HomeAdivasi Dailyधिरौली खदान को लेकर जयराम रमेश का सरकार पर हमला

धिरौली खदान को लेकर जयराम रमेश का सरकार पर हमला

बिना ग्राम सभा की मंज़ूरी और अंतिम पर्यावरणीय स्वीकृति के धिरौली में खनन कार्य शुरू होने से आदिवासी समुदायों में आक्रोश और विस्थापन की आशंका बढ़ी

मध्य प्रदेश के सिंगरौली ज़िले का धिरौली इलाका इन दिनों चर्चा में है. यहां अडानी समूह की कोयला खदान परियोजना को लेकर विरोध शुरू हो गया है.

कांग्रेस नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने बिना कानूनी मंज़ूरी की प्रक्रिया पूरी किए ही जंगल की ज़मीन पर पेड़ काटने का काम शुरू कर दिया है.

उनका कहना है कि यह काम आदिवासी अधिकारों और कानूनों की सीधी अवहेलना है.

पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में खदान

धिरौली का यह इलाका पांचवीं अनुसूची के तहत आता है.

संविधान में इन क्षेत्रों को खास दर्जा दिया गया है ताकि यहां रहने वाले आदिवासी समाज को अपनी ज़मीन, जंगल और जल पर अधिकार मिल सके.

पंचायती राज व्यवस्था को मज़बूत करने के लिए 1996 में पेसा कानून भी बनाया गया.

इस कानून के अनुसार, किसी भी विकास परियोजना से पहले ग्राम सभा की मंज़ूरी ज़रूरी है. लेकिन जयराम रमेश का कहना है कि धिरौली में ग्राम सभाओं से राय नहीं ली गई और सीधे खदान का काम शुरू कर दिया गया.

एक और बड़ा सवाल पर्यावरणीय मंज़ूरी को लेकर है.

खदान परियोजना के लिए दो चरणों में मंज़ूरी मिलती है. इसमें दूसरी और अंतिम मंज़ूरी यानी स्टेज-2 क्लियरेंस अभी तक जारी नहीं हुई है. इसके बावजूद पेड़ों की कटाई शुरू करने के आरोप हैं.

बताया जा रहा है कि इस परियोजना से करीब 3,500 एकड़ जंगल प्रभावित होगा.

आजीविका और संस्कृति पर असर

धिरौली और आसपास के गांवों में रहने वाले आदिवासियों की ज़िंदगी जंगल पर ही निर्भर है.

महुआ, तेंदू पत्ता, जड़ी-बूटियां, ईंधन की लकड़ी उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों का हिस्सा हैं.

जंगल खत्म होने का मतलब है कि उनकी आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा.

स्थानीय आदिवासी यह भी कह रहे हैं कि कई परिवार पहले ही दूसरी परियोजनाओं के कारण अपनी ज़मीन और घर छोड़ चुके हैं.

अब इस खदान की वजह से उन्हें दोबारा विस्थापित होना पड़ सकता है. यह बेदखली उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बन सकती है.

विपक्ष का आरोप, सरकार चुप

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने 2019 में ऊपर से दबाव डालकर इस खदान का आवंटन किया था और अब 2025 में बिना कानूनी औपचारिकताएं पूरी किए इसे तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है.

उन्होंने यहां तक कहा कि “मोडानी अपने आप में एक कानून बन चुका है.”

रमेश के बयान में मोडानी शब्द का इस्तेमाल किया गया है. यह मोदी और अडानी नामों को जोड़कर बनाया गया है.

विपक्ष अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए करता है कि सरकार और अडानी समूह के बीच गहरा संबंध है.

आरोप यह है कि इस नज़दीकी के कारण नियमों और कानूनों को दरकिनार कर परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है.

इस मामले में अभी तक अडानी समूह या केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

हालांकि, कुछ दिन पहले अडानी पावर ने बयान दिया था कि उसे कोयला मंत्रालय से धिरौली खदान में काम शुरू करने की अनुमति मिल गई है.

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