मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले से एक दुखद और चौंकाने वाली खबर सामने आई है.
यहां चार आदिवासी युवकों को चोरी के शक में पुलिस थाने ले जाया गया और वहां उनके साथ बुरी तरह मारपीट की गई.
जब जांच हुई तो पता चला कि इन युवकों का चोरी से कोई लेना-देना ही नहीं था. इसके बाद पुलिस अधीक्षक (SP) जगदीश डाबर ने तीन पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है.
यह घटना पाटी थाना क्षेत्र की है. 7 सितंबर की रात को एक आदिवासी परिवार के घर चोरी हुई थी.
उन्होंने थाने में रिपोर्ट दी कि उनके घर से गहने और पैसे चोरी हो गए हैं. इस मामले में पुलिस ने चार आदिवासी युवकों को पकड़कर थाने बुलाया.
थाने में पूछताछ के दौरान पुलिस ने इन युवकों को पीटना शुरू कर दिया, जबकि उन्होंने चोरी करने से मना किया.
इन युवकों में करण, मनीष, मुकेश और भाईजान नाम के लड़के शामिल हैं. करण ने बताया कि उनके साथ बहुत बुरी तरह मारपीट की गई और बाकी तीन दोस्तों को इतनी चोटें आईं कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
करण का कहना है कि उन्होंने कोई चोरी नहीं की थी, फिर भी पुलिस ने उन पर शक करके उन्हें मारा.
जब यह खबर बाहर आई तो बड़वानी के SP जगदीश डाबर ने इस मामले को गंभीरता से लिया.
उन्होंने पाटी थाने में तैनात एएसआई राजेंद्र अठोदे, हेड कॉन्स्टेबल दीपक सिसोदिया और कांस्टेबल अरविंद कुशवाह को तुरंत सस्पेंड कर दिया.
SP डाबर ने कहा कि जांच की जा रही है और 7 दिन के अंदर पूरी रिपोर्ट मांगी गई है.
थाना प्रभारी रामदास यादव का कहना है कि चोरी की शिकायत थावरिया नाम के एक आदमी ने की थी। उसने कहा था कि उसके घर से तीन किलो चांदी और 50 हजार रुपये चोरी हो गए हैं.
जब चारों युवक पकड़े गए तो उन्होंने बताया कि वे गहने लेने गए थे, लेकिन चोरी से उनका कोई संबंध नहीं था। पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.
इस घटना के बाद इलाके में गुस्सा फैल गया.
जयस (आदिवासी संगठन) ने इस घटना पर विरोध किया और सख्त कार्रवाई की मांग की.
लोगों का कहना है कि अगर मीडिया और समाज के लोग आवाज़ नहीं उठाते, तो यह मामला दबा दिया जाता.
इस घटना से साफ है कि पुलिस को किसी भी शक के आधार पर मारपीट नहीं करनी चाहिए.
सभी नागरिकों को कानून के तहत बराबर हक मिलना चाहिए, चाहे वे किसी भी जाति या समुदाय से हों.
बड़वानी की यह घटना हमें बताती है कि पुलिस को संवेदनशील होना चाहिए और निर्दोष लोगों के साथ इंसाफ करना चाहिए.