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आदिवासी शोधार्थियों की फैलोशिप अटकी

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति फेलोशिप (NFST) योजना के तहत मिलने वाली राशि समय पर जारी न होने से छात्रों को गंभीर आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में जनजातीय कार्य मंत्रालय केवल फंड खत्म होने का बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता

देशभर में अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के शोधार्थी पिछले कई महीनों से अपनी फैलोशिप का इंतज़ार कर रहे हैं.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति फैलोशिप (NFST) योजना के तहत मिलने वाली राशि समय पर न मिलने से छात्रों को गंभीर आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

कई छात्रों ने प्रयोगशाला उपकरण, कॉन्फ्रेंस शुल्क और फील्ड रिसर्च के खर्च अपनी जेब से पूरे किए हैं, जबकि कुछ को उधार तक लेना पड़ा है.

नए और पुराने दोनों बैच प्रभावित

साल 2024-25 के बैच में शामिल शोधार्थियों को पीएचडी शुरू किए लगभग एक साल हो गया है, लेकिन उन्हें अभी तक पहली भुगतान राशि भी नहीं मिली.

वहीं 2023-24 बैच के छात्रों का कहना है कि करीब सात महीने से भुगतान लंबित है. इसका असर उनकी पढ़ाई और शोध कार्य दोनों पर पड़ रहा है.

मंत्रालय की दलील

जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि फैलोशिप की राशि बढ़ाकर ₹37,000 कर दी गई थी जिसके कारण फंड अस्थायी रूप से खत्म हो गए थे.

इसके चलते तय फंड सितंबर 2024 में ही खर्च हो गया.

मंत्रालय का कहना है कि अतिरिक्त ₹220 करोड़ की मांग की गई थी, जिसकी मंज़ूरी पिछले महीने ही मिली है.

अधिकारियों का कहना है कि 10-15 दिनों में बकाया राशि जारी हो जाएगी.

छात्रों और संगठनों की नाराज़गी

दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) में पत्रकारिता और जनसंचार विषय से पीएचडी कर रहे एक छात्र ने बताया कि वह इस साल फरवरी में 2024-25 बैच में चुना गया था. लेकिन अभी तक वेरिफिकेशन पूरा नहीं हुआ है और न ही उसे कोई पैसा मिला.

इसी तरह मिजोरम विश्वविद्यालय के छात्रों का कहना है कि अगर उन्हें समय पर पैसा न मिला तो उन्हें अपने शोध के लिए कर्ज़ लेना पड़ेगा.

ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन (AIRSA) ने 10 सितंबर को जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम और सचिव विभु नैयर को पत्र लिखकर तुरंत बकाया फंड जारी करने की मांग की.

संगठन ने कहा कि यह फैलोशिप जनजाति समुदाय के शोधार्थियों के लिए जीवनरेखा है.

समय पर भुगतान से ही वे अपने शोध कार्य को सही दिशा दे सकते हैं.

एसोसिएशन ने यह भी कहा कि मंत्रालय को एक शिकायत निवारण प्रणाली बनानी चाहिए ताकि छात्र अपनी समस्याएं सीधे रख सकें.

अभी तक नोडल अधिकारियों से संपर्क करने पर भी छात्रों को कोई ठोस जवाब नहीं मिला है.

क्या है योजना?

एनएफएसटी (NFST) योजना एक केंद्रीय योजना है. इसकी फंडिंग पूरी तरह से जनजातीय कार्य मंत्रालय करता है.

जनजातीय मंत्रालय ही इसे लागू करता है. हर साल 750 छात्रों को एम.फिल या पीएचडी के लिए यह फेलोशिप दी जाती है.

चयनित छात्रों को अधिकतम पांच साल तक त्रैमासिक किस्तों में राशि मिलती है.

मंत्रालय ने हाल ही में संसद की एक समिति को बताया था कि इस योजना को अगले पांच साल (2026-27 से 2030-31) तक जारी रखने का प्रस्ताव है.

साथ ही, हर साल मिलने वाली स्कॉलरशिप की संख्या 750 से बढ़ाकर 1,000 करने का सुझाव भी रखा गया है.

शोधार्थियों की अपील

आदिवासी छात्रों का कहना है कि यह फैलोशिप सिर्फ आर्थिक मदद नहीं है, बल्कि उनके लिए आगे बढ़ने का मौका है.

समय पर पैसा न मिलने से शोध कार्य रुक जाते हैं, कॉन्फ्रेंस में पेपर प्रस्तुत करना मुश्किल हो जाता है और कई बार उन्हें पढ़ाई छोड़ने तक की स्थिति आ सकती है.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति फेलोशिप योजना का मकसद ही यह है कि वंचित तबके के शोधार्थी बिना आर्थिक बोझ के उच्च शिक्षा और रिसर्च कर सकें. लेकिन मौजूदा स्थिति में ये छात्र सबसे बड़ी दिक्कत का सामना कर रहे हैं.

मंत्रालय का कहना है कि पैसे जल्द जारी होंगे, मगर तब तक कई छात्र उधार और निजी खर्च पर अपने शोध को संभालने के लिए मजबूर हैं.

(Image is for representation purpose only.)

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