्रिया ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता किसानों को कर्ज की सुविधाएं उपलब्ध कराना और उनके आर्थिक बोझ को कम करना है.

उन्होंने यह भी बताया कि किसानों को अब मार्केटिंग का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है ताकि वे अपनी उपज को सीधे बाजार में बेच सकें और उचित दाम प्राप्त कर सकें.

(Image credit – The New Indian Express)

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